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कैराना में 'पलायन' से खिले कमल को क्या रोक पाएगा हसन परिवार, देखें क्या हैं समीकरण - Kairana Lok Sabha Seat

कैराना में हसन परिवार का मतलब चारों सदनों के सदस्य रहे मरहूम मुनव्वर हसन है. छात्र संघ चुनाव से लेकर लोकसभा चुनाव तक में इन दोनों परिवारों का अच्छा-खासा दखल रहता था. शायद यही वजह है कि हसन परिवार से विधायक और सांसद चुने गए.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Mar 28, 2024, 3:53 PM IST

सहारनपुर: Lok Sabha Elections 2024: कैराना लोकसभा सीट का नाम जेहन में आते ही जहां पलायन मामला ताजा हो जाता है. वहीं हसन और हुकुम सिंह परिवारों का नाम भी खुद-ब-खुद जुबान पर आ जाता है. लंबे समय तक यहां की राजनीतिक विरासत इन दोनों परिवारों के ही इर्द-गिर्द घूमती रही है.

यहां हसन परिवार का मतलब चारों सदनों के सदस्य रहे मरहूम मुनव्वर हसन है. छात्र संघ चुनाव से लेकर लोकसभा चुनाव तक में इन दोनों परिवारों का अच्छा-खासा दखल रहता था. शायद यही वजह है कि हसन परिवार से विधायक और सांसद चुने गए.

इस बात के चुनावी परिणाम गवाह हैं कि एन वक्त पर यहां मुद्दे मायने नहीं रखते, बल्कि ध्रुवीकरण हावी हो जाता है. इस बार हसन परिवार की इकरा हसन को INDIA गठबंधन की ओर से सपा ने चुनावी मैदान में उतारा है. जबकि बाबू हुकुम सिंह परिवार भाजपा प्रत्याशी प्रदीप चौधरी को समर्थन कर रहा है.

बाबू हुकुम सिंह भी कैराना सीट से विधायक और सांसद रह चुके हैं. उनके निधन के बाद भाजपा ने उनकी बेटी को चुनाव लड़ाया था लेकिन, हसन परिवार की तब्बसुम हसन से हार गई थीं.

कैराना लोकसभा सीट सन 1962 में अस्तित्व में आई थी. 70 के दशक में बाबू हुकुम सिंह ने सेना छोड़कर राजनीति में कदम रखा. 1974 में वह यहां से विधायक बने. हुकुम सिंह यहां से लगातार चार बार विधानसभा चुनाव जीते. 2014 में भाजपा ने हुकुम सिंह को लोकसभा का टिकट दिया.

मोदी लहर में उन्हें पांच लाख से ज्यादा वोट मिले. सपा के नाहिद हसन को उन्होंने करीब दो लाख वोटों से हराया. हुकुम सिंह के निधन के बाद उनकी बेटी मृगांका सिंह ने उनकी राजनीतिक विरासत संभाली. पार्टी ने 2018 लोकसभा उपचुनाव में उन्हें टिकट दिया, लेकिन वह गठबंधन की घेराबंदी से हार गई थी.

उधर, 70 के दशक में ही कैराना में हसन परिवार के अख्तर हसन का सियासी दबदबा था. अख्तर हसन कांग्रेस से सांसद रहे हैं. उनके पुत्र मुनव्वर हसन के नाम सबसे कम उम्र में लोकसभा, विधानसभा, राज्यसभा और विधान परिषद में पहुंचने का रिकॉर्ड बना. वह दो बार विधायक, दो बार सांसद और एक बार राज्यसभा और एक बार विधान परिषद सदस्य रह चुके हैं.

मुनव्वर हसन के निधन के बाद उनकी पत्नी तबस्सुम हसन ने उनकी राजनीतिक विरासत संभाली और 2009 में वह बसपा के टिकट से सांसद चुनी गईं. 2014 में हुकुम सिंह के लोकसभा में जाने के बाद रिक्त हुई कैराना विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में सपा के टिकट पर हसन परिवार के नाहिद हसन चुनाव जीते.

सांसद हुकुम सिंह के निधन के बाद रिक्त हुई इस सीट पर गठबंधन ने रालोद के सिंबल पर तबस्सुम हसन को टिकट दिया और उन्होंने भाजपा से सीट छीन ली. हसन और हुकुम सिंह परिवार सामाजिक तौर पर गुर्जर बिरादरी से हैं. जहां हुकुम परिवार हिन्दू गुर्जर है तो वहीं हसन परिवार मुस्लिम गुर्जर हैं.

कैराना लोकसभा सीट को जाट सैनी के बाद (हिंदू मुस्लिम) मिलाकर गुर्जर बाहुल्य सीट भी माना जाता है, जिसके चलते दोनों परिवारों का स्थानीय निकाय से लेकर जिला पंचायत और प्रधानी के चुनाव तक में दबदबा रहता है.

छात्र संघ चुनाव की राजनीति भी इन दोनों परिवारों के आसपास घूमती है. प्रत्याशी विजयी पताका लहराने के लिए इन परिवारों का समर्थन हर हाल में हासिल करना चाहते हैं. स्व. बाबू हुकुम सिंह के भतीजे कलस्यान खाप के चौधरी रामपाल सिंह और पोते अनुज चौधरी बताते हैं कि पहले हसन परिवार से उनके मधुर संबंध थे.

किसी भी मामलों में एक-दूसरे से सलाह ली जाती थी. लेकिन, वर्ष 1989 में हसन परिवार का टिकट कटने के बाद दोनों परिवारों में संबंध पहले जैसे नहीं रहे. हालांकि शादी समारोह में आना-जाना जारी है. भाजपा प्रत्याशी प्रदीप चौधरी को मजबूती के साथ चुनाव लड़वाया जाएगा.

हसन परिवार की इकरा हसन का कहना है कि राजनीति के चलते राहे जुदा है. लेकिन, शादी-समारोह में अभी भी दोनों परिवार एक-दूसरे के यहां पहुंचते हैं. कैराना में हिंदू गुर्जरों की कलस्यान चौपाल और मुस्लिम गुर्जरों के हसन परिवार का चबूतरा राजनीति का केंद्र रहा है. हुकुम सिंह के बड़े भाई कलस्यान खाप के चौधरी मुख्तियार सिंह गुर्जरों 84 गांवों के चौधरी थे.

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