पटनाः राजस्थान की तर्ज पर अब बिहार में भी डेस्टिनेशन वेडिंग हो इसको लेकर काम किया जा रहा है. हैरिटेज बिल्डिंग को 5 सितारा होटल में तब्दील किया जाएगा. बिहार सरकार ने पटना के सुल्तान पैलेसको तोड़ने का फैसला वापस लेते हुए इसे एक नयी पहचान देने की योजना बनाई है. सरकार ने इस ऐतिहासिक इमारत सुल्तान पैलेस को तोड़ने की बजाया इसे 5 स्टार हैरिटेज होटल के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया है. सरकार के इस फैसले से लोगों में खुशी है.
''पांच सितारा होटल बनने से राज्य की ब्रांडिंग होगी. जो पर्यटक दूसरे देशों से आएंगे वह यहां ठहरेंगे. इसके अलावा उद्योगपति भी इन्वेस्टमेंट के लिए बिहार का रुख करेंगे. लोगों को रोजगार भी मिलेगा. इसके अलावा हेरिटेज होटल होने के चलते डेस्टिनेशन वेडिंग भी लोगों को आकर्षित करेगा.''- डॉक्टर अविरल पांडे, अर्थशास्त्री
सिविल सोसाइटी ने किया था विरोधः दरअसल, बिहार सरकार ने राजधानी पटना में 3 पांच सितारा होटल बनाने का फैसला लिया था. तीन में एक पांच सितारा होटल ऐतिहासिक इमारत सुल्तान पैलेस को ध्वस्त कर बनाने की योजना थी. सरकार के फैसले का काफी विरोध हुआ. सिविल सोसाइटी ने इसके खिलाफ मुहिम चलाई. ईटीवी भारत की ओर से भी ऐतिहासिक इमारत की अस्मिता को बचाने के मुद्दे को जोर-जोर से उठाया गया, जिसके बाद सरकार ने फैसला लिया कि सुल्तान पैलेस को ही पांच सितारा हैरिटेज होटल के रूप में विकसित किया जाएगा.
150 कमरों का होगा निर्माणःकभी परिवहन विभाग के ऑफिस के रूप में मशहूर सुल्तान पैलेस का परिसर करीब 10 एकड़ में फैला हुआ है. सुल्तान पैलेस को 5 स्टार होटल में विकसित करने के साथ ही परिसर की खाली जमीन पर भी 4 स्टार होटल विकसित किया जाएगा. दोनों होटल में 150-150 कमरों का निर्माण होगा. सुल्तान पैलेस परिसर में पर्यटकों के घूमने की व्यवस्था होगी और लाइटिंग की भी शानदार व्यवस्था होगी.
1922 में हुआ था निर्माणःऐतिहासिक सुल्तान पैलेस पटना की शान है. सुल्तान पैलेस की खूबसूरती को निहारने देश-विदेश से लोग आते हैं. इस पैलेस का निर्माण 1922 में सुल्तान अहमद साहब ने कराया था. तब इसकी लागत करीब 22 लाख रुपये आई थी. इसकी अद्भुत नक्काशी प्रसिद्ध कारीगर मंजुल हसन काजमी ने की थी.
मिश्रित कला का सर्वोत्कृष्ट नमूना:सुल्तान पैलेस भारतीय,यूरोपीय, मुगल और राजपूत स्थापत्य कला का बेमिसाल नमूना है. अंग्रेजी शासन काल में विकसित इस कला को मिश्रित कला का नाम दिया जाता है. इंडो-सारसेनिक शैली में बनी इस हवेली में सुल्तान अहमद ने मुगल व राजपूत शैलियों को खास जगह दी.19वीं सदी के आखिरी वर्षों में ब्रिटिश वास्तुकारों ने राजस्थानी, मुगल, मराठा और प्राचीन उत्कृष्ट भारतीय वास्तु कला को संयोजित कर एक नई और महान वास्तुकला को जन्म दिया था, जो इंडो सेरसेनिक वास्तुकला के नाम से जाना गया.