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कई समस्याओं से जूझ रहा देश-विदेश में प्रसिद्ध मूर्तिकारों का गांव भूणी - Kuchaman City Sculptors - KUCHAMAN CITY SCULPTORS

डीडवाना-कुचामन जिले के भूणी गांव को मूर्तिकारों का गांव भी कहा जाता है. यहां के मूर्तिकारों के बेजोड़ कला के मुरीद देश ही नहीं विदेशों में भी हैं, लेकिन फिर भी यहां के मूर्तिकारों को कई मूलभुत सुविधाओं से वंचित रहना पड़ रहा है.

मूर्तिकारों का गांव भूणी
मूर्तिकारों का गांव भूणी (ETV Bharat Kuchaman City)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Sep 21, 2024, 3:44 PM IST

कुचामनसिटी :डीडवाना-कुचामन जिले के भूणी गांव के मूर्तिकारों को देश-प्रदेश में याद किया जाता है. इस गांव के मूर्तिकारों के हाथों के हुनर के मुरीद राजस्थान में ही नहीं, बल्कि देशभर में हैं. गांव के 300 से ज्यादा लोग, मूर्तिकला के व्यवसाय से जुड़े हैं, जो 40 से ज्यादा कारखानों में पत्थरों को तराश कर मूर्तियां बनाने में जुटे रहते हैं. इसके अलावा कई लोग घरों में भी छोटी मूर्तियां बनाकर अपना गुजारा करते हैं. यही वजह है कि भूणी गांव को मूर्तिकारों का गांव भी कहा जाता है.

पूर्वजों की मूर्तियां भी बनवाते हैं : मूर्तिकार ओम प्रकाश कुमावत बताते हैं कि मकराना के संगमरमर के अलावा ग्राहकों की मांग अनुसार ये कारीगर बिजोलिया के पत्थर, भैंसलाना के काले पत्थर, करौली के लाल पत्थर, जैसलमेर के सुनहरे पत्थर और पहाड़पुर के गुलाबी पत्थर से बेजोड़ मूर्तियां बनाते हैं. हिन्दू देवी-देवताओं के साथ ही यहां के कलाकार पत्थरों को जैन धर्म के तीर्थंकरों, महापुरुषों और शहीदों की मूर्तियों में बदल देते हैं. कई लोग अपने पूर्वजों की मूर्तियां भी बनवाते हैं. उनकी फोटो देखकर भूणी के कलाकार पत्थरों से हू-ब-हू वैसी ही मूर्ति तैयार कर देते हैं. इस गांव के हर गली मोहल्ले में काली माता, शिव परिवार, राम दरबार, हनुमान, राधा कृष्ण, स्वतंत्रता सेनानियों और महापुरुषों की मूर्तियां बनाते हुए लोग मिल जाएंगे.

मूर्तिकारों का गांव भूणी (वीडियो ईटीवी भारत कुचामनसिटी)

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सुविधाएं मुहैया करवाई जाएं :मूर्तिकार ओम प्रकाश कुमावत के मुताबिक गांव में बिजली नहीं आने की समस्या रहती है. बिना किसी पूर्व सूचना के बिजली काट दी जाती है. ऐसे में काम अटक जाता है. मूर्तिकार कान्हाराम कहते हैं कि घर-घर में मूर्ति बनाने का काम है तो पत्थर को काटने पर धूल निकलती रहती है, जो सिलिकोसिस बीमारी का कारण बनती है. गांव के कई लोगों को सिलिकोसिस हो चुका है. गांव में सड़कें सही नहीं हैं. वे सरकार से मांग करते हैं कि गांव के आबादी क्षेत्र से दूर मूर्तिकला के कारखाने लगाने के लिए औद्योगिक क्षेत्र विकसित कर जमीन और बाकी सुविधाएं मुहैया करवाई जाएं.

गांव के लोगों का कहना है कि जागरूकता के अभाव में गांव के कलाकारों को हस्तशिल्प उद्योग के तहत मिलने वाली सरकारी सुविधा भी नहीं मिल पा रही है. संसाधनों और सुविधाओं के अभाव में भूणी के मूर्तिकार अपना गांव छोड़कर आसपास के किसी कस्बे या शहर में बसने को मजबूर होना पड़ रहा है.

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