भरतपुर :मानव सेवा में देश-दुनिया में अनूठी पहचान बना चुका अपना घर आश्रम लावारिस लोगों को अपनों तक पहुंचाने में भी अहम भूमिका निभा रहा है. मानसिक विमंदित हालत में घरों से निकलने वाले बेसहारा लोगों (प्रभुजन) को अपना घर आश्रम पहले आश्रय देता है, फिर उपचार और देखभाल करता है और आखिर में प्रभुजनों के स्वस्थ होने के बाद उनके अपनों को ढूंढने व उन तक पहुंचाने का काम करता है. बीते 24 साल में करीब 26 हजार बेसहारा, लावारिस प्रभुजनों को अपनों तक पहुंचाया जा चुका है. इनमें से करीब 15 हजार मां-बहनें शामिल हैं. आइए जानते हैं कि अपना घर आश्रम की टीम मानव सेवा से लेकर अपनों से मिलाने तक का यह काम किस तरह करती है.
केस 1 : 18 साल बाद जीवित मिली पत्नी : कर्नाटक निवासी शिवलिगप्पा की पत्नी ललिता 18 साल पहले घर से निकल गई थी. काफी तलाशने पर भी ललिता नहीं मिली. ऐसे में शिवलिगप्पा ने पत्नी को मृत समझ लिया. ऐसे में छोटे दो बेटे और एक छोटी बेटी की परवरिश के लिए शिवलिगप्पा ने महानंदा के साथ दूसरी शादी कर ली. दूसरी पत्नी महानंदा ने इन तीनों बच्चों की परिवरिश की और पढ़ा लिखाकर उन्हें बड़ा किया, लेकिन शिवलिगप्पा को अपनी पहली पत्नी ललिता के अपना घर आश्रम में जीवित और स्वस्थ होने की सूचना मिली. अपनी दूसरी पत्नी की सहमति पर न केवल शिवलिगप्पा अपनी पहली पत्नी ललिता को लेने आश्रम पहुंचे, बल्कि उससे फिर से शादी भी की.
इसे भी पढ़ें -18 साल बाद जीवित मिली पहली पत्नी, 16 शृंगार कराकर पति ले गया घर
केस 2 : दो दशक बाद जीवित मिला बेटा :उत्तर प्रदेश के जिला ललितपुर के निवासी प्रभुजी पप्पूराम (50) मानसिक रूप से कमजोर होने के कारण 22 साल पहले बिना बताए घर से निकल गए थे. 1 मार्च, 2024 को पप्पूराम को जोधपुर से अपना घर आश्रम भरतपुर में सेवा व उपचार के लिए भर्ती कराया गया. सेवा और उपचार के बाद पप्पूराम के स्वास्थ्य में सुधार हुआ तो उन्होंने अपना पता बताया और अपना घर आश्रम की पुनर्वास टीम ने उनके घर के पते की सूचना संबंधित पुलिस थाना ललितपुर में भिजवाई. उसके बाद पप्पूराम के परिजनों को उनके जीवित और स्वस्थ होने की सूचना मिली. परिजनों ने बताया कि हम तो पप्पूराम को मृत समझ बैठे थे. सूचना पर मां और परिजन अपना घर आश्रम पहुंचे और 22 साल बाद मिले अपने बेटे को लेकर खुशी खुशी घर लौट गए.