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इसे कहते हैं जज्बा...बिहार की नजमा ने नहीं मानी चुनौतियों से हार, सिक्की कला से अपने सपनों को कर रही साकार - BIHAR NAJDA KHATOON GRASS CRAFT

सूरजकुंड मेला में देश भर से आए कलाकारों के सैंकड़ों स्टॉल लगे हुए हैं. हर स्टॉल में कलाकार के कला की बारिकी दिख रही है.

BIHAR NAJDA KHATOON GRASS CRAFT
सूरजकुंड मेला में बिहार की नाजदा का स्टॉल (ETV Bharat)

By ETV Bharat Haryana Team

Published : Feb 13, 2025, 5:32 PM IST

Updated : Feb 13, 2025, 10:27 PM IST

फरीदाबाद:फरीदाबाद में सूरजकुंड मेला 2025 का आयोजन 7 फरवरी से 23 फरवरी तक किया गया है. मेले में पूरे देश भर के अलग-अलग राज्यों के 100 से अधिक स्टॉल लगाए गए हैं. इन स्टॉल में कलाकार अपनी हस्तशिल्प कला के जरिए बनाए चीजों को बेच रहे हैं. यहां कई ऐसे कलाकार भी आए हैं, जिन्होंने लंबे संघर्ष के बाद मुकाम हासिल किया है. इन्हीं में बिहार के मधुबनी जिला की नाजदा खातून भी एक है.

मधुबनी की नाजदा ने लगाया स्टॉल:सूरजकुंड मेले में मधुबनी जिले से आई नाजदा खातून ने भी अपना स्टॉल लगाया है. नाजदा खातून ग्रास क्राफ्ट यानी कि सिक्की आर्ट के जरिए कई तरह की चीजों को तैयार कर रही हैं. इस आर्ट के जरिए नाजदा घास से अलग-अलग तरह की चीजें बनाती है, जिसमें लेडीज बैग, टोकरी, मूर्तियां, होम डेकोरेटर, बर्तन, इयररिंग, डॉल्स, चूड़ी जैसी चीजें शामिल है.

पति रिक्शा चलाते थे: ईटीवी भारत ने बिहार की नाजदा खातून से बातचीत की. नाजदा ने बताया, " मैं बिहार के मधुबनी जिले से आई हूं. साल 2011 से मैं सुमेरा घास से कई तरह के प्रोडक्ट तैयार करती आ रही हूं. जब मैं 10 साल की थी, तब मैंने इस कला को अपने दादी से सीखा था. जब मेरी शादी हो गई तो ये कला मुझसे छूट गयी. मैं अपने ससुराल आ गई. मेरे ससुराल की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. मेरे पति रिक्शा चलाकर घर का भरण पोषण किया करते थे. उस समय घर का खर्चा ठीक ढंग से नहीं चल पा रहा था."

12 साल तक किया सिलाई का काम:नाजदा के अनुसार, "आर्थिक स्थिति सही न होने के कारण मैंने सिलाई का काम सीखा और लगभग 12 साल तक सिलाई करके अपने पति का हाथ बंटायी. इस दौरान बच्चे भी हो गए. खर्चा और ज्यादा बढ़ गया. सिलाई के काम से भी गुजारा नहीं हो पा रहा था. इसके बाद मैंने सिलाई का काम छोड़ दिया."

बिहार की नाजदा का स्टॉल बना आकर्षण का केन्द्र (ETV Bharat)

कई सरकारी दफ्तरों के लगाए चक्कर:नाजदा ने आगे बताया, " इसके बाद दादी मां से जो सिक्की कला सिखा था, उस आर्ट से मैंने कई चीज बनायी. उन चीजों को लेकर मैं कई सरकारी दफ्तर के चक्कर काटने लगी. ताकि मेरी बनाई चीज बिक जाए. मुझे ये पता नहीं था कि ये सामान कहां बिकेगा? आर्थिक स्थिति भी सही नहीं थी. जब कई दिनों तक सामान नहीं बिका तो गुस्से में मैं सारे को तोड़ दी. "

फिर से शुरू किया काम:नाजदा अपनी संघर्ष की कहानी बताते हुए कहती हैं कि, "फिर एक दिन अचानक कुछ मन में आया और मैं सामान बनाना फिर से शुरू कर दी. मैं अपने बनाए सामानों को लेकर बेचने के लिए बाजार जाती थी. इस दौरान किसी ने मुझे कहा कि यह कला हस्तशिल्प कला में आता है. आप हस्तशिल्प के ऑफिस में जाओ."

बिहार हैंडीक्राफ्ट से मिली मदद: नाजदा बताती है कि "मैं अपने बनाए प्रोडक्ट को लेकर हस्तशिल्प कला बिहार के ऑफिस में गई. ऑफिस में बैठे अधिकारियों ने मेरे बनाए सामानों को देखा. और भी कई चीजें मुझसे बनवाई. उनको मेरा काम काफी पसंद आया. इसके बाद बिहार हैंडीक्राफ्ट की ओर से मुझे अलग-अलग हैंडीक्राफ्ट मेले में जाने की सुविधा दी गई. मैं कई राज्यों में अभी तक जा चुकी हूं. जब मुझे स्टेट अवार्ड मिला, उसके बाद मैंने अपने पति को भी रिक्शा चलाना छुड़वा दिया. उनको भी ये कला मैंने सीखाया. अब दोनों मिलकर इस काम को कर रहे हैं."

कई राज्यों में लगे मेले में लगा चुके हैं स्टॉल:नाजदा ने कहा, "अब हमारी आर्थिक स्थिति भी पहले से बेहतर हो गई है. मैंने अपने बच्चों को पढ़ाया. दो बेटियों की शादी करा ली. बेटा पढ़ रहा है. और भी लोगों को मैंने ये कला सीखाया है. हम कई सालों से इस मेला में आ रहे हैं. इस कला के जरिए कई तरह की चीजों को हम बनाते आ रहे हैं. इस कला ने हमारे जीवन को बदल दिया. अब जीवन में सब कुछ सही से चल रहा है.जहां भी इस तरह का मेला लगता है, वहां पर हम दोनों पति-पत्नी जाते हैं और अपने बनाए सामानों को अच्छे दामों में बेचते हैं. इससे हमें काफी अच्छा मुनाफा हो जाता है."

क्या है सिक्की आर्ट:दरअसल, ग्रास क्राफ्ट यानी कि सिक्की आर्ट में घासों से अलग-अलग तरह के प्रोडक्ट बनाए जाते हैं. नाजदा खातून जिस घास से प्रोडक्ट बनाती है, उसे सुमेरा घास कहा जाता है. यह घास अमूमन जंगलों में, नदी किनारे या फिर रेलवे ट्रैक के किनारे बड़े आसानी से मिल जाता है. इसके अलावा इस आर्ट में खजूर के पत्तों से भी अलग-अलग तरह के प्रोडक्ट बनाए जाते हैं.

ऐसे किया जाता है प्रोडक्ट तैयार: सबसे पहले इस घास को काटकर लाया जाता है. उसे पानी में भिगोकर कुछ घंटे के लिए छोड़ दिया जाता है. जब यह पूरी तरह से नरम हो जाता है, उसके बाद इसे पानी से निकाल कर एक घास को दो टुकड़ों में अलग कर दिया जाता है. फिर घास को अलग-अलग रंगों से रंगा जाता है. फिर बड़ी सुई से कलाकार अलग-अलग तरह के प्रोडक्ट को बनाते हैं.

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Last Updated : Feb 13, 2025, 10:27 PM IST

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