रांची/खूंटी : प्राचीन दिउड़ी मंदिर के मुख्य द्वार पर तालाबंदी मामले को बुंडू प्रशासन ने गंभीरता से लिया है. प्रशासन ने कटर से ताला कटवाकर पूजा शुरू करा दी है. इसके बावजूद दिउड़ी मंदिर में तालाबंदी के विरोध में गैर आदिवासी संगठनों ने गुरुवार की देर शाम मशाल जुलूस निकाला और नारेबाजी की. उन्होंने मंदिर में ताला जड़ने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई और गिरफ्तारी की मांग की है. साथ ही शुक्रवार को बुंडू और तमाड़ बंद का आह्वान भी किया है.
एसडीओ मोहन लाल मरांडी ने बताया कि मंदिर परिसर और आसपास के इलाकों में निषेधाज्ञा लागू कर दी गई है. किसी भी तरह की भीड़ जुटाने वालों पर कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने यह भी बताया कि मंदिर के मुख्य द्वार पर ताला जड़ने वाले करीब एक दर्जन लोगों की पहचान कर ली गई है. प्रशासन उनके खिलाफ कार्रवाई कर रहा है.
पुलिस और लोगों के बीच हुई झड़प
बता दें कि रांची के तमाड़ स्थित प्राचीन दिउड़ी मंदिर में गुरुवार की अहले सुबह स्थानीय आदिवासियों ने ताला जड़ दिया. जिसके कारण पांच घंटे तक पूजा बंद रही. प्रशासन की पहल पर कटर से ताला काटकर पूजा शुरू कराई गई. इस दौरान स्थानीय ग्रामीणों और पुलिस प्रशासन के बीच हल्की झड़प भी हुई. स्थानीय आदिवासी समुदाय का दावा है कि यह कोई हिंदू मंदिर नहीं है. इस मंदिर को दिउड़ी दिरी के नाम से जाना जाता है, जबकि यहां सैकड़ों वर्षों से देवी की पूजा होती आ रही है. गर्भगृह में प्राचीन 16 भुजाओं वाली देवी विराजमान हैं.
धोनी के अलावा कई लोग कर चुके हैं इस मंदिर में पूजा
यह मंदिर देश-विदेश में प्रसिद्ध है. भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की इस मंदिर में विशेष आस्था है. बॉलीवुड अभिनेता हों या राजनेता, सभी यहां दर्शन के लिए आते हैं. इतना ही नहीं देश के गृह मंत्री अमित शाह का परिवार और उनकी बेटी भी यहां पूजा कर चुके हैं.
ट्रस्ट बनाने के बाद से बढ़ा विवाद
बता दें कि 2021 में बढ़ते श्रद्धालुओं और मंदिर व्यवस्था के सफल संचालन के लिए सरकार की ओर से ट्रस्ट बनाया गया था. तब से दोनों समुदायों के बीच विवाद चल रहा है. ट्रस्ट के गठन से पहले मंदिर का संचालन चंद स्थानीय लोगों द्वारा किया जाता था और दान पेटी व माता को चढ़ाए जाने वाले प्रसाद का वितरण किया जाता था, जो ट्रस्ट के गठन के बाद बंद हो गया.
स्थानीय लोगों को यह रास नहीं आने लगा, तभी से विभिन्न आदिवासी संगठनों ने विरोध करना शुरू कर दिया और मंदिर पर अपना दावा पेश करते रहे. मामला कोर्ट में भी पहुंचा. कोर्ट ने भी माना कि यहां सैकड़ों वर्षों से मंदिर बना हुआ है और जमीन भी मंदिर के नाम पर है. इसके बावजूद कुछ तथाकथित आदिवासी नेताओं ने ग्रामीणों को गुमराह कर आज मंदिर पर ताला लगा दिया.