हैदराबादः हिंदू धर्म में साल भर व्रत-त्योहार मनाए जाते हैं. सभी व्रत-त्योहारों को मनाने की परंपरा अलग-अलग होती है. साथ ही सभी त्योहारों के धार्मिक महत्व व मान्यता भी अलग-अलग हैं. इनमें से एक जितिया पर्व है, जिसे जीवित्पुत्रिका भी कहा जाता है. यह त्योहार मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, नेपाल के इलाके में ज्यादा प्रचलित है. जितिया में माताएं अपने पुत्रों के बेहतर स्वास्थ्य, सुखमय जीवन और लंबी आयु के लिए निर्जला व्रत रखा जाता है. हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार जीतमूतवाहन प्रदोष काल में जितिया व्रत रखा जाता है. इसमें जीमूतवाहन भगवान की पूजा की जाती है.
कब होता है जितिया व्रत
हिंदू पंचांग के अनुसार अश्विन माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि से प्रारंभ होकर नवमी तिथि को जितिया व्रत संपन्न होता है. द्रिक पंचांग के अनुसार अश्विन माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत मंगलवार (24 सितंबर 2024) को दोपहर 12 बजकर 38 मिनट से हो रहा है. इसका समापन बुधवार (25 सितंबर 2024) को दोपहर 12 बजकर 10 मिनट पर होगा. हिंदू धर्म में उदया तिथि को माना जाता है. इस कारण बुधवार (25 सितंबर 2024) को दिन-रात महिलाएं निर्जला उपवास रखेंगी. इस व्रत में डलिया भरा जाता है. उसमें मौसमी फल, मेवा, मिठाई (कुछ जगहों विशेष रूप पर बताशा, खाजा आदि मिठाई चढ़ाया जाता है) डलिया में रखा जाता है. कई जगहों पर व्रत से पहले महिलाएं गंगा स्नान करती हैं.
जितिया व्रत 2024 कब है
- मंगलवार (24 सितंबर 2024) को नहाय-खाय के साथ जितिया व्रत प्रारंभ होगा.
- बुधवार (25 सितंबर 2024) को निर्जला व्रत (दिन-रात) होगा.
- गुरुवार (26 सितंबर 2024) को पारण के साथ व्रत का समापन होगा.
द्रिक पंचांग के अनुसार अष्टमी तिथि
- अष्टमी तिथि प्रारंभ- 24 सितंबर 2024 को दोपहर 12 बजकर 38 मिनट पर
- अष्टमी तिथि की समाप्ति-25 सितंबर 2024 को दोपहर 12 बजकर 10 मिनट पर
अर्जुन के पोते को भगवान कृष्ण ने किया था जीवित
जिउतिया व्रत का संबंध महाभारत काल से है. प्रचलित कथा के अनुसार निंद्रा अवस्था में पांडवों के सभी बेटों व अभिमन्यु के अजन्मे बेटे (अर्जुन का पोता) तक को मार दिया. इसके बाद भगवान कृष्ण ने अपने दिव्य शक्ति से अर्जुन के पोते को जीवित कर चमत्कार कर दिया. इस कारण जन्म के बाद बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया. इसी धार्मिक मान्यता के आधार पर माताएं अपने पुत्र की लंबी आयु के लिए यह व्रत रखती है. इस व्रत मे उपवास (प्रारंभ) वाले दिन सूर्योदय से पहले ही कुछ खाने-पीने का प्रथा है.