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प्रदेश में सबसे पहले मिशनरी का यहां से हुआ प्रादुर्भाव, शिक्षा और चिकित्सा क्षेत्र में 150 वर्षो से रहा खासा योगदान - CHRISTMAS 2024

क्रिसमस को लेकर देशभर में तैयारियां चल रही हैं. आइए जानते हैं कि प्रदेश में मिशनरी का कैसे हुआ प्रादुर्भाव...

प्रदेश का सबसे पहला और पुराना चर्च
प्रदेश का सबसे पहला और पुराना चर्च (ETV Bharat Ajmer)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Dec 8, 2024, 12:57 PM IST

ब्यावर: क्रिसमस आने वाला है. देश और दुनिया में क्रिसमस को लेकर उल्लास और उमंग का माहौल है. मसीह समाज के लोग प्रभु यीशु के आगमन की तैयारियों में जुटे हुए हैं. राजस्थान में भी काफी तादात में मसीह समाज के लोग हैं, जो क्रिसमस को खास बनाने की तैयारी कर रहे हैं. ब्रिटिश हुकूमत के समय ही मिशनरी भारत आई. इसमें भी अलग-अलग मत के मिशनरी थे. इसी तरह प्रदेश में भी मिशनरी की शुरुआत एरनपुर से हुई, जहां स्कॉटलैंड से 18 लोग आए. वर्तमान में एरनपुर को जवाई बांध के नाम से जाना जाता है.

प्रदेश का पहला चर्च ब्यावर में बना :देश और प्रदेश में शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में एक सदी से मिशनरी का विशेष योगदान रहा है. मिशनरी का मिशन भी मानव सेवा और परोपकार है. यही वजह है कि कई प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थाएं संचालित हैं, जो शिक्षा के क्षेत्र में खासा योगदान दे रही है. देश में ब्रिटिश हुकूमत के समय मिशनरी को काफी सहयोग मिला और तत्कालीन समय में स्कूल, कॉलेज के अलावा कई चिकित्सलय भी मानव सेवा के उद्देश्य से खोले गए थे. प्रदेश में भी ब्रिटिश सरकार का शासन रहा. प्रदेश का पहला चर्च भी 164 वर्ष पहले ब्यावर में बना था. मिशनरियों के आने के बाद ब्रिटिश हुकूमत के सहयोग से उन्होंने कई चर्च प्रदेश के अलग अलग हिस्सों में बनवाए. मिशनरी जिस देश से आए वहां की स्थापत्य कला उस चर्च में नजर आती है. वहीं, अजमेर में प्रोटेस्टेन्ट और कैथोलिक मत के कई चर्च हैं, जो धर्मावलंबियों के लिए आस्था के केंद्र हैं. अजमेर में प्रदेश के 66 चर्चों का एक केंद्र है, जिसको डायसिस ऑफ राजस्थान (सीएनआई) कहते हैं. वर्तमान में सीएनआई के बिशप रेमसन विक्टर हैं.

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बिशप रेमसन विक्टर बताते हैं कि प्रदेश का सबसे पहला और पुराना चर्च ब्यावर में है. शुल ब्रेड नाम से यह चर्च विख्यात है. 164 बरस पहले स्कॉटिश मिशनरी शूलब्रेड के नाम से चर्च का नाम रखा गया. प्रदेश में मिशनरी के अतीत को देखें तो शूलब्रेड अकेले नहीं आए थे, बल्कि उनके साथ 20 लोग और थे जो पेशे से चिकित्सक, शिक्षक आदि थे. उन्होंने बताया कि 20 लोगों का यह दल स्कॉटलैंड से भारत मे भ्रमण करता हुआ एरनपुरा पंहुचा था. यहीं पर दल ने अपना पड़ाव डाला था. यहां इस दल के एक सदस्य की मौत बीमारी से हो गई थी. इसके बाद दल के सदस्य यहां से प्रदेश के अलग-अलग जगहों पर चले गए. मसलन दल में शामिल डॉ. जेम शेफर्ड उदयपुर, मार्टिन ब्रदर्स नसीराबाद, डॉ. रॉबसन अजमेर, ब्यावर में शूल ब्रेड, जोधपुर में समरवेल कोटा में बोनर आदि थे. इन्होंने मानव सेवा और परोपकार को आगे बढ़ते हुए गरीब और मध्यम तबके के लिए शिक्षा, चिकित्सा क्षेत्र में कार्य किए. साथ ही तत्कालीन ब्रिटिश सरकार के साथ मिलकर कई स्कूल, कॉलेज और अस्पतालों की स्थापना की थी.

अजमेर के यह खूबसूरत चर्च :अजमेर में एक दर्जन से ज्यादा पुराने चर्च हैं, जो मसीह समाज के लिए आस्था के बड़े केंद्र हैं. खास बात यह है कि सभी चर्च की आज भी सार संभाल हो रही है. यही वजह है कि उनकी मजबूती और सुंदरता आज भी बरकरार है. अजमेर शहर में तीन प्रोटेस्टेंट चर्च, 4 कैथोलिक चर्च और दो मेथाडिस्ट चर्च हैं. इनके अलावा परबतपुरा में सेंट जोसेफ चर्च, रैंबल रोड पर हिल व्यू एडवेंटीज चर्च, हाथीखेड़ा स्थित माउंट कार्मल चर्च शामिल हैं.

सेंट मैरी चर्च (ETV Bharat Ajmer)

रॉबसन मेमोरियल चर्च :अजमेर के खूबसूरत चर्चों की बात की जाए तो अजमेर शहर का सबसे पुराना चर्च रोबसन मेमोरियल चर्च है, जो अजमेर शहर के बीचों-बीच स्थित है. इसमें चर्च स्कॉटिश स्थापत्य कला नजर आती है. 150 वर्ष पुराना यह चर्च प्रोटेस्टेंट धर्मावलंबी की आस्था का केंद्र है. यहां क्रिसमस समेत अन्य समारोह भी आयोजित होते हैं. यहां नामकरण संस्कार (बैप्टिज्म) भी होते हैं.

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अवर लेडी ऑफ सेवन डॉलर्स चर्च :अजमेर दक्षिण क्षेत्र में भट्टा स्थित अवर लेडी ऑफ सेवन डॉलर्स चर्च करीब 110 साल पुराना है. इस चर्च की खास बात यह है कि चर्च का डिजाइन प्रभु यीशु के क्रॉस की तर्ज पर बना हुआ है. चर्च परिसर में सोफिया भट्टा हिंदी मध्यम स्कूल संचालित है.

सेंट मेरिज चर्च :अजमेर के पाल बिचला स्थित प्राचीन चर्चा में से एक सेंट मैरी चर्च भी शामिल है. करीब 140 वर्ष पुराना चर्च बेहद खूबसूरत है. चर्च की आंतरिक सजावट और बाहरी खूबसूरती आकर्षित करती है. चर्च के भीतर पुराना फर्नीचर, वुडन रूफ और संगमरमर के कामकाज हो रखा है.

सेंटेनरी मेथोडिस्ट चर्च :अजमेर के जयपुर रोड स्थित सेंटेनरी मेथोडिस्ट चर्च की खूबसूरती और आंतरिक साज सजावट काफी आकर्षित करती है. यहां हर संडे विशेष प्रार्थना आयोजित होती है. यहां भी कई तरह के धार्मिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं.

सेंट एनसलम्स के भीतर का नजारा (ETV Bharat)

इमेक्यूलेट कांसेप्शनल चर्च :सेंट एनसलम्स स्कूल परिसर में ही स्थित इमेक्यूलेट कांसेप्शनल चर्च अपने स्थापत्य कला और भव्यता से काफी आकर्षित नजर आता. यहां कैथोलिक धर्मावलंबी क्रिसमस और अन्य धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं. क्रिसमस के भीतर संगमरमर का फर्श, फानूस और शानदार पुराना फर्नीचर समेत कई नायब सामग्री यहां मौजूद हैं. परिसर में ही स्टे भवन में डायसिस अजमेर के बिशप का निवास है.

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शिक्षा और चिकित्सा क्षेत्र में रहा खासा योगदान :रॉबसन मेमोरियल चर्च के सचिव राकेश सैमुअल बताते हैं कि अजमेर में सबसे पुराना गर्ल्स स्कूल फ्रेजर रोड पर मिशन गर्ल्स स्कूल है. स्कूल में कभी हॉस्टल की भी व्यवस्था हुआ करती थी. राजे रजवाड़ों से भी बेटियां यहां रहकर पढ़ा करती थीं. स्कूल आज भी संचालित है, लेकिन वक्त के साथ अपग्रेड नहीं हो पाया. इसी तरह से अजमेर मेमोरियल स्कूल भी 100 वर्षों से अधिक पुरानी है. यह बॉयज स्कूल था. ब्रिटिश हुकूमत के समय अजमेर उनका बड़ा केंद्र था. ऐसे में शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में यहां काफी विकास हुआ. यही वजह है कि अजमेर शिक्षा की नगरी से विख्यात हुआ.

जोर शोर से की जा रही है क्रिसमस की तैयारी :सैमुअल बताते हैं कि क्रिसमस मसीह समाज का सबसे बड़ा त्योहार है. 1 दिसंबर से ही मसीह समाज क्रिसमस की तैयारी में जुट जाता है. अजमेर के सभी चर्चों में विशेष सजावट हो रही है. चर्चों में प्रार्थना सभा हो रही है. इसके अलावा युवाओं की टोलियां देर शाम को घर घर जाकर करोल सांग के माध्यम से प्रभु यीशु के आगमन का संदेश दे रहे हैं. मसीह समाज में क्रिसमस पर्व के आने की खुशी और उत्साह बना हुआ है.

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