लखनऊ :लोकसभा चुनाव 2024 के परिणामों से यूपी में भारतीय जनता पार्टी को बड़ा झटका लगा है. 2014 में प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में 71 और 2019 में 63 सीटें जीतने वाली भाजपा 2024 के चुनावों में भारी पराजय की ओर बढ़ रही है. प्रदेश में भाजपा की इस हार का कारण विपक्षी दलों की अच्छी नीति और उनके बेहतर एजेंडे से ज्यादा भाजपा की रणनीतिक विफलता है. पार्टी ने ज्यादातर ऐसे प्रत्याशियों पर दांव लगाया जो लगातार दूसरी, तीसरी या चौथी बार चुनाव मैदान में थे. इन प्रत्याशियों ने अपने क्षेत्रों में जनता के बीच जाकर काम करने से बेहतर मोदी के नाम पर चुनाव लड़ना सही समझा. नतीजा सामने है. कई प्रत्याशियों के क्षेत्रों में गो बैक के नारे लगे. फिर भी पार्टी ने उन्हें अनदेखा किया. वहीं कुछ बाहरी प्रत्याशियों को भी जनता ने नकार कर यह संदेश दिया कि वह ऐसा प्रत्याशी चाहती है, जो क्षेत्र में रहकर उनके लिए काम करे.
कई चुनावों में अपनी रणनीति का लोहा मनवाने वाली भारतीय जनता पार्टी ने 2024 के लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में अदूरदर्शिता का खामियाजा भुगता है. चुनावों के कई माह पहले से ऐसी खबरें आती रहीं कि भाजपा बड़े पैमाने पर सांसदों के टिकट काटकर नए चेहरों पर दांव लगाएगी, लेकिन चुनाव आते-आते पार्टी ने 55 पुराने प्रत्याशियों पर दांव लगा दिया और चुनाव पूर्व सर्वे और टिकट वितरण के किसी नीति पर कोई ध्यान नहीं दिया.
यही नहीं कई सीटों पर बाहरी प्रत्याशियों को लेकर भी नाराजगी देखी गई. पार्टी ने इस ओर भी कोई ध्यान नहीं दिया. कई नेताओं की सामाजिक छवि तो कई का क्षेत्र से नदारद रहना भारी पड़ा. तमाम लोगों के आरोप हैं कि काशी, मथुरा अयोध्या में तो खूब काम हुए, लेकिन उन गांव-गिरांव का क्या, जहां गरीब रहते हैं?. ऐसे क्षेत्रों के विकास का जिम्मा तो सांसदों और विधायकों का ही होता है. यही हाल बाहरी प्रत्याशियों का है. यदि भाजपा ने पुराने नेताओं पर दांव लगाने के बजाय नए चेहरों को मौका दिया होता, तो शायद स्थिति कुछ और होती. विश्लेषक भी मानते हैं कि यह हार भाजपा से ज्यादा सांसदों के प्रति लोगों की नाराजगी के कारण हुई है.