नई दिल्ली:दिल्ली में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी आम आदमी पार्टी, प्रचंड बहुमत से सत्ता में वापसी की हैट्रिक बनाना चाहती है. तो वहीं, विपक्ष में बैठी बीजेपी दिल्ली की सत्ता से 27 साल के वनवास को खत्म कर उसे हासिल करने की कोशिश में जुटी हुई है. दिल्ली में सियासी सरगर्मी कुछ दिनों में काफी तेज हो चुकी है. चुनावी मौसम में सियासी लाभ देख राजनीतिक दलों के नेता भी पाला बदलने में पीछे नहीं हैं. ऐसे में आम आदमी पार्टी में बीते सप्ताह कांग्रेस व बीजेपी के वह नेता भी शामिल हुए, जिनके खिलाफ पहले आम आदमी पार्टी कई सवाल उठा चुकी है.
पिछले दिनों आम आदमी पार्टी में कांग्रेस के नेता वीर सिंह धींगान शामिल हुए. इसपर पार्टी की पुरानी सहयोगी व वर्तमान में राज्यसभा सदस्य स्वाति मालीवाल ने कहा कि इसके खिलाफ राशन घोटाले में हमलोगों ने आवाज उठाई थी और अब आम आदमी पार्टी ने उसे ही शामिल कर लिया. पिछले 10 दिनों में आधा दर्जन के करीब नेता एक दल से दूसरे दलों का दामन थाम चुके हैं. इसमें कांग्रेस के मतीन अहमद, वीर सिंह धींगान, सुमेश शौकीन, बीजेपी के अनिल झा दशकों पुराना नाता तोड़ आम आदमी पार्टी में शामिल हुए तो दूसरी तरफ दिल्ली सरकार में मंत्री और पार्टी के संस्थापक सदस्य रह चुके कैलाश गहलोत, एक झटके में मंत्री पद और पार्टी से मिली जिम्मेदारी से अलग-अलग होकर बीजेपी में शामिल हो गए.
आतिशी ने कही थी ये बात: बीजेपी, कांग्रेस व अन्य राजनीतिक दलों से अलग छवि बनाकर राजनीति में आई आम आदमी पार्टी उन दलों के नेताओं को जिस तरह शामिल कर रही है, सवाल है कि इससे पार्टी को फायदा होगा या नुकसान? इस बाबत पूछे गए सवाल पर आप नेता और दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी कहती हैं, "आम आदमी पार्टी 2012 में बनी. जिस दिन आम आदमी पार्टी की शुरुआत हुई यानी 26 नवंबर, 2012 को उसी दिन मंच से अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि अगर किसी भी पार्टी में अच्छे लोग हैं जो आम आदमी पार्टी में जुड़ना चाहते हैं तो उनका पार्टी स्वागत करती है. आम आदमी पार्टी में लगातार अलग-अलग पार्टियों, सामाजिक संस्थाओं व समूहों से सामाजिक कार्यकर्ता पिछले 12-13 साल से हमसे जुड़ते रहे हैं. इस बार भी कई पार्टियों में से नेता है जो अरविंद केजरीवाल के काम को देखते हुए आम आदमी पार्टी से जुड़ना चाहते हैं."