नई दिल्ली: मोती का नाम सुनते ही मन में समुद्र का ख्याल आता है. मोती सिर्फ रत्न नहीं बल्कि एक जैविक संरचना है, इसे नवरत्नों की श्रेणी में रखा गया है. इसे मुख्य रूप से चंद्रमा का रत्न माना गया है. हम सभी जानते हैं कि मोती एक समुद्री जीव के अंदर पनपता है, इसलिए इसे बहुत ही अनमोल माना जाता है. लेकिन भारत के झारखंड राज्य में मोतियों की खेती भी की जाती है. यह सुनने में थोड़ा अजीब जरूर लगेगा, लेकिन दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित ट्रेड फेयर में झारखंड पवेलियन में रांची से मत्स्य अनुसंधान विभाग से आए अधिकारी बुधन सिंह पुर्ली और उनकी टीम के सदस्यों ने मोती की खेती का डेमो डिस्प्ले किया है. उन्होंने 'ETV भारत' के साथ मोती की खेती की मुख्य जानकारियां साझा की. आइए जानते हैं कि उन्होंने क्या बताया...
कितने प्रकार के होते हैं मोती:बुधन सिंह पुर्ली ने बताया कि ज्यादातर लोग यही जानते हैं कि मोती की बनावट समुद्र में मौजूद एक जीव के अंदर होती है. जिसको घोंघा कहा जाता हैं. वह अपनी सीप मोती का निर्माण करता है. लेकिन मोती की खेती मीठे पानी में भी संभव है. इसके लिए विशेष देखभाल और दवाओं की जरुरत होती है. मोती की खेती मुख्य रूप से तीन तरह की होती हैं. समुद्र की गहराई में पाई जाने वाली मोती को नेचुरल पर्ल यानी प्राकृतिक मोती कहते हैं. एक आर्टिफिसियल पर्ल होता है, जो मानव निर्मित होता है. यह सिर्फ देखने में असली मोती जैसा दिखता है. मोती के तीसरे प्रकार को कहते हैं कल्चर्ड पर्ल यानी एक विधि से तैयार की गई मोती. यह नेचुरल मोती की ही तरह होती है. इसकी खासियत है कि सीप में अलग-अलग आकार के सांचे आधारित मोती तैयार की जा सकती है. उन्हों ने बताया कि 2016 में सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेश वाटर एग्रीकल्चर (सीफा), भुवनेश्वर द्वारा सब से पहले यह प्रयोग किया गया था उसके बाद उन्होंने इसकी ट्रेनिंग ली और मोतियों की खेती करनी शुरू की.
कैसे होती है मोती की खेती, झारखंड पवेलियन में लगा डेमो डिस्प्ले (Etv bharat)
मोती की खेती का तरीका:मोती की खेती के लिए सबसे पहले समुद्र के पानी से सीपों को लाया जाता है. इसके बाद उनको तीन दिन के लिए मीठे पानी में मेडिकल ट्रीटमेंट में पाला जाता है. उसके बाद सभी को एक ट्रे पर रखा जाता है. इसके बाद 14 दिनों तक इनको फीड किया जाता है. इसके बाद फिर पानी को बदला जाता है और तीन दिन के लिए भूखा रख जाता है. इस दौरान उनको एंटीबायोटिक मेडिसिन दी जाती है. तीन दिन के बाद उनको अंदर नए मोती को इंप्लांट किया जाता है. मतलब उनके मेन्टल पार्ट में नुकीलियस डाला जाता है. इसके बाद मोती बन कर तैयार होता है.
मोती तैयार होने में कितना समय लगता हैं:पुर्ली ने बताया कि न्यूक्लियस भी कई तरह के होते हेट हैं. इसमें राउंड पर्ल, राइस पर्ल और डिज़ाइन पर्ल. इसके लिए सीप की शेल के पाउडर से डिज़ाइनर शेप तैयार किये जाते हैं. इसके आकृति को शीप के मेन्टल पार्ट पर इंसर्ट किया जाता है. इसके बाद उनको दवाइयां और अच्छा भोजन दिया जाता है. करीब 10 महीने के बाद एक डिज़ाइनर मोती बन कर तैयार होता है. दूसरे वह मोती होते हैं जो बाजार में सब से ज्यादा महंगे मिलते हैं और महिलाओं को भी बेहद पसंद होता हैं. इनको राइस और राउंड पर्ल कहा जाता है. इसकी खेती के लिए मोती के बीज को सीप के प्रजनन एंड में इन्सर्ट किया जाता है. इसके बाद 18 से 24 महीने में मोती तैयार किया जाता है. यहां मोती मुख्य तौर पर IVF तकनिकी की तरह होता है. इसके लिए एक डोनर सीप होती है. यह बेहद ही जटिल प्रकिया होती है. इसमें इंप्लांट प्रक्रिया ठीक होना बेहद जरुरी है. अगर इम्प्लांट ठीक से नहीं होता तो सीप बीमार हो कर मर भी सकती है.
कैसे होती है मोती की खेती, झारखंड पवेलियन में लगा डेमो डिस्प्ले (Etv bharat)
झारखण्ड में 4 वर्षों से हो रही मोती की खेती:झारखण्ड मत्स्य अनुसंधान विभाग के डिप्टी डायरेक्टर अमरेंदर कुमार ने बताया कि झारखण्ड में बीते 4 वर्षों से मोती की खेती को पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर आगे बढ़ाया जा रहा है. इस बाबत इस वर्ष प्रधानमंत्री द्वारा मत्स्य सम्पदा योजना के अंतर्गत झारखण्ड को लीड राज्य घोषित किया गया है. इसलिए झारखण्ड मत्स्य अनुसंधान विभाग ने राज्य में क्लस्टर बेस पर मोती पालन का काम किया है. इसमें मुख्य रूप से किसानों को ट्रैंनिंग दी गई है. वहीं इस बार झारखण्ड को IITF में फोकस्ड स्टेट रखा गया है. यही वजह है कि मेले में मोती की खेती के तरीके को लोगों तक पहुंचाने के लिए डेमो डिस्प्ले लगाया गया है.