नई दिल्ली: विश्व पर्यावरण संरक्षण को लेकर तरह-तरह के उपाय किए जा रहे हैं. जिनमें समुद्री खनन से जुड़ी समस्याएं प्रमुख हैं. वैसे दुनिया के कई बड़े देश अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूती देने के लिए समुद्री संसाधनों का उपयोग करती रही है. हालांकि विशाल समुद्र के गहरे तल में खनन को लेकर कई बड़े सवाल भी खड़े हुए हैं. प्रश्न है कि क्या गहरे समुद्र में खनन क्यों नहीं किया जाना चाहिए? अगर इन सवालों को नजरअंदाज करते है तो किस तरह के भयावह परिणाम निकल कर सामने आ सकते हैं.
प्रकृति दोहन से विश्व को खतरा
देखा जाए तो विश्व के अधिकांश विकसित और विकासशील देश अपनी संसाधनों को मजबूती देने के लिए प्रकृति के संसाधनों का इस्तेमाल करते आ रहे हैं. समुद्र के गहरे तल में कई महत्वपूर्ण खनिजों का विशाल भंडार है और ऐसा मानना है कि कई दशकों से महासागर के खजानों का इस्तेमाल देश के विकास में उपयोग किया जा रहा है. अन्य विकसित देशों की तरह भारत भी हिंद महासागर की गहराईयों में गोते लगाकर वहां से खनिजों को निकालने की दिशा में सक्रिय रूप से आगे बढ़ रहा है. बता दें कि, भारतीय प्रतिनिधियों ने पिछले महीने किंग्सटन, जमैाका में आयोजित समुद्र के कानून संबंधी संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के तहत एक अंतरराष्ट्रीय निगरानी निकाय- इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी (आईएसए-ISA) के एक सत्र में अपना प्रस्ताव पेश किया था.
क्या है समुद्री कानून?
वैसे समुद्री कानून से जुड़े अंतरराष्ट्रीय नियम यह कहता है कि 200 मील तक फैली समुद्री जल सीमा के बाहर कोई भी देश समुद्री क्षेत्र और उसके संसाधनों पर दावा नहीं कर सकता है. इसी कानून की वजह से सभी देश अन्वेषण और खनन की अनुमति के लिए आईएसए का दरवाजा खटखटाने के लिए बाध्य हैं. मार्च के महीने में बैटरी के निर्माण के लिए आवश्यक धातुओं जैसे कोबाल्ट, मैंगनीज और निकल के वाणिज्यिक खनन के लिए दिशानिर्देश तैयार और चर्चा करने के लिए कई देशों ने बड़ी बैठक बुलाई थी. बैठक में कम कार्बन ऊर्जा प्रौधोगिकियों के विकास पर बल दिया गया. बैठक के बाद समुद्री तल से खनिजों के व्यवसायिक दोहन पर अंतिम निर्णय इस साल के अंत तक होने की उम्मीद जताई जा रही है. आपको बताते चले कि, 2010 तक 300 से 6500 मीटर की समुद्री गहराई से खनिजों का अन्वेषण केवल देश के विशिष्ट सरकारी एजेंसिया ही करती रही हैं. जानकारी के मुताबिक तब से ही कई निजी कंपनियां पूर्वेक्षण में शामिल हो गईं.
समुद्री खनन में कौन देश सबसे आगे?
अन्य देश में चीन एक ऐसा देश है जो समुद्री खजानों के खनन में सबसे आगे है. भारत की बात करे तो वह आईएसए से प्राप्त परमिट के साथ पॉलीमेटेलिक नोड्यूल के लिए इन समुद्री इलाकों में खोज जारी रख सकता है. हालांकि, ऐसे परमिट का उपयोग वाणिज्यिक शोषण के लिए नहीं किया जा सकता है. इसका लक्ष्य पश्चिमी तट पर स्थित कार्ल्सबर्ग रिज के आसपास गहरे समुद्र के तल और हिंद महासागर के पूर्वी हिस्से पर अफानसी-निकितिन सीमाउंट का खनन करना भी है, जो कोबाल्ट-समृद्ध फेरोमैंगनीज नोड्यूल्स में समृद्ध माना जाता है. लगभग 400 किमी लंबा और 150 किमी चौड़ा यह समुद्री पर्वत, मध्य भारतीय बेसिन - श्रीलंका के दक्षिण-पूर्व में, भूमध्य रेखा के ठीक नीचे स्थित है, इसका निर्माण लगभग 80 मिलियन साल पहले हुआ था. पश्चिमी किनारे पर कार्ल्सबर्ग रिज अफ्रीकी और भारतीय प्लेटों के बीच एक सक्रिय टेक्टोनिक सीमा है, जो समुद्र तल के फैलाव की सुविधा प्रदान करती है.