कुल्लू:हिमाचल प्रदेश में अब किसानों का रुझान प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ा है. इससे किसानों के खेत भी अब जहरीले रसायन से मुक्त हो रहे हैं. इसके अलावा प्राकृतिक खेती के माध्यम से किसानों की आर्थिक की भी मजबूत हुई है. ऐसे में अब जिला लाहौल स्पीति के स्पीति में किसान प्राकृतिक तौर तरीकों से ही खेती करेंगे और इसके लिए अब सभी स्पीति खंड की 13 पंचायत के द्वारा प्रस्ताव पारित किया गया है. स्पीति घाटी की 13 पंचायत और पंचायत समिति द्वारा इस बारे एक प्रस्ताव भी पारित किया गया है और एनओसी भी कृषि विभाग को दी गई है. जिसमें यह लिखा गया है कि 13 पंचायत में किसानों द्वारा जहरीली रसायन मुक्त खेती ही की जाएगी. कृषि विभाग के अधिकारी भी इसी विषय को लेकर प्रशासन के साथ इन सभी पंचायत का संयुक्त निरीक्षण कर चुके हैं.
मटर की फसल से किसानों ने कमाए ₹12 करोड़: स्पीति घाटी में करीब 1272 हेक्टेयर भूमि कृषि और बागवानी योग्य है. इसमें 200 हेक्टेयर भूमि में बागवानी और अन्य फसलों की कृषि की जाती है. स्पीति घाटी में किसानों का बागवानों को प्राकृतिक खेती से जोड़ने के लिए साल 2017 में मुहिम शुरू की गई थी. यहां पर आत्मा प्रोजेक्ट के अधिकारियों द्वारा शिविर का आयोजन किया गया था और 13 पंचायत में 314 किसानों ने प्राकृतिक खेती को अपनाया था. वहीं, साल 2023 में स्पीति घाटी के किसानों ने प्राकृतिक खेती के माध्यम से मटर की फसल की थी और 12 करोड़ रुपए से अधिक मटर की फसल किसानों द्वारा बेची गई थी.
प्राकृतिक खेती से तैयार उत्पादों की मांग बढ़ी: साल 2017 के बाद कृषि विभाग के द्वारा आत्मा प्रोजेक्ट के माध्यम से किसानों का पंजीकरण शुरू किया था और किसानों को प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण दिया था, जिसमें जीवामृत, अन्य जैविक खाद और कीटनाशक तैयार करने के बारे में उन्हें जानकारी दी गई थी. स्पीति घाटी में किसानों द्वारा फूलगोभी, मटर, बंद गोभी, ब्रोकली, मूली, पालक, आलू और जौ की खेती की जाती है. अब प्राकृतिक खेती से तैयार उत्पादों की मांग देश के बड़े शहरों में है और अच्छे दाम भी किसानों को मिल रहे हैं.
जैविक खेती से खेतों की मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ी: स्पीति घाटी की किसान यशे डोमा, तेंजिन, टशी दवा का कहना है कि यहां पर साल में 6 माह कृषि होती है. वहीं, सर्दियों में बर्फबारी और अधिक ठंड होने के चलते किसी भी प्रकार की फसल तैयार नहीं होती है. पहले यहां पर मटर, जौ और आलू की ही खेती की जाती थी. अच्छी फसल के लिए रसायन भी खेतों में डाले जाते थे. लेकिन उससे खेतों में बुरा प्रभाव आना शुरू हुआ और फसलों को तैयार होने में भी कई तरह की दिक्कतें पेश आने लगी. ऐसे में कृषि विभाग द्वारा किसानों को प्राकृतिक खेती के बारे में अवगत करवाया गया. हालांकि शुरुआती दौर में इस खेती के अच्छे नतीजे सामने नहीं आए. लेकिन अब प्राकृतिक खेती के माध्यम से फसल पहले से ज्यादा तैयार हो रही है. खेतों की मिट्टी की गुणवत्ता भी अधिक बढ़ी है. अब कृषि विभाग द्वारा ही प्राकृतिक खेती से तैयार फसलों के लिए बाजार उपलब्ध करवाया जा रहा है. इससे जहां फसलों के अधिक दाम मिल रहे हैं तो वही स्पीति घाटी में इस तकनीक के माध्यम से नई-नई फसले भी किसान उगा रहे हैं.