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एमपी की राजनीति और कानपुर का वो लड़का, कमलनाथ के 78वें जन्मदिन पर जानें अनसुने किस्से

उत्तर प्रदेश में जन्मे कमलनाथ ने कैसे मध्य प्रदेश को बनाया कर्मभूमि और बने कांग्रेस के संकटमोचक, जानें इस आर्टिकल में.

KAMALNATHS BIRTHDAY SPECIAL
कमलनाथ के 78वें जन्मदिन पर जानें अनसुने किस्से (Etv Bharat)

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : 5 hours ago

Updated : 5 hours ago

छिन्दवाड़ा : मध्यप्रदेश और देश की राजनीति में अहम किरदारों की चर्चा की जाए तो चुनिंदा नामों में पूर्व सीएम व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ का नाम भी शामिल है. 18 नवंबर 2024 को कमलनाथ 78 साल के हो गए हैं. मध्यप्रदेश में कांग्रेस के वनवास को खत्म कर एक बार फिर सत्ता में स्थापित करने और लंबे समय तक छिंदवाड़ा को कांग्रेस का गढ़ बनाने वाले कमलनाथ की कहानी भी काफी रोचक है. उस दौर में शायद ही किसी ने सोचा होगा कि कानपुर की गलियों में खेलने वाला लड़का एक दिन यूपी से निकलकर एमपी की सत्ता पर काबिज होगा.

उत्तर प्रदेश जन्मभूमि तो मध्य प्रदेश कर्मभूमि

कमलनाथ का जन्म 18 नवम्बर 1946 को कानपुर के खलासी लाइन में हुआ था. कमलनाथ की प्रारंभिक शिक्षा भी कानपुर में ही हुई थी. उनके पिता महेंद्र नाथ और लीला नाथ उन्हें पढ़ा लिखाकर वकील बनाना चाहते थे लेकिन कमलनाथ के मन में जैसे कुछ और ही चल रहा था. कमलनाथ का बचपन कानपुर की गलियों में बीता लेकिन युवावस्था का समय उन्होंने पश्चिम बंगाल के कोलकाता में बिताया. दरअसल, उनके माता-पिता कानपुर छोड़कर कोलकता चले गए थे.

कमलनाथ का आज 78वां जन्मदिन (Etv Bharat)

कोलकाता से ग्रेजुएशन, छिन्दवाड़ा से राजनीति

कमलनाथ की स्कूली शिक्षा दून स्कूल से हुई, इसके बाद सेंट जेवियर कॉलेज कोलकाता से उन्होंने कॉमर्स में ग्रेजुएशन किया. 1976 में वे राजनीति में उतरे जब उन्हें सबसे पहले उत्तर प्रदेश युवक कांग्रेस का प्रभार मिला. इसके बाद 1979 में पहली बार वे छिंदवाड़ा से सांसद चुने गए. 1984, 1990, 1991, 1998, 1999, 2004, 2009 और 2014 में वे लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए, 2018 में मुख्यमंत्री बनने के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने अपने बेटे नकुलनाथ को छिंदवाड़ा लोकसभा का चुनाव लड़ाया और पहली बार अपने बेटे को चुनाव जिताकर संसद में भेजा लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में कमलनाथ का जादू कम होने लगा और उनके बेटे नकुलनाथ चुनाव हार गए.

जन्मदिन मनाते कमलनाथ (Etv Bharat)

कांग्रेस के संकटमोचक, केंद्र में निभाईं अहम जिम्मेदारियां

कमलनाथ 1991 से 1994 तक केंद्रीय वन व पर्यावरण मंत्री, 1995 से 1996 केंद्रीय कपड़ा मंत्री, 2004 से 2008 तक केंद्रीय वाणिज्य व उद्योग मंत्री, 2009 से 2011 तक केंद्रीय सड़क व परिवहन मंत्री, 2012 से 2014 तक शहरी विकास व संसदीय कार्य मंत्री रहे. उन्होंने भारत की शताब्दी और व्यापार, निवेश, उद्योग नामक पुस्तक भी लिखी है. 1968 में वे युवक कांग्रेस में शामिल हुए. 1976 में उत्तर प्रदेश युवक कांग्रेस का उन्हें प्रभार मिला. 1970-81 तक वे अखिल भारतीय युवा कांग्रेस की राष्ट्रीय परिषद के सदस्य रहे. 1979 में युवा कांग्रेस की ओर से महाराष्ट्र के पर्यवेक्षक, 2000-2018 तक वे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव, इसके बाद मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने. फिलहाल वे छिन्दवाड़ा के विधायक हैं.

गांधी परिवार से गहरा नाता

कमलनाथ संजय गांधी के स्कूली दोस्त थे, दून स्कूल से शुरू हुई दोस्ती, मारुति कार बनाने के सपने के साथ-साथ युवा कांग्रेस की राजनीति तक जा पहुंची थी. ऐसा भी कहा जाता है कि यूथ कांग्रेस के दिनों में संजय गांधी ने पश्चिम बंगाल में कमलनाथ को सिद्धार्थ शंकर रे और प्रिय रंजन दासमुंशी को टक्कर देने के लिए उतारा था. इसी दौरान इंदिरा गांधी जब छिंदवाड़ा में कमलनाथ को लेकर पहुंची थी तो उन्होंने कमलनाथ को अपना तीसरा बेटा कहकर छिंदवाड़ा की जनता से उन्हें वोट देने की अपील की थी.

कांग्रेस के संकटमोचक कहे जाते रहे हैं कमलनाथ (Etv Bharat)

जब सिख दंगों में आया कमलनाथ का नाम

1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिख विरोधी दंगों में कमलनाथ का नाम भी आया था लेकिन उनकी भूमिका सज्जन कुमार या जगदीश टाइटलर जैसे नेताओं की तरह स्पष्ट नहीं हो सकी. उन पर आरोप रहे कि वे एक नवंबर, 1984 को नई दिल्ली के गुरुद्वारा रकाबगंज में उस वक्त मौजूद थे, जब भीड़ ने दो सिखों को जिंदा जला दिया था.

हवाला कांड और फिर पत्नी को राजनीति में उतारा

1996 में जब कमलनाथ पर हवाला कांड के आरोप लगे थे तब पार्टी ने छिंदवाड़ा से उनकी पत्नी अलका नाथ को टिकट देकर उतारा था, वो जीत गई थीं लेकिन अगले साल हुए उपचुनाव में कमलनाथ को हार का मुंह देखना पड़ा था. वे छिंदवाड़ा से केवल एक ही बार हारे हैं. वैसे इस हार के पीछे की कहानी बड़ी दिलचस्प बताई जाती है. दरअसल, कमलनाथ चुनाव हार गए थे तो उन्हें तुगलक लेन पर स्थित मिला हुआ बंगला खाली करने का नोटिस मिला, पहले उन्होंने कोशिश की वह बंगला उनकी पत्नी के नाम अलॉट हो जाए लेकिन नियमों के मुताबिक पहली बार चुनाव जीतने वाले लोगों को उतना बड़ा बंगला अलॉट नहीं किया जा सकता था, इसलिए एक साल बाद ही जब हवाला कांड की बात ठंडी हुई तो कमलनाथ ने अपनी पत्नी का इस्तीफा करा दिया लेकिन उपचुनाव में कमलनाथ को सुंदर लाल पटवा ने हरा दिया था.

एमपी में कराई कांग्रेस की वापसी

2018 के विधानसभा चुनाव में कमलनाथ ने कांग्रेस का सूखा खत्म कर मध्यप्रदेश में कांग्रेस की लंबे समय बाद वापसी कराई लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों की बगावत के बाद उनकी सरकार गिर गई. इस दौरान कमलनाथ पर उनकी ही पार्टी के नेताओं ने गंभीर आरोप लगाए. 2023 में फिर से कमलनाथ की अगुवाई में कांग्रेस मैदान में थी लेकिन जनता ने बीजेपी का साथ दिया और 2024 में तो वे अपने गढ़ छिन्दवाड़ा को भी नहीं बचा पाए. लोकसभा में उनके बेटे नकुलनाथ को हार का मुंह देखना पड़ा.

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