नई दिल्ली: हिजबुल्लाह के महासचिव हसन नसरल्लाह की हत्या को गाजा में हमास के साथ चल रहे संघर्ष के दौरान इजराइल की बड़ी जीत के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें अब तक लगभग 42,000 फिलिस्तीनी लोगों की जान जा चुकी है और ईरान के लिए यह एक बड़ी क्षति है, लेकिन सच्चाई यह है कि आने वाले समय में तेल अवीव को इस क्षेत्र में गैर-सरकारी तत्वों से जूझना होगा.
बीते शनिवार को बेरूत में इजराइली हवाई हमले के दौरान नसरल्लाह की हत्या के बाद ईरान समर्थित लेबनानी शिया इस्लामिस्ट और राजनीतिक और उग्रवादी समूह हिजबुल्लाह ने घोषणा की है कि उसके उप महासचिव नईम कासिम ने संगठन के अंतरिम नेता के रूप में कार्यभार संभाल लिया है.
कासिम ने इजराइल के खिलाफ लड़ाई जारी रखने की कसम खाई और कहा कि आतंकवादी समूह अपने शीर्ष कमांड के अधिकांश हिस्से का सफाया होने के बाद एक लंबे युद्ध के लिए तैयार है. पिछले 10 दिनों में इजराइली हमलों में नसरल्लाह और उसके छह शीर्ष कमांडर मारे गए हैं. इस दौरान इजराइली सेना का कहना है कि लेबनान के बड़े हिस्से में हजारों आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाया गया है.
स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार लेबनान में 1,000 से अधिक लोग मारे गए हैं, जिनमें से लगभग एक चौथाई महिलाएं और बच्चे हैं. वहीं, सरकार का कहना है कि लड़ाई के कारण दस लाख लोग विस्थापित हो सकते हैं. कासिम ने कहा कि पिछले महीनों में हिजबुल्लाह के शीर्ष सैन्य कमांडरों की हत्या के बाद संगठन अब नए कमांडरों पर निर्भर है.
उन्होंने कहा, "इजराइल हमारी (सैन्य) क्षमताओं को प्रभावित करने में सक्षम नहीं है. हमारे पास डिप्टी कमांडर हैं और किसी भी पोस्ट पर कमांडर के घायल होने की स्थिति में उनका रिप्लेसमेंट भी मौजूद है." यह इस बात का ताजा उदाहरण है कि कैसे एक नॉन-स्टेट एक्टर पश्चिम एशिया संघर्ष में इजराइल को चुनौती दे सकता है.
यह नॉन-स्टेट एक्टर पारंपरिक स्टेट एक्टर्स से अलग है, क्योंकि वे अक्सर फॉर्मल स्टेट स्ट्रक्चर के बाहर काम करते हैं. अक्सर अंतरराष्ट्रीय कानून की सीमाओं को चुनौती देते हैं और उन विचारधाराओं से प्रेरित होते हैं जो राजनयिक समाधानों के साथ संरेखित नहीं होती हैं. इन समूहों के साथ इजराइल के चल रहे संघर्ष को कई नजरिए से समझा जा सकता है. ऐतिहासिक शिकायतें, कमजोर स्टेट के बनाए पावर वैक्यूम, प्रॉक्सी संघर्ष, वैचारिक प्रेरणाएं और क्षेत्रीय अस्थिरता.
इजराइल के नॉन- स्टेट ऐलिमेंट का सामना करने का एक कारण पड़ोसी राज्यों की अपनी भूमि पर नियंत्रण बनाए रखने में कमजोरी या विफलता है. उदाहरण के लिए लेबनान हिजबुल्लाह का प्राथमिक आधार रहा है. सांप्रदायिक विभाजन और दशकों के गृहयुद्ध से कमजोर लेबनानी सरकार हिजबुल्लाह को पूरी तरह से निरस्त्र करने या दक्षिणी लेबनान पर अपनी संप्रभुता का दावा करने में असमर्थ रही है, जिससे हिजबुल्लाह को एक राज्य के भीतर एक राज्य के रूप में काम करने की अनुमति मिल गई है.
लेबनान के महत्वपूर्ण हिस्सों पर हिजबुल्लाह का नियंत्रण, जिसमें उसके सैन्य अभियान और इजराइल के प्रति उसकी विदेश नीति शामिल है, उसे लेबनानी सरकार से स्वतंत्र रूप से कार्य करने में सक्षम बनाता है. सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) में भारत के पूर्व राजदूत तलमीज अहमद ने ईटीवी भारत से कहा, "पश्चिम एशिया में एक भी देश के पास इजराइल का सामना करने के लिए पारंपरिक सैन्य क्षमता नहीं है. नतीजतन, पूरे क्षेत्र में नॉन-गवर्नर एक्टर्स हैं."
अहमद ने बताया कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा इजराइल के खिलाफ कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं किए जाने के कारण, वह अपने कथित विरोधियों के खिलाफ लगातार हमले कर रहा है.
उन्होंने कहा, "जहां तकइजराइल का सवाल है, उसे मौत और विनाश के मामले में पूरी तरह से छूट प्राप्त है. अगर आपने पिछले एक साल में देखा है, तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने कई क्रांतियां की हैं. अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने एक बयान दिया है, अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय ने भी एक बयान दिया है और विभिन्न सम्मेलन आयोजित किए गए हैं, लेकिन एक भी इकाई द्वारा कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की गई है जो इजराइलियों को रोक सके."
अहमद ने कहा कि इजराइल की सैन्य शक्ति ने मुद्दों को पीछे धकेलने में सफलता पाई है. लेकिन इन गैर-सरकारी तत्वों में फिर से उभरने की क्षमता है. उन्होंने कहा कि वे फिर से वापस आएंगे. वे पिछले 40 साल से चली आ रहे इस मैथड के अनुसार लड़ेंगे. हमने जो देखा है, उसके अनुसार यह अगले 40 साल तक जारी रहेगा. इजराइल ने ओब्जेक्टिव असेसमेंट किया है कि इसका कोई समाधान नहीं है."
इजराइल को नॉन- गवर्नमेंट एलिमेंट से लड़ने के लिए मजबूर करने वाले सबसे महत्वपूर्ण फैक्टर्स में से एक ईरान की इन समूहों का इस्तेमाल अपने प्रभाव को बढ़ाने और क्षेत्र में इजरायल के सैन्य प्रभुत्व का मुकाबला करने के लिए प्रॉक्सी के रूप में करने की रणनीति है. ईरान हिजबुल्लाह, हमास और फिलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद (PIJ) को व्यापक वित्तीय, रसद और सैन्य सहायता प्रदान करता है, इन समूहों को इजराइल और पश्चिम के खिलाफ अपने वैचारिक और भू-राजनीतिक संघर्ष में महत्वपूर्ण साधन के रूप में देखता है.
हालांकि, साथ ही अहमद ने कहा कि इजराइल, परमाणु शक्ति होने के बावजूद, इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि उसके पारंपरिक हथियार ऐसे गैर-सरकारी तत्वों से निपटने के लिए पर्याप्त हैं. दूसरी ओर, गैर-सरकारी तत्वों ने अपने और इजराइल के बीच सैन्य शक्ति में असमानता को स्वीकार कर लिया है.
इजराइल की भारी सैन्य श्रेष्ठता को देखते हुए, विशेष रूप से पारंपरिक युद्ध में, हिजबुल्लाह और हमास जैसे समूह इजराइली रक्षा बलों (आईडीएफ) का सामना करने के लिए गुरिल्ला रणनीति, विषम युद्ध और आतंकवाद को अपने प्राथमिक साधन के रूप में अपनाते हैं.यही कारण है कि इजराइल ने स्वीकार किया है कि उसे अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए क्षेत्र में गैर-सरकारी तत्वों से संघर्ष करना जारी रखना होगा.
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