कुल्लू:हिमाचल प्रदेश में बर्फबारी होने के बाद अब बागबान अपने बगीचे में नए पौधे लगाने में जुट गए हैं. बागवानों ने बगीचे में खाद डालने का भी काम शुरू कर दिया है. वहीं, सेब की फसल के लिए भी यह बर्फबारी वरदान मानी जा रही है. सेब की अर्ली वैरायटी के लिए चिलिंग ऑवर्स भी पूरे हो गए हैं. सेब की अर्ली वैरायटी के लिए 600 घंटे चिलिंग आवर्स चाहिए होते हैं. जबकि रॉयल डिलीशियस के लिए यह 1200 से 1600 घंटे तक चाहिए, ऐसे में बर्फबारी के बाद हिमाचल प्रदेश के ऊपरी इलाकों में तापमान भी काफी कम हो गया है. जल्द ही सेब की रॉयल डिलीशियस वैरायटी के लिए भी यह चिलिंग आवर्स पूरे हो जाएंगे.
जिला कुल्लू की अगर बात करें तो यहां पर शाम के समय तापमान 7 डिग्री से नीचे रह रहा है और रॉयल डिलीशियस के लिए भी चिलिंग आवर्स का दौर 70 फीसदी तक पूरा हो गया है. बागवानी विभाग द्वारा भी अनुमान लगाया जा रहा है कि चिलिंग आवर्स पूरा होने के बाद इस साल सेब की फसल में जिला कुल्लू में काफी अच्छी होगी. बागवानी विभाग से मिली जानकारी के अनुसार जिला कुल्लू में सेब का कारोबार 1000 करोड़ रुपए से अधिक का है.
जिला कुल्लू में 90 फीसदी परिवार सेब की बागवानी से जुड़े हुए हैं. बारिश न होने के कारण अक्टूबर से लेकर जनवरी माह तक सूखे के हालात बन गए थे. बागवानों को भी यह लग रहा था कि चिलिंग ऑवर्स पूरे नहीं हो पाएंगे, लेकिन बर्फबारी के चलते अब चिलिंग आवर्स पूरे होने की भी जल्द उम्मीद बनी हुई है. बागवानी विभाग के अधिकारियों के अनुसार सेब की जो अर्ली वैरायटी है. उसके लिए 600 घंटे तक का चिलिंग ऑवर्स का समय पूरा हो गया है और रॉयल डिलीशियस के लिए भी 70 फीसदी तक समय पूरा हुआ है. जिला कुल्लू में 85% सेब रॉयल डिलीशियस प्रजाति का है और 15 फीसदी सेब अर्ली किस्म का है.