पलामूःप्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादियों का हथियारबंद विंग पीएलजीए (पिपुल्स लिबरेशन गोरिल्ला आर्मी) झारखंड-बिहार में अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहा है. हर साल दो से आठ दिसंबर तक माओवादी स्थापना सप्ताह मनाते हैं. लेकिन इस बार झारखंड और बिहार में कहीं से भी माओवादियों के द्वारा पीएलजीए सप्ताह मनाने की खबर निकल कर सामने नहीं आई है. इससे पता चलता है कि झारखंड और बिहार में माओवादी बेहद ही कमजोर स्थिति में हैं और अंतिम सांसें गिन रहे हैं.
बता दें कि झारखंड में 71 नक्सलियों पर सरकार ने इनाम घोषित कर रखा है. जिनमें 55 से अधिक भाकपा माओवादियों के पीएलजीए (पिपुल्स लिबरेशन गोरिल्ला आर्मी) के कमांडर हैं. 2015-16 तक यह संख्या 350 से भी अधिक थी लेकिन अब बिहार-झारखंड सीमा पर पीएलजीए की कमांडरों की संख्या 10 से भी कम है. साथ ही बताया जाता है कि बाकी के माओवादियों के कमांडर सारंडा के इलाके में छुपे हुए हैं.
खत्म हो गया पीएलजीए ट्रेनिंग सेंटर और यूनिफाइड कमांड
पिछले पांच वर्षों में माओवादियों का पीएलजीए (पिपुल्स लिबरेशन गोरिल्ला आर्मी) का ट्रेनिंग सेंटर यूनिफाइड कमांड खत्म हो गया है. पीएलजीए का ट्रेनिंग सेंटर बूढापहाड़ था जबकि यूनिफाइड कमांड छकरबंधा हुआ करता था. दोनों जगहों पर अब सुरक्षा बलों का कब्जा हो गया है. माओवादियों को अपना ट्रेनिंग सेंटर और यूनिफाइड कमांड गंवाना पड़ा है. माओवादियों का दोनों इलाका झारखंड, बिहार और उतरी छत्तीसगढ़ का हिस्सा था. जहां पीएलजीए 3500 से 4000 तक कैडर हुआ करते थे अब 10 से 15 की संख्या रह गई है.
2004 में बना था पीएलजीए
देशभर में नक्सल संगठन का आपस में वर्ष 2004 में विलय हुआ था. 2000 में नक्सल संगठन एमसीसी ने पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) का गठन किया था. 2004 में नक्सली संगठनों का आपस में विलय हुआ तो पहले का नाम पीएलजीए रखा गया था. झारखंड-बिहार में पीएलजीए की पहली बैठक पलामू के बिश्रामपुर के इलाके में हुई थी.