किशनगंजः बिहार का किशनगंज एक ऐसा जिला है जहां 70 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की है. आबादी को देखकर कोई भी अंदाजा लगा सकता है कि यहां मुस्लमानों का वर्चस्व होगा लेकिन यह गलत होगा. किशनगंज में हिन्दू-मुस्लिम इतने प्यार से रहते हैं कि इस जिले को गंगा जमुनी तहजीब के नाम से जाना जाता है. चाहे हिन्दू की पूजा पाठ हो हो या फिर मुस्लिमों का त्योहार लोग एक साथ खुशी से मनाते हैं. इसका उदाहरण हर साल रामनवमी, दुर्गा पूजा, मोहर्रम और ईद में देखने को मिलता है.
बुधवार को मोहर्रमः 7 जुलाई से मोहर्रम का महीना शुरू हो हो गया था. 17 जुलाई बुधवार को 10वां दिन है. इस दिन ताजिया निकाल कर लोग मातम मनाते हैं. हार साल की भांति इस साल भी किशनगंज जिले की हिन्दू महिलाएं ताजिया का निर्माण की है. पोठिया प्रखंड क्षेत्र अंतर्गत कस्वाकलियागंज पंचायत स्थित कलियागंज चकबंदी गांव में हर साल हिन्दू महिलाएं ताजिया का निर्माण करती है. यहां के मुसलमान मन्नत पूरा होने पर हिंदू महिलाओं के द्वरा बनाए गए ताजिया को कर्बला मैदान पर चढ़ाते हैं.
'समाज में कोई भेदभाव नहीं': स्थानीय निवासी मो. गफूर आजाद बताते हैं कि हम सभी के बीच कभी कोई भेदभाव नहीं रहता है हम लोग मिल-जुल कर मोहर्रम मनाते आ रहे हैं. बुद्धिजीवी वर्ग के लिए यह किसी अचरज से कम नहीं है. लोग कहते हैं कि उन्होंने ऐसा कही नहीं देखा. दोनों समुदाय मोहर्रम मानते हैं और दोनों समुदाय रामनवमी भी मनाते हैं.
"हमलोग यहां से ताजिया खरीदकर ले जाते हैं. इसका इस्तेमाल मोहर्रम में किया जाता है. यहां हिन्दू समाज के लोग ताजिया मनाते हैं. यहां गंगा-जमुना की तहजीब देखने को मिलता है. यह वर्षों से चला आ रहा है. यहां कोई भेदभाव नहीं है."-मो. गफूर आजाद
वर्षों से ताजिया बना रही हैं महिलाएंः बता दें कि मोहर्रम में ताजिया निर्माण से कारीगरों की अच्छी कमाई भी हो जाती है. जिले के कस्बा कलियागंज गांव में एक दर्जन से अधिक हिंदू परिवार हैं जो मोहर्रम में ताजिया का निर्माण करते हैं. ताजिया का निर्माण करने वाले परिवारों का कहना है कि सालों से उनके द्वारा ताजिया का निर्माण किया जाता है. पहले उनके बाप-दादा ताजिया बनाते थे और अब वे लोग बनाते हैं.