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5 साल में 73 फीसदी कम हुए पराली जलाने के केस, लेकिन दिल्ली का प्रदूषण वहीं का वहीं... क्या सच में प्रदूषण के पीछे किसान जिम्मेदार ?

एक अध्ययन के मुताबिक पिछले 5 सालों में हरियाणा में पराली जलाने के केस 73% कम हुए है, लेकिन दिल्ली का प्रदूषण कम नहीं हुआ.

STUBBLE BURNING REDUCED IN HARYANA
STUBBLE BURNING REDUCED IN HARYANA (Etv Bharat)

By ETV Bharat Haryana Team

Published : 4 hours ago

चंडीगढ़: जैसे हैं सितम्बर मध्य से धान की कटाई शुरू होती है, वैसे ही अक्टूबर आते-आते दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण का स्तर भी चर्चा का विषय बन जाता है. धान की कटाई के बाद कई किसान पराली जलाने का काम करते हैं तो फिर प्रदूषण का ठीकरा भी किसानों पर फूट जाता है. जिसके बाद इस मुद्दे पर सरकार और किसान आमने-सामने हो जाते हैं.

पराली, प्रदूषण और पॉलिटिक्स : पहले तो यह जानना जरूरी है कि इस साल अभी तक क्रीम्स का डाटा क्या है, और पंजाब विश्वविद्यालय और पीजीआई के पब्लिक हेल्थ और पर्यावरण विभाग के अनुसार इस साल के पराली जलाने के आंकड़े क्या है ?

क्रीम्स के आंकड़े क्या कहानी कर रहे बयां ? :क्रीम्स के आंकड़ों के मुताबिक 15 सितंबर से 22 अक्टूबर तक छह राज्यों पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान और मध्य प्रदेश में पराली जलाने के कुल मामले 3878 आए हैं. जिसमें पंजाब में 1581, हरियाणा में 665, उत्तर प्रदेश में 740, दिल्ली में 11, राजस्थान में 332 और मध्य प्रदेश में 549 मामले सामने आए हैं.

2018 की पराली बर्निंग रिपोर्ट (ETV Bharat)

वहीं, इस अवधि तक बीते साल 2023 में क्रीम्स के आंकड़ों के मुताबिक छह राज्यों पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान और मध्य प्रदेश में पराली जलाने के कुल मामले 4374 आए थे. जिनमें पंजाब में 1734 और हरियाणा में 714, उत्तरप्रदेश 540, दिल्ली में 2, राजस्थान में 443 और मध्य प्रदेश में 881 पराली जलाने के मामले थे.

2023 की पराली बर्निंग रिपोर्ट (ETV Bharat)

5 साल में 73 फीसदी कम हुए केस : अगर पांच साल पीछे जाएं तो क्रीम्स के यही आंकड़े 22 अक्टूबर 2018 में 7162 थे. जिनमें पंजाब के 3608 और हरियाणा के 2445 और उत्तर प्रदेश के 1109 मामले थे. यानी 22 अक्टूबर तक के आंकड़ों में पांच सालों में पराली जलाने के मामलों में हरियाणा और पंजाब में लगातार कमी दर्ज की गई है. लेकिन दिल्ली का प्रदूषण इन महीनों में वहीं का वहीं रहा है.

2024 की पराली बर्निंग रिपोर्ट (ETV Bharat)

पीजीआई और पंजाब विश्वविद्यालय के आंकड़े क्या कहते हैं ? :

वहीं, पिछले कुछ वक्त से पंजाब विश्वविद्यालय और पीजीआई चंडीगढ़ का पब्लिक हेल्थ विभाग भी इस पर काम कर रहा है. वे भी पराली के मामलों पर नजर लगातार बनाए रखते हैं. उनके आंकड़ों के मुताबिक पंजाब और हरियाणा में बीते आठ दिनों में 750 मामले पराली जलाने के आए हैं. पंजाब विश्वविद्यालय की प्रोफेसर सुमन मोर और पीजीआई के प्रोफेसर रविंद्र खैवाल कहते हैं कि पिछले साल के मुकाबले इस साल पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने के आंकड़ों में अभी तक पचास फीसदी तक की कमी देखी गई है. वहीं पंजाब सरकार के अपने आंकड़े भी बता रहे हैं कि 22 अक्टूबर तक पंजाब में 1581 पराली जलाने के मामले आए हैं. जबकि पिछले साल इसी अवधि में यह आंकड़ा 1750 के करीब था.

क्या कहते हैं कृषि मंत्री श्याम सिंह राणा ? : हरियाणा सरकार ने कृषि मंत्री श्याम सिंह राणा कहते हैं कि पराली जलाने के मामले में हरियाणा में अभी तक तीन हजार के करीब एफआईआर हुई है. हरियाणा में 6 हजार गांव है तो ऐसे में दो गांव में एक मामला है, लेकिन प्रचार ऐसा हो गया कि सारा प्रदूषण किसान कर रहा है. दिल्ली में सिर्फ किसानों की वजह से प्रदूषण नहीं है, दिल्ली की आबादी ही इसके लिए जिम्मेदार है. जहां लोग ज्यादा होंगे, वहां प्रदूषण भी ज्यादा होगा. एयरपोर्ट व प्लेन से भी प्रदूषण होता है. कंस्ट्रक्शन के काम से भी होता है. और 28 गंदे नाले दिल्ली में यमुना में मिलते, इनसे भी प्रदूषण होता है.

कृषि मंत्री श्याम सिंह राणा (ETV Bharat)

क्या सही में दिल्ली के प्रदूषण के लिए पराली है जिम्मेदार ? : प्रोफेसर रविंद्र खैवाल जो कि पीजीआई के स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में तैनात हैं, कहते हैं कि दिल्ली की प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह उसकी ज्योग्राफिकल लोकेशन है. जो यहां के प्रदूषण की वजह बनती है. इसके साथ ही इस मौसम में बदलाव के साथ ही एटमॉस्फेरिक बाउंड्री की हाइट भी कम हो जाती है, यानी नीचे हो जाती है. एरिया कम होने की वजह से भी प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है. दिल्ली का अपना प्रदूषण भी इसकी वजह है. वहां पर लाखों गाड़ियां चलती है, फैक्ट्रियों के साथ ही निर्माण कार्य भी बड़े पैमाने पर होते हैं, वहीं पराली इसमें जुड़ जाती है.

0 से 30 फीसदी जिम्मेदार : वे कहते हैं कि एक अध्ययन के मुताबिक पराली 0 से 30 फीसदी प्रदूषण की वजह है. यह सब कितनी पराली जल रही है, उस पर निर्भर करता है. वहीं, हवाओं पर भी प्रदूषण का स्तर निर्भर करता है. वे कहते हैं कि पिछले सालों में एक दिन में कुछ मौकों पर तीन से पांच हजार तक पराली जलने के भी मामले आए थे. लेकिन पिछले दो से तीन साल में इसमें कमी आई है. हालांकि वे कहते हैं कि पराली जलाने के मामलों में हमेशा 25 अक्टूबर के बाद या नवंबर के पहले सप्ताह में वृद्धि देखने को मिलती है.

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