गोरखपुर : जिले के एक युवा शिक्षक अभय पाठक ने अपनी मेहनत और लगन से लोगों को साक्षर बनाया. उन्होंने अपनी 15 साल की कड़ी मेहनत से अपने स्कूल क्षेत्र से सटे मुसहर बस्ती के बच्चों और उनके परिवारों में शिक्षा का अलख जगाने का काम किया. उनके पढ़ाए हुए कई बच्चे अदानी समूह में साइट इंजीनियर के रूप में कार्य कर रहे हैं. कई अन्य क्षेत्रों में भी कार्यरत हैं. उनके इस अभियान को बेसिक शिक्षा मंत्रालय ने भी गंभीरता से लिया है. उन्हें निपुण भारत योजना के लेखन मंडल का सदस्य भी बनाया गया है. शिक्षा के प्रति उनके योगदान की पूरे शहर में सराहना हो रही है. शिक्षक दिवस पर ऐसे शिक्षकों की कठिन साधना को याद करना जरूरी हो जाता है.
ईटीवी भारत से बातचीत में उन्होंने बताया कि वह पुरस्कारों के लिए यह प्रयास नहीं कर रहे हैं. उनकी इच्छा यह रहती है कि वह बच्चों के लिए ऐसे वातावरण का सृजन करें जो शिक्षक के रूप में आत्मसंतुष्टि प्रदान करें. बच्चों को समाज में उच्च स्थान दिलाए. एक शिक्षक की पूंजी उसका ज्ञान, बच्चे, शिक्षा और बच्चों के चतुर्दिक विकास के प्रति उसकी प्रतिबद्धता होती है. उन्हें पुरस्कार की कोई लालसा नहीं लेकिन सरकार और शिक्षा विभाग के सम्मान से उनके और बेहतर करने की ताकत मिलती है.
स्कूल में नो एडमिशन का लगाना पड़ता है बोर्ड :प्राथमिक स्कूलों में बच्चों को जोड़ने के लिए सरकार विशेष अभियान चला रही है. इस पर अभय पाठक का कहना है कि उनके और स्कूल के अन्य शिक्षकों के प्रयास से बच्चों की संख्या स्कूल में काफी ज्यादा है. उन्हें नो एडमिशन का बोर्ड लगाना पड़ता है. यह प्राथमिक शिक्षा में एक मिसाल है. जिस मुसहर बस्ती के बच्चों और परिवार के लोगों को उन्होंने शिक्षित करने का काम किया, उनका मूल पेशा पत्तल बनाने का होता था. अब शिक्षा के साथ यह परिवार भी आगे बढ़ चला है.
100 से अधिक मुसहर बस्ती के बच्चों को पढ़ाने जाते हैं गांव :बच्चे उच्च शिक्षा के साथ तकनीकी शिक्षा भी ग्रहण कर आगे निकल रहे हैं. इससे बड़ी संतुष्टि मिलती है. उन्होंने कहा कि जब वह वर्ष 2010 में प्राथमिक शिक्षक के रूप में अपनी सेवा देना यहां शुरू किए तो जिस विद्यालय पर उनकी तैनाती थी, उस विद्यालय को उन्होंने एक अनुपम स्वरूप प्रदान किया. उनकी तैनाती जिले के ब्रम्हपुर ब्लॉक के प्राथमिक स्कूल पर है. यहां के बौरिहवा टोले के 100 से अधिक मुसहर बस्ती के छात्र नियमित आकर शिक्षा ग्रहण करते हैं. वह उनके गांव में जाते हैं. उस दौरान माना जाता था कि मुसहर बस्ती के लोग पढ़ते-लिखते नहीं हैं. उनके परिवार भी शिक्षित नहीं हैं.