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स्वतंत्रता सेनानी मनोहर लाल औदिच्य पंचतत्व में विलीन, राजकीय सम्मान के साथ हुआ अंतिम संस्कार

उदयपुर निवासी वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी मनोहर लाल औदिच्य का अंतिम संस्कार बुधवार को राजकीय सम्मान के साथ किया गया. कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक सहित गणमान्य लोगों ने स्वतंत्रता सेनानी को पुष्पचक्र अर्पित कर श्रद्धांजलि दी.

last rites of freedom fighter
मनोहर लाल औदिच्य पंचतत्व में विलीन

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jan 24, 2024, 8:05 PM IST

उदयपुर. स्वतंत्रता आंदोलन में अपना योगदान देने वाले उदयपुर निवासी वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी मनोहर लाल औदिच्य का मंगलवार को देर रात्रि में देहावसान हो गया. वे तकरीबन 99 वर्ष के थे. बुधवार को अशोक नगर मोक्षधाम पर उनका राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया. जिला कलेक्टर अरविंद पोसवाल, पुलिस अधीक्षक डॉ भुवन भूषण यादव सहित अन्य ने पुष्पचक्र अर्पित कर श्रद्धांजलि दी.

अशोकनगर मोक्षधाम पर उनकी पार्थिव देह पर तिरंगा ओढ़ाया गया. जिला कलेक्टर अरविंद पोसवाल, एसपी डॉ भुवन भूषण यादव, एडीएम सिटी राजीव द्विवेदी, एएसपी शिप्रा राजावत, उप महापौर पारस सिंघवी, समाजसेवी रविन्द्र श्रीमाली सहित अन्य अधिकारियों व प्रबुद्धजनों ने पुष्पचक्र अर्पित कर श्रद्धांजलि दी. पुलिस जवानों ने मातमी धून के साथ अंतिम सलामी देते हुए हवाई फायर किए. इसके पश्चात पुलिस जवानों ने ससम्मान तिरंगा ध्वज वापस समेट लिया.

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मनोहर लाल औदिच्य का परिचय: स्वतंत्रता सेनानी मनोहर लाल औदिच्य का जन्म विक्रम संवत् 1982 की आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तद्नुसार 10 जून, 1925 को गरबा का चौक, बाईजीराज की ब्रम्हपुरी, उदयपुर में हुआ. उनके पिताश्री स्व. गणपत लाल एवं मातृ स्व. जशोदा देवी धार्मिक प्रवृत्ति के थे. उन्होंने बचपन से ही बालक मनोहर को अच्छे संस्कार तथा स्वाभिमान के जीवन जीने की शिक्षा दी. प्रारंभिक शिक्षा उदयपुर में प्राप्त करने के बाद मनोहर लाल औदिच्य ने सन 1946 में आगरा विश्वविद्यालय से कला स्नातक (बीए) एवं 1948 में राजपूताना विश्वविद्यालय से एलएलबी की उपाधि प्राप्त की.

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औदिच्य अपने छात्र जीवन से ही भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़ गए थे. सन 1942 में अंग्रेजों के विरुद्ध भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने विद्यार्थियों का नेतृत्व किया. उसी दौरान डिफेन्स ऑफ इंडिया रूल धारा 26 के अन्तर्गत 22 अगस्त, 1942 को अनिश्चितकाल के लिए कारागर में बन्दी बना लिया. इस घटना के बाद पूरे मेवाड़ में आंदोलन उफान पर आ गया. विद्यार्थियों को बंदी बनाए जाने से आक्रोश भड़कने लगा. इस पर सरकार ने 2 सितम्बर, 1942 को बिना शर्त के रिहा किया.

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उसके उपरान्त भी औदिच्य स्वाधीनता आन्दोलन में सक्रिय रहे. औदिच्य को राज्य सरकार द्वारा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयन्ती समारोह व अनेक अन्य अवसरों पर स्मृति चिह्न, ताम्रपत्र, शॉल आदि भेंट कर भी सम्मानित किया गया. युवा अवस्था में ही पिता का स्वर्गवास होने से परिवार की जिम्मेदारी भी बड़ी हिम्मत से निर्वाह की. आजादी के बाद उन्होंने राजस्थान सरकार के सार्वजनिक निर्माण विभाग में अपनी सेवाएं दी. जहां अपनी कर्त्तव्य परायणता एवं ईमानदारी की मिसाल रहे. सन 1980 में विभाग के कार्यालय अधीक्षक के पद से सेवानिवृत्त हुए. सेवानिवृत्ति के पश्चात भी विभाग एवं समाज को हर तरह से सेवा देते रहे.

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