जयपुर. प्रदेश की भजनलाल सरकार आने वाले दिनों में जलदाय विभाग का निजीकरण कर सकती है. सरकार के इस फैसले के बाद निजी कंपनियां प्रदेश में पेयजल सप्लाई की जिम्मेदारी संभालेगी. इसके लिए राजस्थान वॉटर सप्लाई एंड सीवरेज कॉरपोरेशन (RWSSC) का नए सिरे से गठन भी किया जा सकता है. ऐसी संभावना है कि आरडब्ल्यूएसएससी के जरिए ही निजी कंपनियां प्रदेश में पेयजल आपूर्ति करेगी. सूत्रों के अनुसार जलदाय मंत्री कन्हैया लाल चौधरी आरडब्ल्यूएसएससी की बैठक भी ले चुके हैं. जलदाय विभाग के इंजीनियरों और विभाग से जुड़े कर्मचारी संगठनों ने इस निजीकरण का विरोध भी शुरू कर दिया है.
जलदाय मंत्री कन्हैया लाल चौधरी की इस संबंध में वित्त विभाग सहित अन्य विभागों की अधिकारियों से चर्चा भी हो चुकी है. बैठक में जलदाय विभाग के अधिकारी भी मौजूद रहें. प्रांतीय नल मजदूर यूनियन इंटक, राजस्थान वॉटरवेज कर्मचारी संघ और अभियंताओं से जुड़े अन्य संगठनों ने इसका विरोध शुरू कर दिया है. सभी संगठन आने वाले दिनों में प्रदर्शन कर सरकार के इस निर्णय का विरोध करेंगे. 22 जुलाई को भी जलदाय विभाग से जुड़े कुछ कर्मचारी संगठन सरकार के इस निर्णय के विरोध में प्रदर्शन करेंगे.
जलदाय विभाग बन जाएगा एक निकाय :प्रांतीय नल मजदूर यूनियन इंटक के प्रदेश अध्यक्ष संजय सिंह शेखावत ने कहा कि राजस्थान बजट 2024-25 के परिवर्तन बजट में जलदाय विभाग को जलप्रदाय और सीवरेज निगम बोर्ड में स्थानांतरण किया जाना प्रस्तावित है. जलदाय कर्मचारी संघ इंटक इस काले कानून का पुरजोर विरोध करेगा. बोर्ड निगम लागू होने से विभाग एक निकाय के रूप में दर्ज हो जायेगा. जिस पर राज्य सरकार का परोक्ष रूप से कोई नियंत्रण नहीं रहेगा और सरकार के स्वामित्व में पंजीकृत एजेंसी या कम्पनी के रूप में कार्य करेगा. पेयजल का निजीकरण होने से कर्मचारियों का आर्थिक नुकसान होगा. शेखावत ने कहा कि आगामी 10 दिन में बोर्ड बनने से सरकार ने नहीं रोका तो बड़ी संख्या में कर्मचारी इसका में विरोध करेंगे और जल भवन का घेराव किया जाएगा.
2018 में सरकार झुकी थी : राजस्थान वाटर वर्क्स कर्मचारी संघ भी इसका विरोध कर रहा है. संघ के प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप यादव ने बताया कि पूर्व में भी वर्ष 2018 में राज्य सरकार की ओर से विभाग की जल योजनाओं को राजस्थान जलप्रदाय सीवरेज निगम के अधीन करने की घोषणा की गई थी. तब भी राजस्थान वाटर वर्क्स कर्मचारी संघ और अन्य संगठनों ने इसका कड़ा विरोध किया था. कर्मचारियों के विरोध के बाद सरकार को अपने निर्णय को स्थगित करना पड़ा था.