लखनऊ: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से जारी बयान में कहा गया कि अफसोस है कि वक्फ संशोधन बिल राज्यसभा में भी पेश कर दिया गया. जिस तरह इस मामले में सत्तारूढ़ पार्टी, उसकी सहयोगी पार्टियां और संसद की स्थायी समिति ने भारतीय मुसलमानों के विचार और राय को नजरअंदाज कर मनमाने तरीके से प्रस्ताव संसद में पेश किया है, वह निंदनीय और अस्वीकार्य है. मुस्लिम संगठनों ने इस बिल को पूरी तरह से खारिज कर दिया है.
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड समेत कई संगठनों ने सरकार से मांग की है कि इस संशोधन बिल को तत्काल वापस लिया जाए. उनका कहना है कि यह बिल वक्फ संपत्तियों को नष्ट करने और मुसलमानों को मस्जिदों, ईदगाहों, मदरसों, दरगाहों व कब्रिस्तानों की जमीनों से वंचित करने की साजिश है. यदि सरकार सच में "सबका साथ, सबका विकास" के नारे पर अमल करना चाहती है, तो उसे इस बिल को वापस लेना चाहिए.
मुसलमानों की राय को किया गया नजरअंदाज :देशभर के मुसलमानों, धार्मिक संगठनों, राष्ट्रीय संस्थाओं और प्रमुख मदरसों ने स्थायी समिति के समक्ष अपनी आपत्तियां दर्ज कराई थीं. लगभग 5 करोड मुसलमानों ने ईमेल के माध्यम से इस बिल का विरोध जताया था. बावजूद इसके, उनकी राय को पूरी तरह अनदेखा कर दिया गया. मुस्लिम संगठनों का कहना है कि लोकतंत्र में संबंधित समूहों की राय को महत्व दिया जाना चाहिए, लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ.
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मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने आरोप लगाया कि मौजूदा सरकार का रुख मुसलमानों के प्रति पक्षपातपूर्ण और पूर्वाग्रहपूर्ण है. यह संविधानिक मूल्यों और लोकतांत्रिक सिद्धांतों के खिलाफ है. उन्होंने विपक्षी दलों और भाजपा की सहयोगी पार्टियों से अपील की है कि वे इस बिल को संसद में पारित न होने दें.
लोकतांत्रिक और कानूनी लड़ाई की चेतावनी :मुस्लिम संगठनों ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि यह बिल संसद से पारित हुआ, तो वे इसे किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं करेंगे. वे शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक तरीकों से इसका विरोध करेंगे और जब तक यह बिल वापस नहीं लिया जाता, तब तक आंदोलन जारी रहेगा.
समान नागरिक संहिता पर भी आपत्ति :उत्तराखंड सरकार द्वारा समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने के फैसले पर भी मुस्लिम संगठनों ने कड़ा ऐतराज जताया है. अब गुजरात सरकार ने भी इसी दिशा में कदम बढ़ाने के संकेत दिए हैं. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का कहना है कि किसी भी राज्य को अपने स्तर पर समान नागरिक संहिता लागू करने का अधिकार नहीं है. संविधान का अनुच्छेद 44 इसे केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में रखता है और यह भी सभी धार्मिक समुदायों की सहमति से ही संभव है.
बोर्ड ने उत्तराखंड के इस नए कानून को अदालत में चुनौती देने का ऐलान किया है. उन्होंने मुसलमानों से अपील की कि वे हर हाल में अपने धार्मिक कानूनों पर अमल करें और धैर्य बनाए रखें.
प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करने वाले प्रमुख लोग
- मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी, अध्यक्ष, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड.
- मौलाना सैय्यद अरशद मदनी, उपाध्यक्ष, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड.
- मौलाना उबैदुल्लाह खान आज़मी, उपाध्यक्ष, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड.
- मौलाना मोहम्मद अली मोहसिन नकवी, उपाध्यक्ष, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड.
- मौलाना मोहम्मद फजलुर्रहीम मुजदिद्दी, जनरल सेक्रेटरी, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड.
- मलिक मुतसिम खान, उपाध्यक्ष, जमाअत-ए-इस्लामी हिंद.
- डॉ. सैयद क़ासिम रसूल इलयास, प्रवक्ता, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड.
मुस्लिम संगठनों ने इस बिल और समान नागरिक संहिता के खिलाफ कानूनी और लोकतांत्रिक लड़ाई जारी रखने का संकल्प लिया है. उन्होंने देश के न्यायप्रियनागरिकों से अपील की है कि वे इस अन्यायपूर्ण और दमनकारी कानून के खिलाफ आवाज उठाएं.
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