लखनऊ :किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) में प्रदेशभर से मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं, लेकिन यहां मरीज के साथ रहने वाले तीमारदार भी बीमार पड़ने लगते हैं. मरीजों का कहना है कि यहां पर इलाज अच्छा होता है, इसलिए चाहे जितनी भी दिक्कत हो फिर भी यहीं पर आते हैं. यहां भीड़ इतनी होती है कि मरीज की जांच के लिए तीमारदार इधर से उधर भागता रहता है. दो से तीन दिन अस्पताल का चक्कर लगाने के बाद मरीज को अस्पताल में इलाज उपलब्ध होता है. केजीएमयू में प्रदेश के अन्य जिलों से मरीज इलाज के लिए आते हैं और यहां पर इलाज कराना तीमारदारों को इतना भारी पड़ जाता है कि मरीज के साथ उनकी भी तबीयत अधमरी हो जाती है.
मरीजों ने बताया कि अस्पताल परिसर में मरीज को भर्ती कराना बेहद मुश्किल है. इस दौरान तीमारदार की हालत गंभीर हो जाती है. जांच के लिए इधर उधर भगाया जाता है. बाहर से आने वाले लोगों को मालूम नहीं होता कि कौन सी जांच कहां हो रही है. इसके लिए कहीं हेल्प भी नहीं मिलती है. नाम के लिए हेल्प डेस्क है, लेकिन वहां पर भी किसी को कोई सही जानकारी नहीं होती है.
सीतापुर निवासी महिला तीमारदार ने बताया कि उसके पांच साल के बेटे सर्जरी बीते 3 महीने पहले हुई थी. बच्चे कब मलद्वार नहीं था. केजीएमयू के विशेषज्ञ डॉक्टरों ने बच्चे का ऑपरेशन कर मलद्वार बनाया. यहां पर भर्ती कराने में दिक्कत होती है, लेकिन यहां पर इलाज अच्छा होता है. मरीज को दिखाने या भर्ती कराने में सुबह से शाम हो जाती है. यहां पर जिसका सोर्स है उसका इलाज ही आसानी से हो सकता है. गरीब लोगों का इलाज यहां पर होना मुश्किल है. क्योंकि यहां पर भर्ती कराने में ही तीमारदारों की हालत खराब हो जाती है. कई दिनों तक मरीज को लेकर इधर से उधर लेकर भटकते रहते हैं. अक्सर डॉक्टर बोलते हैं कि दूसरे विभाग में जाएं. कोई केजीएमयू पुरानी बिल्डिंग भेजता है, फिर उधर से दूसरे विभाग में भेज दिया जाता है. इधर से उधर भटकने में मरीज की तबीयत और ज्यादा खराब हो जाती है. हम भी चार दिन बाद मरीज को अस्पताल में भर्ती करा पाए.
लखीमपुर निवासी सूरज शुक्ला ने बताया कि इमरजेंसी केस को केजीएमयू में भर्ती कराने में तीमारदार की हालत खराब हो जाती हैं. लखीमपुर से मरीज को लेकर आए थे. मरीज की हालत काफी गंभीर थी. मरीज की हड्डी पांच जगह से टूटी थी. एक पैर में तीन जगह और दूसरे पैर में दो जगह पैर की हड्डी टूटी हुई थी. मरीज को भर्ती कराने में तीन दिन लग गए. 48 घंटे के बाद मरीज को इलाज मिल पाया. यहां पर इलाज कराना बहुत मुश्किल होता है. गंभीर मरीज को तीन दिन बाद इलाज मिला और तीन दिनों तक मरीज को लेकर हम इधर से उधर भटकते रहे. यहां पर किसी भी कर्मचारी का व्यवहार अच्छा नहीं है न कोई कायदे से बात करता है. डॉक्टर एक जगह से दूसरी जगह जांच के लिए जब भेजते हैं तो मरीज को साथ लेकर दर-दर भटकना पड़ता है और किसी को पता नहीं होता है कि कौन सी जांच कहां होनी हैं.