नई दिल्ली:भारत के सबसे प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थानों में से एक, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), ने एक अभिनव पहल की है जो अति गंभीर मरीजों की चिकित्सा प्रक्रिया को और अधिक मानवीय और संवेदनशील बनाती है. यह नई विशेष ओपीडी (आउट पेशेंट डिपार्टमेंट) उन मरीजों को ध्यान में रखते हुए बनाई गई है जो जीवन-या-मृत्यु की स्थिति में होते हैं और जिनकी इच्छाओं का सम्मान किए जाने की आवश्यकता है.
उद्देश्य और प्रक्रिया:एम्स के कैंसर सेंटर की प्रमुख डॉ. सुषमा भटनागर के अनुसार, इस ओपीडी का उद्देश्य गंभीर मरीजों को उनकी वास्तविक स्थिति से अवगत करा कर उन्हें आत्म-जागरूक बनाना है. मरीज को उनके स्वास्थ्य के बारे में पूरी जानकारी दी जाएगी, ताकि वे अपने उपचार के बारे में सोच-समझकर निर्णय ले सकें. यदि किसी मरीज को ICU या वेंटिलेटर पर भर्ती किए जाने का सुझाव दिया जाता है, तो उनका मना करना पूरी तरह से मान्य होगा, और इस स्थिति में मरीज का स्वीकृति पत्र एक कानूनी दस्तावेज के रूप में कार्य करेगा.
यह पहल विशेष रूप से इसलिए आवश्यक है क्योंकि अक्सर परिवार के दबाव में मरीजों को अनावश्यक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. ऐसे ही मामलों में, मरीज अपनी इच्छाओं को व्यक्त नहीं कर पाते हैं और अंतिम समय में उन्हें वह जीवन जीने का अवसर नहीं मिलता जिनकी वे वास्तव में इच्छा रखते थे.
मरीजों के अनुभव:डॉ. मंजरी त्रिपाठी, जो कि न्यूरोलॉजी विभाग की प्रमुख हैं, ने एक उदाहरण साझा किया जिसमें एक 80 वर्षीय महिला ब्रेन स्ट्रोक के बाद अस्पताल आईं. परिजनों की इच्छाओं के विपरीत, महिला ने वेंटिलेटर पर जाने से मना कर दिया क्योंकि वह उस स्थिति में होने वाली तकलीफ को समझती थीं. मरीज की स्वीकृति और निर्णय के बाद, वह बिना वेंटिलेटर के पूरी तरह से ठीक हुईं. यह उदाहरण इस नई ओपीडी की संभावनाओं को दर्शाता है.