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दिल्ली हाईकोर्ट ने जेलों में भीड़भाड़ के कारण विचाराधीन कैदियों की रिहाई की जनहित याचिका की खारिज - PIL for release of undertrials

PIL for release of undertrials: जेल में विचाराधीन कैदियों की रिहाई के लिए दिशा-निर्देश की मांग वाली जनहित याचिका को दिल्ली हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है. पीठ ने कहा कि इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट पहले से विचार कर रहा है.

PIL for release of undertrials
PIL for release of undertrials

By PTI

Published : Apr 26, 2024, 7:22 PM IST

नई दिल्ली:दिल्ली उच्च न्यायालय ने जेलों में भीड़भाड़ के मद्देनजर विचाराधीन कैदियों की रिहाई के लिए दिशा-निर्देश की मांग करने वाली जनहित याचिका (पीआईएल) को खारिज कर दिया. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता गौतम कुमार लाहा द्वारा उठाए गए मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट पहले ही विचार कर रहा है और इस पर विचार करने का कोई कारण नहीं है.

हम इस बात से संतुष्ट हैं कि चूंकि वर्तमान याचिका में याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए मुद्दे सीधे तौर पर डब्ल्यू.पी. (सी) 406/2013 में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित हैं और उनकी निगरानी की जा रही है, इसलिए हमें वर्तमान याचिका पर विचार करने का कोई कारण नहीं मिलता. इसलिए वर्तमान याचिका खारिज की जाती है. यह बात पीठ ने 24 अप्रैल के अपने आदेश में कही, जिसमें न्यायमूर्ति मनमीत पीएस अरोड़ा भी शामिल थे.

याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि जनहित याचिका उन विचाराधीन कैदियों के लाभ के लिए दायर की गई थी, जो भीड़भाड़ वाली जेलों में बंद हैं. कोर्ट में याचिकाकर्ता ने प्रार्थना की कि हर महीने कम से कम एक बार बैठक आयोजित करने के लिए एक समिति नियुक्त की जाए. ताकि यह तय किया जा सके कि किस कैदी को रिहा किया जा सकता है.

केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए मुद्दे सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं और इसलिए वह शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं. उन्होंने बताया कि NALSA द्वारा तैयार 'अंडर-ट्रायल समीक्षा समितियों के लिए मानक संचालन प्रक्रिया' को 2018 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा रिकॉर्ड पर लिया गया था.

अपने आदेश में अदालत ने कहा कि शीर्ष अदालत ने भीड़भाड़ के कारण प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में अधिक जेल स्थापित करने के महत्वपूर्ण मुद्दे को भी उठाया है और प्रत्येक राज्य सरकार को इस पर ध्यान देने के साथ एक नामित समिति गठित करने के निर्देश जारी किए हैं. इसमें नए जेलों की स्थापना, जेलों में मौजूदा सुविधाओं का विस्तार और प्रौद्योगिकी के उपयोग के माध्यम से कैदियों को सुविधाएं प्रदान करने के कदम शामिल हैं.

इस प्रकार वर्तमान याचिका में आग्रह किया गया भीड़भाड़ का मुद्दा सीधे तौर पर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित रिट याचिका में भी विचाराधीन है. दिल्ली सरकार के स्थायी वकील संतोष कुमार त्रिपाठी ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाया गया मुद्दा पहले से ही विचाराधीन है और इसके समाधान के लिए कदम उठाए जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि वर्तमान याचिकाकर्ता द्वारा एक अतिरिक्त-न्यायिक तंत्र के रूप में जिस तदर्थ राहत की प्रार्थना की जा रही है, उससे इस अदालत पर 'तुच्छ' याचिकाओं का बोझ बढ़ जाएगा.

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याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि दिल्ली में तीन जेल परिसर हैं, जिनमें 10,026 कैदियों की स्वीकृत संख्या है. जबकि, 2021 के आंकड़ों के अनुसार, 19,500 कैदी बंद हैं. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि दिल्ली की जेलों की कुल आबादी में विचाराधीन कैदी 83.33 प्रतिशत हैं, जो राष्ट्रीय औसत से अधिक है. यह भी दावा किया गया कि दिल्ली में आरोप-पत्र दायर करने की दर कुल दर्ज की गई एफआईआर के राष्ट्रीय औसत 73 प्रतिशत के मुकाबले केवल 31 प्रतिशत थी, जो प्रथम दृष्टया दर्शाता है कि इन विचाराधीन कैदियों के मौलिक अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है और उनका उल्लंघन हो रहा है.

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