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स्टीव जॉब्स की तरह पत्नी लॉरेन पॉवेल जॉब्स भी आध्यात्म की राह पर; 10 दिन निरंजनी अखाड़े में करेंगी कल्पवास - STEVE JOBS WIFE LAUREN POWELL JOBS

स्टीव जॉब्स नीब करौरी बाबा के भक्त थे, 30 लाख करोड़ की कंपनी एप्पल का लोगो बाबा का आशीर्वाद.

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स्टीव जॉब्स और उनकी पत्नी लॉरेन पॉवेल जॉब्स. (Photo Credit; ETV Bharat Archive)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 13, 2025, 1:24 PM IST

प्रयागराज: महाकुंभ 2025 का आयोजन शुरू हो चुका है. आस्था और संस्कृति के महोत्सव में हर वर्ग के लोग भाग ले रहे हैं. लेकिन, सबसे ज्यादा चर्चा प्रसिद्ध अमेरिकी कारोबारी और एप्पल के सह-संस्थापक स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेन पॉवेल जॉब्स की हो रही है. वे महाकुंभ 2025 में हिस्सा लेने के लिए पहुंच चुकी हैं.

लॉरेन पॉवेल जॉब्स का हिंदू धर्म के प्रति विशेष लगाव रहा है. ठीक अपने पति स्टीव जॉब्स की तरह. स्टीव जॉब्स ने बाबा नीब करौरी को अपना गुरु माना था. वे कई बार नीब करौरी बाबा के कैंची धाम भी गए थे. बताते हैं कि, वहीं पर बाबा ने स्टीव जॉब्स को आशीर्वाद स्वरूप कटा हुआ सेब दिया था. इसी के चलते स्टीव ने अपनी कंपनी का लोगो कटा सेब रखा है.

अपने पति स्टीव जॉब्स की तरह ही लॉरेन पॉवेल की भी हिंदू धर्म में गहरी आस्था है. उन्होंने आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि से दीक्षा ग्रहण की है. प्रयागराज महाकुंभ में वह 10 दिन तक निरंजनी अखाड़े में कल्पवास करेंगी. लॉरेन पॉवेल के शिविर में रहने के लिए विशेष व्यवस्थाएं की गई हैं.

उनके गुरु, आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि के कैंप में उन्हें भारतीय आध्यात्मिकता और सनातन संस्कृति को करीब से जानने का अवसर मिलेगा. उनकी सुरक्षा के लिए विशेष प्रबंध किए गए हैं. उनकी यह यात्रा भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता के प्रति उनके गहरे लगाव को दर्शाती है.

लॉरेन पॉवेल महाकुंभ के माध्यम से भारतीय संस्कृति और सनातन परंपराओं को गहराई से समझने का प्रयास करेंगी. 10 दिनों तक शिविर में रहते हुए वे धार्मिक क्रियाकलापों में हिस्सा लेंगी. यह कदम वैश्विक दर्शकों को भारतीय संस्कृति से जोड़ने का एक सकारात्मक संदेश देता है.

लॉरेन पॉवेल का महाकुंभ 2025 में आना यह दर्शाता है कि भले ही वे एक सफल उद्योगपति हैं, लेकिन उनके जीवन में आध्यात्मिकता का भी गहरा महत्व है. यह यात्रा आध्यात्मिकता और आधुनिकता के संगम का प्रतीक है, जो भारतीय संस्कृति की वैश्विक प्रासंगिकता को उजागर करता है.

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