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कोदो बदनाम हुआ आखिर किसके लिए, क्या कोदो सच में जहरीला है, या कोई और बात है - SHAHDOL KODO FARMING

कोदो पौष्टिक गुणों का खजाना है. मोटे अनाज यानी मिलेट्स आजकल सुपरफूड बन गए हैं. इनमें से एक कोदो भी है.

SUPERFOOD KODO MILLET
पोषक तत्वों का खजाना है कोदो मिलेट्स (ETV Bharat)

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : 16 hours ago

Updated : 15 hours ago

शहडोल (अखिलेश शुक्ला): पिछले कुछ सालों में हमारे खान-पान में मिलेट्स का भी एक बड़ा रोल रहा है. धीरे-धीरे खाद्य पदार्थों में मिलेट्स अपनी एक अहम जगह बनाता जा रहा है. मौजूदा साल इन्हीं मिलेटस में से एक कोदो सुर्खियों में बना रहा. जिस तरह से छोटी-छोटी घटनाएं होती रहीं, उसके बाद से लगातार कोदो को लेकर लोगों में भ्रम की स्थिति फैलती जा रही है.

क्या कोदो सच में जहरीला होता है, आखिर जो कुछ लोग बीमार हुए वो किस वजह से हुए. क्या कोदो खाने से ऐसा हो सकता है. इस सवाल को लेकर ईटीवी भारत ने हर उस व्यक्ति से बात की है, जो या तो इसे रेगुलर खा रहा है या फिर उसकी कई पीढ़ियां इसे उगा रही हैं. साथ ही खा भी रही हैं. साथ ही इसके विशेषज्ञों और डॉक्टर से भी जाना कि आखिर कोदो यूं ही बदनाम हो रहा है या फिर कोई बात है.

भारत में 3000 सालों से हो रही कोदो की खेती (ETV Bharat)

कोदो क्यों हुआ बदनाम?

आपको बता दें कि हाल ही में शहडोल जिले के 10 मरीज जिला अस्पताल में ऐसे आये, जो रात में कोदो की रोटी और चने की भाजी खाने के बाद बीमार पड़ गए. सामान्य उपचार के बाद वे ठीक होकर घर चले गए थे. जिन डॉक्टर ने मरीजों का इलाज किया था. उनका कहना है कि फूड प्वाइजनिंग हो गई थी. जिसकी वजह से वे लोग बीमार पड़ गए थे.

इस वजह से लोगों ने बनाई दूरियां

इससे पहले बांधवगढ़ में 10 हाथियों की तीन दिन में ही एक-एक करके मौत हो गई थी. इसमें प्रथम दृष्टया सामने आया था कि हाथियों की मौत कोदो खाने से हुई थी, लेकिन जांच में सामने आया कि कोदो विषाक्त हो गया था. ऐसा इसलिए हुआ कि खुले में कोदो को रखने से उसमें कवक उग गया था. जिसकी वजह से हाथियों की मौत हुई थी. इन घटनाओं के बाद से कोदो को लेकर तरह-तरह की भ्रांतिया फैल रही थीं. जिसकी वजह से लोग इससे दूरियां बनाने लग गए.

पौष्टिक गुणों का खजाना है कोदो (ETV Bharat)

कई पीढ़ियों से खा रहे कोदो

शहडोल के आदिवासी बाहुल्य इलाके में लोग सदियों से कोदो की खेती करते आ रहे हैं. यहां के लोग जमानों से कोदो का सेवन भी करते आ रहे हैं. कभी कभार फूड प्वाइजनिंग जैसे केस जरूर सामने आए हैं, लेकिन आज तक कोदो खाने से किसी की मौत नहीं हुई है. मझगवां गांव निवासी भोल्ली सिंह बताते हैं, "आज उनकी उम्र 60 साल की हो गई है. उनके पिताजी व दादाजी सहित पीढ़ियों से कोदो की खेती करते हुए आ रहे हैं. आज वो खुद भी कोदो की खेती करते हैं.

डायबिटीज मरीजों के लिए कोदो वरदान (ETV Bharat)

कोदो खाने से कोई दिक्कत नहीं

उन्होंने बताया कि आज भी उनके घरों में कोदो का सेवन किया जाता है. आज तक किसी भी तरह की कोई दिक्कत नहीं आई है. कोदो खाने से ना ही किसी व्यक्ति की जान गई है. उनका पूरा परिवार कोदो खाता है." ईटीवी भारत की टीम ने इसी तरह से कई आदिवासी ग्रामीणों से बात कि तो उन्होंने भी बताया कि "वे लोग भी कोदो का सेवन करते हैं. कोदो जहरीला होता है इस बात को लेकर किसी ने भी नहीं कहा. सभी ने यही कहा कि वो कोदो खाते हैं उन्हें कोई दिक्कत नहीं होती है."

कोदो में कवक कब बनता है?

कृषि वैज्ञानिक डॉ. बीके प्रजापति ने बताया, "जो भी मरीज आए हैं, ये जांच का विषय हैं. वैसे ज्यादातर केसेस में फूड प्वाइजनिंग एक कारण होता है, लेकिन जांच का विषय है. जब तक यह जांच रिपोर्ट नहीं आती है, तब तक हम नहीं कह सकते कि कोदो खाने से ही कोई हानि हुई है. कोदो, मक्का, मूंगफली में आपने देखा होगा कि किसी-किसी दाने को खाने पर कड़वाहट महसूस होती है.

कई पीढ़ियों से ग्रामीण कर रहे कोदो की खेती (ETV Bharat)

इस कड़वाहट का मुख्य कारण होता है कि जब फसल की कटाई होती है. उस समय अगर फसल में 12% से ज्यादा नमी रहते हुए उसको अगर हम स्टोर करके रख लेते हैं तो उस पर एस्परजिलस फ्लेवस नाम का एक हानिकारक कवक उग जाता है और सेकेंडरी मेटाबॉलिज्म कंपाउंड पैदा जो होते हैं जैसे एफलाटॉक्सिन, माइक्रोटोक्सीन.

फिर इसको खाने के बाद आप देखेंगे की हल्की सी कड़वाहट महसूस होगी. इसके बाद हल्का सा जी मचलेगा, उल्टी की समस्या मुख्य रूप से होती है. इसके अलावा पेट में मरोड़ की समस्या देखने को मिलती है. ये सब समस्याएं केवल कोदो की फसल में ही नहीं होती है, ये मुख्य रूप से सभी अनाजीय फसलों में जैसे मक्का, मूंगफली बाजरा आदि फसलों में देखने को मिलती है."

स्टोरेज में जरूर ध्यान दें

कृषि वैज्ञानिक डॉ. बीके प्रजापतिबताते हैं, "इस तरह की समस्या से बचने के लिए कोदो के स्टोरेज पर विशेष ध्यान देना चाहिए. कोदो को जब भी स्टोर करें तो बहुत सतर्कता बरतें. इसको स्टोर करने समय ध्यान रखें कि इसकी ह्यूमिडिटी 70% से कम हो और दाने की नमी 10 से 12% के बीच में होनी चाहिए. जहां पर इसको स्टोर किया जा रहा है वहां अंदर का तापमान 1 से 4 डिग्री के बीच में रखना चाहिए. इसके अलावा जो पुरानी कोदो होती है, कई बार वो गांव की कोठी वगैरह में इकट्ठा रखी होती है. जिसमें बारिश के कारण नमी चढ़ जाती है और कवक हो जाते हैं, जिससे एप्रोटोक्सीन की समस्या आती है.

ये जो भी समस्या है, गर्म चाय, गर्म पानी और गर्म दूध पीने के बाद थोड़ी देर या एक दिन में आराम लग सकता है. इसके अलावा जब भी आप घर में कोई अनाज स्टोर करें, तो पहले आप देख ले कि इसमें किसी तरह का कवक ना हो, या खाने में इस्तेमाल करें तो यह देख ले किसी तरह का कवक ना हो.

रही बात कोदो की तो कोदो को जब भी आप उबालते या गर्म करते हैं, तो 70 से 80% तक एस्पेरजिलस फ्लेवस कवक पूर्ण रूप से नष्ट हो जाता है. इसके अलावा कोदो का जब भी उपयोग करें तो बीच-बीच में धूप दिखाकर सुखाकर ही उपयोग करें. नमी लगभग 10 से 12 परसेंट तक ही रखेंगे तो इसमें किसी प्रकार की समस्या नहीं आएगी."

कोदो पौष्टिकता का खजाना है

कृषि वैज्ञानिक डॉ बीके प्रजापतिबताते हैं कि "जो कोदो है ये पौष्टिक गुणों का खजाना है. वर्तमान समय में बीपी, शुगर एक बड़ी समस्या है. यह प्रचुर भोजन है इसमें प्रोटीन 9 से 10 परसेंट तक होता है. फैट जिसको हम वसा बोलते हैं दो से तीन परसेंट तक होता है. रेशा 12 से 14 पर्सेंट होता है, कैल्शियम आयरन मैग्नीशियम जिंक प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. इसके अलावा जो इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स बहुत कम 55 के आसपास होता है. ये शुगर, बीपी और अल्सर के मरीजों के निराकरण के लिए वो बहुत अच्छा आहार है.

आयुर्वेद डॉक्टर ने क्या कहा?

आयुर्वेद डॉक्टर अंकित नामदेवनेकहा, "कोदो या मिलेट्स जो भी अन्य मिलेट्स होते हैं. अगर ये जहरीले होते तो उन्हें पॉइजन कैटेगरी में आयुर्वेद में सालों पहले रख दिया गया होता. कई हजार सालों से भारत में कोदो और कोदो जैसे अन्य मिलेट्स रागी, बाजरा, ज्वार यह मानव सभ्यता में उपयोग किये जा रहे हैं. खास तौर पर भारत जैसे देश में जहां पर बहुत सारे वेरिएशन है. क्रॉप्स के यह सारी चीजें उपयोग की जा रही हैं.

इसमें जहर जैसा कुछ भी नहीं होता है, कोदो बिल्कुल खाने योग्य है. जिन लोगों को डायबिटीज है उनके लिए कोदो वरदान है. यह चावल का एक बहुत अच्छा विकल्प है, जो कि लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स के साथ-साथ में लो ग्लाइसेमिक लोड भी प्रोड्यूस करता है. इसलिए यह चावल का बहुत अच्छा विकल्प है."

कई राज्यों में कोदो की खेती

कृषि वैज्ञानिक डॉ. बीके प्रजापति बताते हैं कि "कोदो का नेटिव प्लेस साउथ अमेरिका है. हमारे देश में लगभग 3000 वर्ष पहले इसकी खेती शुरू की गई थी. आज ये मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में मुख्य रूप से इसकी खेती की जाती है. हमारे ग्रामीण और आदिवासी अंचलों में जहां भी कृषक निवास करते हैं सदियों से इसकी खेती करते आ रहे हैं. कोदो पौष्टिक गुणों का एक खजाना है. इसे यूं ही बदनाम करना सही नहीं है."

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