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भारत-अमेरिका संबंधों में क्या हैं बाधाएं, आगे भी बनी रहेंगी चुनौतियां - Roadblocks In India US Ties - ROADBLOCKS IN INDIA US TIES

Roadblocks In India US Ties : 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार के सत्ता में आने के बाद से भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में सुधार हुआ है. लेकिन भारत-अमेरिका के संबंधों में अभी भी कुछ बाधाएं हैं, जिन पर इस लेख में जोर दिया गया है.

Roadblocks in ties between India and United States Sikh Khalistan Movement Bangladesh PM Modi Joe Biden
राष्ट्रपति जो बाइडेन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक दूसरे से मिलते हुए. (AP)

By Major General Harsha Kakar

Published : Sep 30, 2024, 7:44 PM IST

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया अमेरिका यात्रा के बाद भारत-अमेरिका संबंधों पर पूछे गए सवाल पर व्हाइट हाउस के राष्ट्रीय सुरक्षा संचार सलाहकार जॉन किर्बी ने कहा कि दोनों देशों के बीच संबंध मजबूत हैं और ये लगातार मजबूत हो रहे हैं.

अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने भारत के संबंध में बात करते हुए कहा, "भारत कोविड-19 महामारी के खिलाफ वैश्विक प्रतिक्रिया का समर्थन करने से लेकर दुनिया भर में संघर्षों के विनाशकारी परिणामों को संबोधित करने तक, सबसे अधिक दबाव वाली चुनौतियों का समाधान खोजने के प्रयासों में सबसे आगे है." उन्होंने कहा कि भारत के साथ अमेरिका के संबंध 'इतिहास में किसी भी समय की तुलना में अधिक मजबूत, घनिष्ठ और अधिक गतिशील हैं.'

पीएम मोदी ने अमेरिका के साथ संबंधों को मजूत करना अपनी विदेश नीति का आधार बनाया. इससे कई बार भारत की रणनीतिक स्वायत्तता पर संदेह पैदा हुआ. इस रिश्ते ने दोनों देशों को उनके वैश्विक प्रयासों में लाभ पहुंचाया है. भारत को iCET (महत्वपूर्ण और उभरती हुई प्रौद्योगिकी पर पहल), अमेरिकी हथियारों और निवेशों से भी लाभ हुआ. आक्रामक चीन को रोकने के लिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी रणनीति को आगे बढ़ाने में अमेरिका के लिए भारत एक मजबूत साझेदार है.

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन एयरफोर्स वन में सवार होने से पहले पत्रकारों से बात करते हुए. (AP)

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अपनी पुस्तक पर चर्चा करते हुए कहा, 'आज हमारी बहुध्रुवीयता को बढ़ाने के लिए अमेरिका का साथ बहुत जरूरी है. अगर हमें निर्णय लेने की जगह, स्वतंत्रता की आवश्यकता है, तो हमें ऐसे देशों की आवश्यकता है, जिनका हित इस बात में हो कि हमारे पक्ष में वे लाभकारी हों.' रक्षा, अंतरिक्ष और सेमीकंडक्टर में बढ़ते सहयोग से यही संदेश जाता है कि दोनों राष्ट्रों के विचार पहले से कहीं अधिक मेल खाते हैं.

पीएम मोदी की यूक्रेन और पोलैंड यात्रा पर बाइडेन ने विशेष टिप्पणी की. अमेरिका जानता है कि अगर वह यूक्रेन युद्ध को खत्म करने का फैसला करता है, तो उसे यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की के जीत के किसी भी दावे को नजरअंदाज करते हुए बातचीत को आगे बढ़ाने के लिए भारत की ओर रुख करना होगा. भारत अमेरिका और रूस के साथ-साथ रूस और यूक्रेन के बीच इकलौता भरोसेमंद माध्यम बना हुआ है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 22 सितंबर, 2024 को न्यूयॉर्क में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए. (AP)

मॉस्को के साथ नई दिल्ली के संबंधों को लेकर भारत और अमेरिका के बीच मतभेद एक समय बाधा बन गए थे. भारत पर सस्ते रूसी तेल खरीदकर यूक्रेन युद्ध को फंडिंग करने का आरोप लगाया गया था. आज, वॉशिंगटन द्वारा संघर्ष को समाप्त करने के लिए इसी संबंध का फायदा उठाया जा रहा है. भारत, यूक्रेन और रूस के नेतृत्व के बीच नियमित बैठकें इस बात का संकेत हैं कि समाधान निकालने के लिए आगे की दिशा में काम हो रहा है.

एससीओ (शंघाई सहयोग संगठन) और ब्रिक्स प्लस (BRICS+) में भारत की भागीदारी को शुरू में चीन और रूस के अमेरिका विरोधी संस्थानों में वर्चस्व के रूप में देखा गया था. कई लोगों को लगा कि भारत को एससीओ की सदस्यता छोड़ देनी चाहिए. अब इसे अलग तरह से देखा जा रहा है. भारत की मौजूदगी ने इन संस्थानों को अमेरिका या पश्चिम विरोधी होने से रोका है. बयान आम तौर पर मौन रहते हैं.

चीन की आक्रामकता को रोकने के लिए अमेरिका और भारत को एक-दूसरे की जरूरत है. क्वाड का प्रभाव भारत-अमेरिका सहयोग पर निर्भर करता है. पीएम मोदी ने क्वाड को 'वैश्विक भलाई के लिए शक्ति' करार दिया. चीन जानता है कि क्वाड उसके खिलाफ है. चाइना डेली के एक हालिया संपादकीय में उल्लेख किया गया है कि भारत 'अमेरिका और अन्य समान विचारधारा वाले देशों के साथ काम करके एशिया-प्रशांत में अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिए' क्वाड में अमेरिका के साथ जुड़ रहा है.

विदेश मंत्री एस जयशंकर संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए. (AP)

वहीं, बाइडेन और उनके सलाहकार, जिनमें विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन शामिल हैं, भारत-अमेरिका संबंधों को और मजबूत बनाने पर जोर दे रहे हैं. बाइडेन प्रशासन के कुछ सदस्य ऐसे भी हैं जो भारत को दूर रखना पसंद करेंगे या ऐसे समूहों का समर्थन करेंगे जो भारत की आंतरिक एकजुटता को नुकसान पहुंचा सकते हैं. सिख फॉर जस्टिस के नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू को संरक्षण देना इसका एक उदाहरण है. पन्नू की 'तथाकथित हत्या की कोशिश' और उसके बाद भारत सरकार के खिलाफ उनके द्वारा दायर किए गए अदालती मामले, जिसे दिल्ली ने 'बकवास' करार दिया हैं, ने दोनों देशों के संबंधों में असहजता को और बढ़ा दिया है.

पीएम मोदी के अमेरिका पहुंचने से ठीक पहले, व्हाइट हाउस के अधिकारियों ने अमेरिकी सिखों के एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की और उन्हें अमेरिकी सरकार की सुरक्षा का आश्वासन दिया. ये संगठन खालिस्तान बनाने के लिए अलगाववादी अभियानों का समर्थन करने के लिए जाने जाते हैं. अमेरिकन सिख कॉकस कमेटी के प्रीतपाल सिंह ने ट्वीट किया, "सिख अमेरिकन्स की सुरक्षा में उनकी सतर्कता के लिए अमेरिकी अधिकारियों का आभार. हम अपने समुदाय की सुरक्षा के लिए और अधिक काम करने के उनके आश्वासन पर कायम रहेंगे. स्वतंत्रता और न्याय की जीत होनी चाहिए." ऐसा लगता है कि एक काल्पनिक खालिस्तान राज्य के लिए आंदोलन को अमेरिकी सरकार द्वारा आधिकारिक प्रोत्साहन दिया जा रहा है.

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने एक साल पहले खालिस्तानी चरमपंथी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत की संलिप्तता का मुद्दा उठाया था. तब अमेरिका ने ट्रूडो के आरोपों का समर्थन किया था. महीनों पहले निज्जर के संभावित हत्यारों की गिरफ्तारी के बावजूद आज तक कोई सबूत सामने नहीं आया है. किसान आंदोलन के लिए सबसे ज्यादा फंडिंग अमेरिका और कनाडा से हुई. यह संभव है कि उनकी सरकारों को इसकी जानकारी थी.

सिख अलगाववादी आंदोलनों की रक्षा करने जैसी दिलचस्पी, अमेरिकी अधिकारियों ने भारतीय दूतावासों पर हमले और हिंदू पूजा स्थलों पर तोड़फोड़ के बाद की जांच में कभी नहीं दिखाई. एफबीआई पिछले साल मार्च में सैन फ्रांसिस्को में भारतीय वाणिज्य दूतावास पर हमले की 'आक्रामक जांच' कर रही है, जबकि भारत ने अपने सीसीटीवी फुटेज से पता लगाए गए अपराधियों के नाम और विवरण उपलब्ध कराए हैं.

अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रवक्ता जॉन किर्बी व्हाइट हाउस में प्रेस ब्रीफिंग करते हुए. (AP)

हाल ही में एक मामले में, न्यूयॉर्क में इसी तरह की घटना के कुछ ही दिनों बाद कैलिफोर्निया के सैक्रामेंटो में बीएपीएस श्री स्वामीनारायण मंदिर को हिंदू विरोधी घृणा के साथ अपवित्र किया गया था. अमेरिकी अधिकारियों और अमेरिकी सिख कॉकस के सदस्यों की बैठक के बाद ये घटनाएं अमेरिका और कनाडा दोनों में जोर पकड़ रही हैं. इन मामलों में जांच या तो धीमी है या हो ही नहीं रही है.

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के नेता मोहम्मद यूनुस ने यूएनजीए सत्र के दौरान अमेरिका का दौरा किया. उनसे अमेरिकी सरकार के सभी प्रमुख लोगों ने मुलाकात की, जिसमें विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन, विश्व बैंक के अध्यक्ष, अमेरिकी प्रशासन के सदस्य और पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन शामिल थे. सभी ने लोकतंत्र की ओर बढ़ने के लिए नई सरकार को समर्थन और सहायता का वादा किया.

हालांकि, ब्लिंकन ने मानवाधिकारों के पालन का जिक्र किया, लेकिन बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा को रोकने का कोई जिक्र नहीं किया. संदेश यह दिया जा रहा था कि जब तक बांग्लादेश अमेरिका के इशारे पर चलेगा, तब तक अमेरिका अल्पसंख्यक विरोधी हिंसा को नजरअंदाज करेगा. इससे भारत-बांग्लादेश संबंधों को नुकसान पहुंचेगा, लेकिन अमेरिका को इससे कोई सरोकार नहीं है. अपने पड़ोस में इस्लामी चरमपंथियों के सिर उठाने की भारतीय चिंता को भी नजरअंदाज किया जा रहा है.

कथित 'आपूर्ति श्रृंखला मुद्दों' के कारण अमेरिका से भारत को महत्वपूर्ण अनुबंधित उपकरणों की आपूर्ति में देरी हो रही है. अपाचे हेलीकॉप्टर जैसे अनुबंधित हार्डवेयर के लिए भारत की प्राथमिकता भी कम कर दी गई. ऐसा लगता है कि इस संदेश का उद्देश्य यह है कि नेतृत्व भले ही अमेरिका-भारत संबंधों में सुधार की इच्छा रखता हो, लेकिन अमेरिकी नौकरशाही के भीतर ऐसे तत्व हैं जो अभी भी भारत या उसके इरादों पर भरोसा नहीं करते हैं. यह तब और बढ़ जाता है जब अमेरिका के भीतर तथाकथित स्वतंत्र एजेंसियां भारत के मानवाधिकार रिकॉर्ड और लोकतांत्रिक साख पर अनुचित और फर्जी चिंताएं जताती हैं.

यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि नेताओं द्वारा घनिष्ठ संबंध और बेहतर संबंध बनाने की चाहत के बावजूद, भारत की सामरिक स्वायत्तता को रोकने की कोशिश में कुछ लोग लगे हुए हैं. उनसे निपटना एक चुनौती बनी रहेगी क्योंकि शीर्ष नेतृत्व बदल सकता है लेकिन वे शासन में बने रहेंगे.

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