रांचीः चुनाव के दौरान प्रत्येक मतदाता को यह अधिकार है कि अपने पसंदीदा प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करे. इतना ही नहीं अगर निर्धारित प्रत्याशियों की सूची में कोई मनपसंद प्रत्याशी उसे नजर नहीं आता है तो इसके लिए NOTA यानी उपरोक्त में से नहीं का इस्तेमाल किया जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में राइट टू रिजेक्ट के तहत यह अधिकार मतदाताओं को दिया था. जिसके बाद देश में 2014 के लोकसभा चुनाव से ईवीएम में प्रत्याशी की सूची में नोटा का बटन भी शामिल हो गया. 2024 के लोकसभा चुनाव में तीसरी बार इस बटन का उपयोग होगा.
झारखंड में नोटा का होता रहा है इस्तेमाल
पिछले आम चुनाव पर नजर दौड़ाएं तो 2014 के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में देश में नोटा के इस्तेमाल में वृद्धि हुई है. हालांकि झारखंड में कमी देखी गई मगर झारखंड के कुछ ऐसे भी लोकसभा क्षेत्र पाए गए जहां हार जीत का अंतर से अधिक नोटा में हुए मतों की संख्या थी. चुनाव आयोग के आंकड़ों से पता चलता है कि 2014 में झारखंड की 14 में से 5 ऐसी सीट थी, जहां करीब तीन फीसदी मत नोटा के तहत पड़े थे, मगर 2024 में ऐसी सीटों की संख्या घटकर तीन रह गई.
लोहरदगा सीट पर 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी सुदर्शन भगत से 10 हजार 357 वोट से कांग्रेस प्रत्याशी सुखदेव भगत हारे. यहां नोटा में 10 हजार 770 वोट पड़े. खूंटी लोकसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी अर्जुन मुंडा सिर्फ 1 हजार 445 वोटों से जीत दर्ज की. यहां 21 हजार 245 मतदाताओं ने नोटा का प्रयोग किया. कोडरमा में सबसे अधिक 31 हजार 164 वोटरों ने नोटा को चुना. इसके बाद सिंहभूम में 24261, गिरिडीह में 19669, गोड्डा में 18650, राजमहल में 12898 और दुमका में 14365 मतदाताओं ने नोटा का विकल्प चुना.
नोटा के इस्तेमाल से बढ़ी राजनीतिक दलों की चिंता