ब्यावर: क्रिसमस आने वाला है. देश और दुनिया में क्रिसमस को लेकर उल्लास और उमंग का माहौल है. मसीह समाज के लोग प्रभु यीशु के आगमन की तैयारियों में जुटे हुए हैं. राजस्थान में भी काफी तादात में मसीह समाज के लोग हैं, जो क्रिसमस को खास बनाने की तैयारी कर रहे हैं. ब्रिटिश हुकूमत के समय ही मिशनरी भारत आई. इसमें भी अलग-अलग मत के मिशनरी थे. इसी तरह प्रदेश में भी मिशनरी की शुरुआत एरनपुर से हुई, जहां स्कॉटलैंड से 18 लोग आए. वर्तमान में एरनपुर को जवाई बांध के नाम से जाना जाता है.
प्रदेश का पहला चर्च ब्यावर में बना :देश और प्रदेश में शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में एक सदी से मिशनरी का विशेष योगदान रहा है. मिशनरी का मिशन भी मानव सेवा और परोपकार है. यही वजह है कि कई प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थाएं संचालित हैं, जो शिक्षा के क्षेत्र में खासा योगदान दे रही है. देश में ब्रिटिश हुकूमत के समय मिशनरी को काफी सहयोग मिला और तत्कालीन समय में स्कूल, कॉलेज के अलावा कई चिकित्सलय भी मानव सेवा के उद्देश्य से खोले गए थे. प्रदेश में भी ब्रिटिश सरकार का शासन रहा. प्रदेश का पहला चर्च भी 164 वर्ष पहले ब्यावर में बना था. मिशनरियों के आने के बाद ब्रिटिश हुकूमत के सहयोग से उन्होंने कई चर्च प्रदेश के अलग अलग हिस्सों में बनवाए. मिशनरी जिस देश से आए वहां की स्थापत्य कला उस चर्च में नजर आती है. वहीं, अजमेर में प्रोटेस्टेन्ट और कैथोलिक मत के कई चर्च हैं, जो धर्मावलंबियों के लिए आस्था के केंद्र हैं. अजमेर में प्रदेश के 66 चर्चों का एक केंद्र है, जिसको डायसिस ऑफ राजस्थान (सीएनआई) कहते हैं. वर्तमान में सीएनआई के बिशप रेमसन विक्टर हैं.
पढ़ें.सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल हैं ख्वाजा गरीब नवाज, विवाद के बाद भी दरगाह से मोहब्बत का पैगाम
बिशप रेमसन विक्टर बताते हैं कि प्रदेश का सबसे पहला और पुराना चर्च ब्यावर में है. शुल ब्रेड नाम से यह चर्च विख्यात है. 164 बरस पहले स्कॉटिश मिशनरी शूलब्रेड के नाम से चर्च का नाम रखा गया. प्रदेश में मिशनरी के अतीत को देखें तो शूलब्रेड अकेले नहीं आए थे, बल्कि उनके साथ 20 लोग और थे जो पेशे से चिकित्सक, शिक्षक आदि थे. उन्होंने बताया कि 20 लोगों का यह दल स्कॉटलैंड से भारत मे भ्रमण करता हुआ एरनपुरा पंहुचा था. यहीं पर दल ने अपना पड़ाव डाला था. यहां इस दल के एक सदस्य की मौत बीमारी से हो गई थी. इसके बाद दल के सदस्य यहां से प्रदेश के अलग-अलग जगहों पर चले गए. मसलन दल में शामिल डॉ. जेम शेफर्ड उदयपुर, मार्टिन ब्रदर्स नसीराबाद, डॉ. रॉबसन अजमेर, ब्यावर में शूल ब्रेड, जोधपुर में समरवेल कोटा में बोनर आदि थे. इन्होंने मानव सेवा और परोपकार को आगे बढ़ते हुए गरीब और मध्यम तबके के लिए शिक्षा, चिकित्सा क्षेत्र में कार्य किए. साथ ही तत्कालीन ब्रिटिश सरकार के साथ मिलकर कई स्कूल, कॉलेज और अस्पतालों की स्थापना की थी.
अजमेर के यह खूबसूरत चर्च :अजमेर में एक दर्जन से ज्यादा पुराने चर्च हैं, जो मसीह समाज के लिए आस्था के बड़े केंद्र हैं. खास बात यह है कि सभी चर्च की आज भी सार संभाल हो रही है. यही वजह है कि उनकी मजबूती और सुंदरता आज भी बरकरार है. अजमेर शहर में तीन प्रोटेस्टेंट चर्च, 4 कैथोलिक चर्च और दो मेथाडिस्ट चर्च हैं. इनके अलावा परबतपुरा में सेंट जोसेफ चर्च, रैंबल रोड पर हिल व्यू एडवेंटीज चर्च, हाथीखेड़ा स्थित माउंट कार्मल चर्च शामिल हैं.
रॉबसन मेमोरियल चर्च :अजमेर के खूबसूरत चर्चों की बात की जाए तो अजमेर शहर का सबसे पुराना चर्च रोबसन मेमोरियल चर्च है, जो अजमेर शहर के बीचों-बीच स्थित है. इसमें चर्च स्कॉटिश स्थापत्य कला नजर आती है. 150 वर्ष पुराना यह चर्च प्रोटेस्टेंट धर्मावलंबी की आस्था का केंद्र है. यहां क्रिसमस समेत अन्य समारोह भी आयोजित होते हैं. यहां नामकरण संस्कार (बैप्टिज्म) भी होते हैं.