नई दिल्ली: यूनाइटेड किंगडम (UK) के आम चुनावों में लेबर पार्टी ने शानदार जीत दर्ज की है. हाउस ऑफ कॉमन्स की 650 सदस्य सीटों में से कीर स्टारमर के नेतृत्व में लेबर पार्टी ने लगभग 412 सीटें जीतीं. इसके साथ ही लेबर पार्टी 14 साल के अंतराल के बाद सत्ता में वापस आई है और इस बदलाव का क्रेडिट कीर स्टारमर के नेतृत्व को दिया जा रहा है. लेबर पार्टी का नेतृत्व संभालने से पहले कीर स्टारमर क्राउन प्रॉसिक्यूशन सर्विस में मानवाधिकार वकील और मुख्य अभियोजक के रूप में काम करते थे.
यूके आम चुनाव के नतीजे. (ETV Bharat GFX) प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभालने के बाद अपने पहले भाषण में कीर स्टारमर ने "राष्ट्रीय नवीनीकरण और सार्वजनिक सेवा की राजनीति में वापसी" की दिशा में काम करने का वादा किया. चुनाव में पार्टी के वोट शेयर और सीट शेयर जबकि संसद में लेबर पार्टी की संख्या में उल्लेखनीय सुधार हुआ है. 2019 में लेबर पार्टी का वोट शेयर लगभग 32 प्रतिशत था. इस बार लेबर का वोट शेयर मामूली रूप से बढ़कर 33.8 प्रतिशत हो गया और पार्टी संसद में 63 प्रतिशत सीटें जीतने में सक्षम रही.
कंजर्वेटिव पार्टी का वोटिंग प्रतिशत गिरा
दूसरी ओर, कंजर्वेटिव पार्टी का वोटिंग प्रतिशत 2019 में लगभग 43 प्रतिशत से गिरकर 23.7 प्रतिशत रह गया. कंजर्वेटिव पार्टी ने चुनाव में लगभग 121 सीटें जीतीं और उसे लगभग 244 सीटें का नुकसान हुआ. कंजर्वेटिव के दिग्ज नेता लिज ट्रस, रक्षा सचिव ग्रांट शैप्स और कई अन्य मंत्री चुनाव हार गए.
कंजर्वेटिव पार्टी में कई सदस्यों ने चुनावी हार के लिए अंदरूनी कलह को जिम्मेदार ठहराया, जो इस तथ्य से स्पष्ट है कि पिछले आठ साल में पांच प्रधानमंत्री रहे हैं. एक राय यह भी थी कि अवैध आव्रजन और मुद्रास्फीति जैसी मुख्य चिंताओं को प्रभावी ढंग से संबोधित करने में असमर्थता ने कई रूढ़िवादी पार्टी के मतदाताओं को पार्टी छोड़ने के लिए प्रेरित किया.
कई रूढ़िवादी पार्टी के मतदाता रिफॉर्म यूके पार्टी की ओर आकर्षित हुए, जिसने टैक्स में कमी लाने, अवैध प्रवास को रोकने के लिए सख्त सीमा नियंत्रण लागू करने और ब्रिटिश संस्कृति, पहचान और मूल्यों के लिए खड़े होने का वादा किया था, जबकि पार्टी ने 14.3 प्रतिशत वोट शेयर के साथ पांच सीटें जीतीं, वहीं, पार्टी लगभग 103 निर्वाचन क्षेत्रों में दूसरे स्थान पर रही.
रिफॉर्म यूके पार्टी का बेहतर प्रदर्शन
रिफॉर्म यूके पार्टी का बेहतर प्रदर्शन यूरोपीय देशों के मूड के अनुरूप है, जहां प्रवासन को लेकर चिंतित कई लोग दक्षिणपंथी पार्टियों को वोट दे रहे हैं. कई न्यूज रिपोर्टों से पता चलता है कि अगर रिफॉर्म यूके पार्टी ने चुनाव नहीं लड़ा होता तो रूढ़िवादी चुनावी प्रदर्शन बहुत बेहतर होता. लिबरल डेमोक्रेट पार्टी 71 सांसदों के साथ तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि 2019 में लिबरल डेमोक्रेट पार्टी ने लगभग 11.5 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 11 सीटें जीती थीं.
2024 में लिबरल डेमोक्रेट का वोट शेयर बहुत मामूली रूप से बढ़कर लगभग 12.2 प्रतिशत हो गया, लेकिन उसे 71 सीटें मिलीं. रूढ़िवादी वोट के विखंडन और रिफॉर्म पार्टी को मिले वोटों ने लिबरल डेमोक्रेट्स को प्रभावशाली चुनावी जीत दर्ज करने में सक्षम बनाया.
क्षेत्रीय स्तर पर विश्लेषण से दिलचस्प चुनावी नतीजे सामने आए हैं. देश के उत्तरी हिस्से में स्कॉटलैंड की स्वतंत्रता की मांग को लेकर चुनाव लड़ने वाली स्कॉटिश नेशनल पार्टी (एसएनपी) ने लगभग 9 सीटें जीतीं. 2019 की तुलना में एसएनपी को लगभग 39 सीट का नुकसान हुआ.
स्कॉटलैंड की स्वतंत्रता के एसएनपी का एजेंडे फिलहाल काम नहीं कर रहा है, लेकिन स्कॉटिश संसद के लिए 2026 के चुनावों में इसकी फिर से टेस्टिंग की जाएगी. दूसरी ओर 2019 में केवल एक सीट जीतने वाली लेबर पार्टी ने इस बार स्कॉटलैंड में 37 सीटें हासिल कीं. वेल्स क्षेत्र में रूढ़िवादी पार्टी ने एक भी सीट नहीं जीती. उत्तरी आयरलैंड में, सिन फेन ने 7 संसद सदस्य सीटें जीतीं, और डेमोक्रेटिक यूनियनिस्ट पार्टी ने 5 सीटें जीतीं.
भारत पर क्या होंगे प्रभाव?
नए हाउस ऑफ कॉमन्स में लगभग 28 सांसद भारतीय मूल के हैं. हालांकि उनका चुनाव जीतना एक स्वागत योग्य विकास है, लेकिन यह अनिवार्य नहीं है कि यूके की संसद में भारतीय मूल के लोगों की बढ़ती उपस्थिति से भारत के साथ बेहतर संबंध बनेंगे. भारतीय मूल के सांसद दुनिया भर में ब्रिटिश हितों को आगे बढ़ाने की कोशिश करेंगे, जो सही भी है. इसके अलावा, उन्हें भारत के साथ बातचीत में अपने स्थानीय वोट बैंकों की प्राथमिकताओं को भी ध्यान में रखना होगा. 2019 में, जेरेमी कॉर्बिन के नेतृत्व में लेबर पार्टी ने कश्मीर में अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप का आह्वान किया था, जिससे भारत को काफी निराशा हुई.
हालांकि, लेबर पार्टी का नेतृत्व संभालने के बाद कीर स्टारमर ने कथित तौर पर कहा कि भारत में कोई भी संवैधानिक मुद्दा भारतीय संसद का मामला है और कश्मीर एक द्विपक्षीय मुद्दा है जिसे भारत और पाकिस्तान को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाना चाहिए. इसके अलावा, हाल ही में लेबर पार्टी के घोषणापत्र में भारत के साथ एक नई रणनीतिक साझेदारी की तलाश करने का वादा किया गया है, जिसमें एक मुक्त व्यापार समझौता, साथ ही सुरक्षा, शिक्षा, प्रौद्योगिकी और जलवायु परिवर्तन जैसे क्षेत्रों में सहयोग को गहरा करना शामिल है. यूनाइटेड किंगडम के लिए भारतीय बाजार तक पहुंचना काफी जरूरी हो गया है. इसके अलावा, दोनों देश लोगों के बीच मजबूत संपर्क, शैक्षिक संबंध और सुरक्षा साझेदारी साझा करते हैं.
लेबर पार्टी के घोषणापत्र में शेयर खतरों से निपटने के लिए यूके-ईयू सुरक्षा समझौते और सहयोगियों और मित्रों के साथ अधिक सहयोग का वादा किया गया था. गैर-पारंपरिक सुरक्षा के क्षेत्र में लेबर घोषणापत्र में बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार, एक नया स्वच्छ ऊर्जा गठबंधन और अंतर्राष्ट्रीय विकास के लिए वैश्विक दक्षिण के साथ साझेदारी का आह्वान किया गया. अक्सर कहा जाता है कि राजनीति में एक सप्ताह का समय बहुत लंबा होता है. कंजर्वेटिव पार्टी को नया नेतृत्व और एजेंडा खोजने के लिए अंदरूनी कलह पर काबू पाना होगा. अगर वह ऐसा करने में विफल रहती है, तो रिफॉर्म यूके पार्टी जैसे अन्य दल कंजर्वेटिव पार्टी के वोट शेयर छीनते रहेंगे.
दक्षिणपंथी पार्टियां कर रही अच्छा प्रदर्शन
पूरे यूरोप में, दक्षिणपंथी पार्टियां चुनावों में अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं. यूनाइटेड किंगडम में चुनाव के नतीजे देश में भी इसी तरह की सत्ता विरोधी भावना का संकेत देते हैं. हालांकि, लेबर पार्टी और लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी जैसी अन्य पार्टियों की मौजूदगी ने यह सुनिश्चित किया है कि सत्ता विरोधी वोट पूरी तरह से दक्षिणपंथी पार्टियों के वोट में तब्दील न हो. फिर भी रिफॉर्म यूके पार्टी के प्रदर्शन पर ध्यान दिया जाना चाहिए. आने वाले सालों में रिफॉर्म यूके पार्टी की राजनीति काफी ध्यान आकर्षित करेगीय
रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार छोटी पार्टियों को लगभग 40 प्रतिशत वोट मिले, लेकिन संसद में उन्हें लगभग 17 प्रतिशत सीटें ही मिलीं. इसलिए, यह आश्चर्य की बात नहीं है कि रिफॉर्म यूके पार्टी और ग्रीन पार्टी के नेताओं ने निष्पक्ष चुनावी प्रणाली की मांग की है. 2011 में एक जनमत संग्रह आयोजित किया गया था कि जिसमें पूथा गया था कि देश को वैकल्पिक वोट प्रणाली अपनानी चाहिए या नहीं. भारी बहुमत ने मौजूदा फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट चुनावी प्रणाली को जारी रखना पसंद किया.
इस बात की वैध चिंताएं हैं किप्रोपोर्शनल रिप्रेजेंटेशन शुरू करने से पहचान की राजनीति बढ़ सकती है और सामाजिक विभाजन गहरा सकता है. अगर हम पार्टियों के बीच सीटों के बदलाव की जांच करें, तो यूनाइटेड किंगडम में चुनाव परिणामों को चुनावी सुनामी कहना लुभावना होगा. हालाँकि, अगर हम पार्टियों के वोट शेयर की जांच करें, तो यूनाइटेड किंगडम में बदलाव की हल्की हवाएं चली हैं. दुनिया भर के कई उदार लोकतांत्रिक देशों के लिए, एक निर्णायक चुनावी फैसला और यूनाइटेड किंगडम में स्थिर सरकार की संभावना एक स्वागत योग्य विकास है.
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