राजस्थान

rajasthan

ETV Bharat / state

देवउठनी एकादशी के दिन होता है तुलसी शालिग्राम विवाह, जानिए क्या है इसके पीछे की कथा - DEVUTHANI EKADASHI

देवउठनी एकादशी को शास्त्रों में देव प्रबोधिनी एकादशी भी कहते हैं. यह दिन तुलसी शालिग्राम विवाह से भी जुड़ा हुआ है.

Devuthani Ekadashi
देवउठनी एकादशी के दिन होता है तुलसी शालिग्राम विवाह (Photo ETV Bharat Bikaner)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Nov 8, 2024, 6:28 PM IST

बीकानेर:देव प्रबोधिनी एकादशी या फिर देवउठनी एकादशी का हिंदू धर्म शास्त्रों में विशेष महत्व है. इस दिन से मंगल कार्य शुरू हो जाते हैं. वहीं, इस दिन का एक महत्व तुलसी-शालिग्राम विवाह से भी जुड़ा है. वैसे तो तुलसी पत्ते के महत्व से सभी परिचित ही है, क्योंकि बिना तुलसी के प्रसाद का भोग तक नहीं लगता है. शास्त्रों के मुताबिक भगवान विष्णु को लगाए भोग में तुलसी का होना बेहद जरूरी है, क्योंकि उन्हें तुलसी अति प्रिय हैं.

देवउठनी एकादशी को तुलसी विवाह भी होता है. साल की सभी एकादशियों में देवउठनी एकादशी की बड़ी मान्यता है. इस दिन मां तुलसी का शालिग्राम जी से विवाह होता है. शास्त्रों के मुताबिक भगवान विष्णु को लगाए भोग में तुलसी का होना बेहद जरूरी है, क्योंकि उन्हें तुलसी अति प्रिय है और भोग को बिना तुलसी अधूरा माना जाता है.

पढ़ें: 12 नवंबर को देवउठनी एकादशी, प्रदेश में होंगी हजारों शादियां, 13 नवंबर को कैसे होंगे उप चुनाव को लेकर मतदान, घटेगा मतदान प्रतिशत!

भगवान विष्णु का ही रूप शालिग्राम: पंडित कपिल जोशी कहते हैं कि पौराणिक मान्यता के अनुसार वृंदा नामक राक्षसी से जलांधर नामक राक्षस का विवाह हुआ था. राक्षस कुल में होने के बावजूद वृंदा भगवान विष्णु की भक्त थी. वहीं जलांधर अत्याचारी था, लेकिन अक्सर देवताओं से युद्ध के बाद भी वह हारता नहीं था. सब देवता जब भगवान विष्णु के पास गए और उन्हें सारी बात बताई, तब भगवान विष्णु समझ गए कि वृंदा के धर्म परायण होने और सतीत्व के प्रभाव के चलते जलांधर कई गुना अधिक शक्तिशाली हो गया है, इसलिए भगवान विष्णु ने माया के प्रभाव से जलांधर का रूप धारण कर वृंदा को भ्रमित कर जलांधर के वध को संभव किया था. वृंदा को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने भगवान विष्णु को शिला रूप बन जाने का श्राप दिया. मां महालक्ष्मी के अनुरोध पर वृंदा ने भगवान को श्राप से मुक्त कर दिया था. साथ ही खुद जलांधर के साथ सती हो गई थी. वृंदा की शरीर की राख से भगवान विष्णु ने एक पौधे का सृजन किया और उस दिन के बाद तुलसी के नाम से विख्यात हुआ.

देवताओं ने कराया विवाह:कालांतर में वृंदा के तुलसी रूप में पृथ्वी पर अवतरित होने पर भगवान विष्णु को पत्थर की शिला के रूप में शालिग्राम मानकर देवताओं ने कार्तिक शुक्ल एकादशी को तुलसी-शालिग्राम की शादी करवाई. इस दिन तुलसी का भगवान विष्णु यानी शालीग्राम स्वरूप से प्रतीकात्मक विवाह करा श्रद्धालु उन्हें बैकुंठ धाम विदा करते हैं.

ABOUT THE AUTHOR

...view details