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गठबंधन की जीत से ज्यादा भाजपा की रणनीतिक हार हैं उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम - UP Lok Sabha Election 2024 Results

आज लोकसभा चुनाव के नतीजे आ रहे हैं. यूपी में भी पूरी तस्वीर कुछ ही घंटे में साफ हो जाएगी. यूपी में भाजपा के दावों की हवा निकलती दिखाई दे रही है, अब तक के रुझान से कुछ ऐसे ही हालात नजर आ रहे हैं.

यूपी की 80 सीटों के रुझान में भाजपा को नुकसान.
यूपी की 80 सीटों के रुझान में भाजपा को नुकसान. (PHOTO Credit; Etv Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jun 4, 2024, 1:42 PM IST

Updated : Jun 4, 2024, 2:12 PM IST

यूपी में अपनी गलतियों से हार रही भाजपा. (VIDEO Credit; Etv Bharat)

लखनऊ :लोकसभा चुनाव 2024 के परिणामों से यूपी में भारतीय जनता पार्टी को बड़ा झटका लगा है. 2014 में प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में 71 और 2019 में 63 सीटें जीतने वाली भाजपा 2024 के चुनावों में भारी पराजय की ओर बढ़ रही है. प्रदेश में भाजपा की इस हार का कारण विपक्षी दलों की अच्छी नीति और उनके बेहतर एजेंडे से ज्यादा भाजपा की रणनीतिक विफलता है. पार्टी ने ज्यादातर ऐसे प्रत्याशियों पर दांव लगाया जो लगातार दूसरी, तीसरी या चौथी बार चुनाव मैदान में थे. इन प्रत्याशियों ने अपने क्षेत्रों में जनता के बीच जाकर काम करने से बेहतर मोदी के नाम पर चुनाव लड़ना सही समझा. नतीजा सामने है. कई प्रत्याशियों के क्षेत्रों में गो बैक के नारे लगे. फिर भी पार्टी ने उन्हें अनदेखा किया. वहीं कुछ बाहरी प्रत्याशियों को भी जनता ने नकार कर यह संदेश दिया कि वह ऐसा प्रत्याशी चाहती है, जो क्षेत्र में रहकर उनके लिए काम करे.

कई चुनावों में अपनी रणनीति का लोहा मनवाने वाली भारतीय जनता पार्टी ने 2024 के लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में अदूरदर्शिता का खामियाजा भुगता है. चुनावों के कई माह पहले से ऐसी खबरें आती रहीं कि भाजपा बड़े पैमाने पर सांसदों के टिकट काटकर नए चेहरों पर दांव लगाएगी, लेकिन चुनाव आते-आते पार्टी ने 55 पुराने प्रत्याशियों पर दांव लगा दिया और चुनाव पूर्व सर्वे और टिकट वितरण के किसी नीति पर कोई ध्यान नहीं दिया.

यही नहीं कई सीटों पर बाहरी प्रत्याशियों को लेकर भी नाराजगी देखी गई. पार्टी ने इस ओर भी कोई ध्यान नहीं दिया. कई नेताओं की सामाजिक छवि तो कई का क्षेत्र से नदारद रहना भारी पड़ा. तमाम लोगों के आरोप हैं कि काशी, मथुरा अयोध्या में तो खूब काम हुए, लेकिन उन गांव-गिरांव का क्या, जहां गरीब रहते हैं?. ऐसे क्षेत्रों के विकास का जिम्मा तो सांसदों और विधायकों का ही होता है. यही हाल बाहरी प्रत्याशियों का है. यदि भाजपा ने पुराने नेताओं पर दांव लगाने के बजाय नए चेहरों को मौका दिया होता, तो शायद स्थिति कुछ और होती. विश्लेषक भी मानते हैं कि यह हार भाजपा से ज्यादा सांसदों के प्रति लोगों की नाराजगी के कारण हुई है.

राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्रा कहते हैं 'इस चुनाव में भाजपा ने तमाम गलतियां की हैं. पहली गलती टिकट बंटवारे में हुई है. चार सौ पार का सपना देखने वाली पार्टी इस तरह की गलती करेगी, यह समझ में नहीं आता है. दस-दस, 15-15 साल की सत्ता विरोधी लहर को समझने में पार्टी पूरी तरह से नाकाम रही. 10 ऐसे सांसदों को टिकट दे दिए गए, जहां उनके खिलाफ वहां की जनता ने गो बैक के नारे लगाए. टिकट काटने और टिकट देने को लेकर किसी तरह का कोई फार्मूला नहीं था. कोई सर्वे और गणित भी नहीं दिखी, जिसके आधार पर कहा जा सकता हो कि किसका टिकट क्यों कटा या किसी किन कारणों से टिकट दिया गया. कई ऐसे लोगों को भी टिकट मिला जो मांग ही नहीं रहे थे.'

राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्रा बताते हैं 'यह कहा जा सकता है कि भाजपा के पास प्रदेश में 80 अच्छे उम्मीदवार थे ही नहीं. यह भाजपा की पहली गलती है. दूसरी गलती यह रही कि चुनाव के बीच में ही इस बात का शोर हो जाना कि मुख्यमंत्री बदला जाएगा, इसने भी भाजपा को नुकसान पहुंचाया है. वहीं भाजपा नेता रूपाला जी के बयान पर ठाकुरों ने जो बैठकें कीं, आंदोलन चलाया और एक-दूसरे के वार्ता की भाजपा को इसका भी नुकसान हुआ. उत्तर प्रदेश में ठाकुर मुख्यमंत्री होते हुए भी क्षत्रिय समाज नाराज हो तो यह एक विरोधाभासी बात है और दूसरी जातियों के लिए एक संदेश भी है. गलती यह भी हुई कि विधायकों और सांसदों को ताकत या अधिकार ही नहीं दिए गए. वह थाने में बात नहीं कर सकता. आरटीओ में बात नहीं कर सकता. खाद्य-रसद में बात नहीं कर सकता. यदि बात करेगा तो सुनवाई नहीं होगी. ऐसे में किसी कमजोर नेता को जनता क्यों चुनेगी, जिसकी कोई सुनवाई ही नहीं है. यह तमाम गलतियां भाजपा की ओर से हुई हैं, जिनका खामियाजा पार्टी को उठाना पड़ रहा है.'

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Last Updated : Jun 4, 2024, 2:12 PM IST

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