डोनाल्ड ट्रंप की अमेरिकी राष्ट्रपति पद पर वापसी से वैश्विक राजनीति और आर्थिक नीतियों में बड़ा बदलाव आने की संभावना है. भारत-अमेरिका संबंधों पर इसका महत्वपूर्ण प्रभाव हो सकता है, विशेषकर जलवायु नीति, व्यापार, और रक्षा सहयोग के क्षेत्रों में. भारतीय विशेषज्ञों ने ट्रंप की नीतियों के संभावित असर पर अपनी राय व्यक्त की है, जिसमें कई अवसरों के साथ-साथ चुनौतियों की भी आशंका जताई जा रही है.
जलवायु नीति पर असर: विशेषज्ञों का मत
ट्रंप के पहले कार्यकाल में अमेरिका पेरिस जलवायु समझौते से बाहर हो गया था, जिससे वैश्विक जलवायु सहयोग को झटका लगा था. इस बार भी उनकी नीतियों में जलवायु वित्त पोषण और स्वच्छ ऊर्जा निवेश को प्राथमिकता मिलने की संभावना कम है.
डॉ. अरुणाभा घोष, सीईईडब्ल्यू के सीईओ, का मानना है कि भारत को अपनी जलवायु और ऊर्जा नीतियों में रणनीतिक लचीलापन बनाए रखने की जरूरत होगी. उनके अनुसार, "अमेरिका में प्रस्तावित व्यापार प्रतिबंधों से भारतीय स्वच्छ तकनीकों पर असर पड़ सकता है. भारत अपने ऊर्जा संक्रमण को तेज करने के लिए स्वच्छ तकनीकों के विकास और हरित व्यापार को गहराई से अपनाने की ओर देख रहा है."
आरती खोसला, क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक, कहती हैं कि ट्रंप की जलवायु नीति, पिछली बार की तरह, सकारात्मक बदलावों में रुकावट डाल सकती है. उन्होंने कहा, "दुनिया जलवायु संकट के प्रभावों को झेल रही है, और इस बार ट्रंप के सत्ता में आने से वैश्विक जलवायु फाइनेंस में कटौती हो सकती है, जिससे विकासशील देशों के लिए अनिश्चितता बढ़ेगी."
व्यापार पर प्रभाव: संरक्षणवादी रुख की चुनौतियां
ट्रंप ने अपने पिछले कार्यकाल में भारत के साथ व्यापार असंतुलन पर नाराजगी जताई थी और कई भारतीय उत्पादों पर टैरिफ भी लगाए थे. उनकी संरक्षणवादी नीतियां एक बार फिर से भारत के निर्यात और आर्थिक हितों के लिए चुनौती साबित हो सकती हैं.