लखीमपुर खीरी: यूपी का लखीमपुर जनपद पीलीभीत टाइगर रिजर्व के क्षेत्र में आता है. दक्षिण खीरी वन प्रभाग के मोहम्मदी रेंज के बिहारीपुर फार्म के किसान और ग्रामीण बाघों को अपना दोस्त मानते हैं. राजपाल सिंह मुस्कुराते हुए कहते हैं कि टाइगर कभी हमें देखता है तो कभी हम टाइगर को देखते हैं. कभी कभी आमना-सामना हो जाता. कभी हम साइकिल पर होते कभी पैदल या ट्रैक्टर पर, लेकिन टाइगर अपने रस्ते चला जाता और हम अपने. जब से हमारे इलाके में बाघ बढ़े हैं खेतों में फसलों का नुकसान भी काफी कम हो गया है. हमारे लिए तो टाइगर 'फ्रेंड' ही हो गया है.
बाघों की संख्या 2014 के बाद से बढ़नी शुरू हुई:यूपी के लखीमपुर खीरी जिले के दक्षिण खीरी वन प्रभाग के मोहम्मदी रेंज के बिहारीपुर फार्म के रहने वाले राजपाल सिंह कहते हैं हमारा फार्म जंगल से सटा हुआ है. 2014 में हमने जंगल में एक बड़ा बाघ देखा था. इस इलाके में बाघों को इससे पहले कम ही देखा गया. शायद वो भारी भरकम बाघिन थी. इसके बाद बाघों के शावक खेतों में दिखने लगे.
कभी हमला नहीं करते बाघ:एक दिन तो हद ही हो गई. एक साथ छह बाघ देखे गए. ये बात जब हमने जंगल के एक अफसर को बताई वो भी मानने को तैयार नहीं थे. राजपाल सिंह कहते हैं कि बाघों से हमें कोई दिक्कत नहीं और ना ही उनको हमसे. हमारे खेतों, यहां तक कि फार्म के आंगन तक में कभी-कभी बाघ आ जाते पर कभी हमला नहीं किया. हमारे तो दोस्त बन गए हैं ये टाइगर.
कैसा है बाघों और इंसान का रिश्ता:बाघों और मनुष्य का रिश्ता इतिहास में कभी बहुत मधुर नहीं रहा. लेकिन, राजपाल सिंह की बात बाघ और मनुष्य के सहअस्तित्व की एक नई इबारत लिखती हुई दिख रही. यूपी के तराई में बाघों की संख्या अच्छी है पर 1974 के पहले यहां बाघों की दुनिया सिमट सी गई थी. अंधाधुंध शिकार और जंगलों के कटान ने बाघों के अस्तित्व पर सवाल खड़ा कर दिया था.
प्रोजेक्ट टाइगर ने बाघों की बढ़ाई सुरक्षा:प्रोजेक्ट टाइगर और नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (NTCA) ने बाघों की सुरक्षा और संवर्धन पर तेजी से काम शुरू किया. जिसका नतीजा है कि बाघ अपने पुरखों की धरती पर लौट रहे हैं. खीरी जिले का मोहम्मदी इलाका भी कभी जंगलों से आबाद था पर अब जंगलों के कुछ पैच ही बचे हैं. बाघ कभी इन छोटे-छोटे जंगलों में तो कभी किसानों के गन्नों के खेतों को अपना आशियाना बना कुनबा बढ़ा रहे.
मन की बात में पीएम मोदी ने बाघों की बात की:देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मन की बात कार्यक्रम में भी ग्लोबर टाइगर-डे के पहले रविवार को मन की बात में बाघमित्रों की बात की. वन विभाग विश्व प्रकृति निधि (WWF) के साथ मिलकर तराई में बाघ मित्र योजना चला रही, जिसमें जंगल किनारे गांवों में रहने वाले किसानों युवाओं को बाघ मित्र के रूप में चयनित कर बाघों के बिहेवियर और उनसे सुरक्षा के बारे में ट्रेनिंग दी जाती. बाघ मानव का दुश्मन नहीं ये बात गांव वालों को समझाई जाती है.
बाघों की सुरक्षा में बाघमित्रों की भूमिका:खीरी जिले के ही मूड़ा गालिब गांव के बाघ मित्र मोहित गुप्ता कहते हैं, 2018 से हम बाघ मित्र के रूप में काम कर रहे. कहीं बाघ का मूवमेंट हो या किसी पर हमला हो तो हम पहुंचकर लोगों को समझाते हैं कि पहले अपनी सुरक्षा करें फिर बाघ की सुरक्षा. क्योंकि दोनों ही जरूरी हैं. जंगल किनारे रहने वाले लोगों पर हमेशा बाघों के हमले का खतरा मंडराता रहता पर हमारा काम है दोनों की सुरक्षा.
यूपी में बढ़ा बाघ का कुनबा:यूपी में भी बाघ अपना दायरा बढ़ा रहे और कुनबा भी. भीरा इलाके के किशनपुर सेन्चुरी के पास रहने वाले किसान गुरजीत सिंह कहते हैं,"हमारे फार्म और खेतों में बाघ रहते हैं, ब्रीडिंग भी करते, हमें कोई हानि नहीं पहुंचाते, बल्कि बाघों के आने से जंगली सुअर, नीलगाय आदि से हमारी फसलें सुरक्षित हो रहीं हैं. बाघ बिल्कुल हमारे दोस्त जैसे हैं. हाल ही में एक बाघिन शावकों संग आई थी खेतों में."
बाघ कब करता है हमला:नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (NTCA) के 2023 में जारी आंकड़ों के मुताबिक दुधवा टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या 43% तक बढ़ गई थी. वहीं दुधवा टाइगर रिजर्व के अंदर बाघों की संख्या 2018 की तुलना में 64 फीसदी तक बढ़ गई है. यह बढ़ोतरी देश के सभी टाइगर रिजर्व की तुलना में सबसे ज्यादा थी. बाघ जिसे धारीवाला संत (striped monk) कहा जाता, स्वभाव से बहुत शांत होता है. आम तौर पर बाघ मनुष्यों पर ऐसे हमला भी नहीं करता. जब तक उसे अपनी जान या शावकों की जान का खतरा न लगे.
कैसा होता है बाघों का व्यवहार:बाघों के व्यवहार को जानने वाले सीनियर आईएफएस अधिकारी रमेश पाण्डेय कहते हैं,"बाघों के संरक्षण की अलग चुनौतियां हैं, पर बाघ मनुष्य का दोस्ताना रिश्ता ही बाघों को बढ़ा रहा है. बिना दोस्त बने सह-अस्तित्व कैसा?"