अजमेर :अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए लोगों की आत्म शांति और मुक्ति के लिए श्राद्ध पक्ष की पितृ अमावस्या सर्वोत्तम मानी गई है. साथ ही जिन लोगों को पितृ दोष है, ऐसे लोगों को पितृ अमावस्या पर निमित्त तीर्थ में जाकर पितरों को जल तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध करके दान पुण्य करना चाहिए. पितृ अमावस्या पर समस्त पितृ अपने घर और अपनों को देखने आते हैं और उन्हें यह उम्मीद होती है कि उनका कोई वंशज उनके निमित्त श्राद्ध कर्म करके दान पुण्य करेगा. तीर्थ राज पुष्कर में पितृ अमावस्या का विशेष महत्व है. श्राद्ध पक्ष के अंतिम दिन पितृ अमावस्या पर श्राद्ध कर्म करने के लिए बड़ी संख्या में लोग जुटते हैं.
कूर्माचल घाट पर तीर्थ पुरोहित पंडित सतीश चंद्र शर्मा बताते हैं कि श्राद्ध पक्ष में 16 दिन पितृ धरती पर रहते हैं. श्राद्ध पक्ष में दिवंगत आत्माओं की शांति और उनकी तृप्ति के लिए शास्त्रों में श्रद्धा कर्म बताए गए हैं. श्राद्ध कर्म तीर्थ स्थान पर मौजूद जलाशय पर किया जाना चाहिए. यदि तीर्थ स्थान तक नहीं जा सकते हैं तो अपने शहर गांव के समीप देवालय के पास बने जलाशय पर भी जल तर्पण किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि श्राद्ध पक्ष के अंतिम दिन पितृ अमावस्या आती है. पितृ अमावस्या पर अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध कर्म करने से पितृ खुश होकर वापस लौटते हैं और जाते वक्त आशीर्वाद देकर जाते हैं. पितरों के आशीर्वाद से घर में खुशहाली और सुख शांति आती है. श्रद्धा कर्म करने के बाद गाय को चारा, श्वान और कौवे को रोटी, पक्षियों को दाना, ब्राह्मण और अतिथि को भोजन करवाएं. आपका किया गया दान पूर्वजों को मिलता है और वह इससे ग्रहण करते हैं.