चंडीगढ़:हरियाणा विधानसभा चुनाव को लेकर मतदान कल, शनिवार को होगा. सूबे में सभी दलों ने पूरी ताकत के साथ प्रचार किया. क्या अनुसूचित जाति के मुद्दे का बीजेपी को फायदा मिल सकता है. क्या बेरोजगारी के मुद्दे पर बिना पर्ची-खर्ची का मुद्दा भारी पड़ेगा या फिर अग्निवीर योजना का असर चुनाव में दिखेगा. आइए इस रिपोर्ट के जरिए विस्तार से समझते हैं.
एससी वोट बैंक पर हुआ सियासी घमासान: हरियाणा में इस बार प्रदेश के करीब 22 फीसदी एससी वोट बैंक पर सभी दलों की नजर है. इस वोट बैंक को साधने के लिए जहां इनेलो और जेजेपी ने उत्तर प्रदेश की दो प्रमुख पार्टियों बीएसपी और एएसपी से समझौता किया. वहीं, कांग्रेस और बीजेपी जिनके बीच इस बार 90 सीटों में से 80 के करीब सीटों पर सीधी टक्कर दिख रही है. उनकी भी निगाहें इस वोट बैंक पर टिकी हुई है.
सबसे बड़े चुनावी मुद्दे से कांग्रेस को नुकसान!: लोकसभा चुनाव में बीजेपी को इस वोट बैंक का नुकसान हुआ तो पार्टी ने उसको साधने के लिए पूरी ताकत लगा दी. कांग्रेस की सबसे बड़ी दलित नेता कुमारी शैलजा को लेकर एक पार्टी कार्यकर्ता की विवादित टिप्पणी के बाद बीजेपी ने इस मुद्दे को ऐसे लगा की वह लगातार कांग्रेस पर हावी दिखी. वहीं, सोशल मीडिया के जरिए भी बीजेपी ने कांग्रेस और हुड्डा को एससी विरोधी बताने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी.
खास चर्चा में रहीं शैलजा: वहीं, कुमारी सैलजा भी कहीं न कहीं खुद की अनदेखी की वजह से चुनावी प्रचार से ज्यादातर नदारद ही रहीं. हालांकि राहुल गांधी ने हुड्डा और शैलजा के हाथ भी मिलाए. लेकिन उसका भी प्रभावी असर नहीं दिखा. जिसकी वजह से कांग्रेस इस मामले में बैकफुट पर दिखाई दी. पार्टी की लाख कोशिशों के बावजूद पार्टी को इस वोट बैंक के खिसकने का डर सता रहा है. हालांकि अंतिम वक्त में अशोक तंवर को कांग्रेस के पाले में लाकर राहुल गांधी ने एससी वोट बैंक को कंसोलिडेट करने की कोशिश की. इस में पार्टी कितनी कामयाब होती है, इसका चुनाव नतीजों से पता चलेगा.
बेरोजगारी का मुद्दा छाया रहा:हरियाणा में पिछले कई सालों से कांग्रेस बेरोजगारी के मुद्दे पर सरकार को घेरती रही है. वहीं, चुनाव प्रचार में भी इस मुद्दे पर कांग्रेस बीजेपी पर लगातार आक्रामक रही. हरियाणा में दो लाख नौकरी देने के साथ ही कांग्रेस ओपीएस को लागू करने की बात लगातार प्रचार अभियान के दौरान कहती रही. हालांकि बीजेपी बिना पर्ची बिना खर्ची के उनकी सरकार में नौकरी देने की बात कहती रही. वहीं, कांग्रेस पर भर्ती रोको गैंग के तहत नौकरियों को कोर्ट में घसीटकर युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने का भी आरोप लगाया.
कांग्रेस सरकार को रेगुलर भर्ती न करने को लेकर घेरती रही. एचकेआरएम के तहत भर्तियों पर भी सवाल उठाती रही. वहीं, बेरोजगारी की वजह से प्रदेश के युवाओं का डोंकी रूट से विदेश जाने के लिए मजबूर करने का आरोप भी लगाया. हालांकि बीजेपी खुद की सरकार में सबसे ज्यादा नौकरियां बिना खर्ची बिना पर्ची देने की बात कहती रही. वहीं, कांग्रेस के कुछ उम्मीदवारों के उनकी सरकार आने पर नौकरियों को लेकर दिए गए बयानों की वजह से भी बीजेपी के निशाने पर रही. हालांकि युवाओं के वोट बैंक में दोनों दलों के तर्क कितनी सेंध लगाएंगे यह 8 अक्टूबर को पता चलेगा.
अग्निवीर योजना का दिखेगा असर!:हरियाणा में हजारों युवा सेना में भर्ती होने के लिए तैयार रहते हैं. लेकिन केंद्र सरकार की अग्निवीर योजना के बाद उस पर पड़े असर को कांग्रेस लगातार राष्ट्रीय स्तर पर तो उठा ही रही है, वहीं हरियाणा विधानसभा चुनाव में भी यह मुद्दा लगातार उठाती रही. इसकी वजह से बीजेपी को दक्षिण हरियाणा में नुकसान उठाना पड़ सकता है. क्योंकि इस क्षेत्र से सबसे ज्यादा युवा सेना में भर्ती होने के लिए आगे रहते हैं.
हालांकि प्रदेश की बीजेपी सरकार ने इस मुद्दे की काट के लिए सरकारी नौकरियों में अग्निवीरों के क्लियर अलग से आरक्षण का प्रावधान किया. जिसके जरिए बीजेपी ने कांग्रेस की तरफ से लगातार उठाए जा रहे इस मुद्दे को बेअसर करने की कोशिश की. लेकिन इसका कितना फायदा बीजेपी को मिलेगा, और क्या इसका हरियाणा में पार्टी को नुकसान होगा, उसका सही आंकलन तो चुनावी नतीजों के बाद सामने आएगा.
किसानों का मुद्दा बना रहा अहम:किसान आंदोलन और उसके बाद भी अभी तक किसानों की मांगों को लेकर केंद्र सरकार के रुख के खिलाफ किसान लामबंद है. शंभू बॉर्डर पर किसानों ने डेरा डाल रखा है. वहीं, हरियाणा चुनाव में भी यह मुद्दा बीजेपी के लिए चुनौती बना रहा. कांग्रेस इस मुद्दे पर लगातार बीजेपी पर हमलावर रही. किसान आंदोलन में शहीद किसानों को लेकर सरकार को घेरती रही. वहीं, प्रदेश सरकार के किसान आंदोलन के खिलाफ की गई कार्रवाई पर भी वह आक्रामक रही. जबकि बीजेपी लगातार खुद को किसान हितैषी बताती रही और हरियाणा में 24 फसलें एमएसपी पर खरीदने की बात कहती रही.