बर्मिंघम : संयुक्त राष्ट्र के अनुसार चुनाव के लिहाज से 2024 मानव इतिहास में सबसे बड़ा साल होगा. इस वर्ष 72 देशों में कुल 3.7 अरब लोग यानी दुनिया की लगभग आधी आबादी मतदान कर सकेगी. कुछ देशों के चुनाव दूसरे देशों की तुलना में वैश्विक रूप से अधिक महत्वपूर्ण होते हैं, ऐसे में दुनिया के शक्तिशाली देश कहे जाने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव पर सबकी नजरें हैं.
अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला और सैन्य रूप से सबसे ताकतवर देश है. साथ ही यह कई अंतरराष्ट्रीय सामरिक गठबंधनों, आर्थिक व वित्तीय प्रणालियों और दुनिया के कई महत्वपूर्ण संस्थानों का केंद्र है. यह अमेरिकी इतिहास का एक बहुत महत्वपूर्ण चुनाव है. इस चुनाव से यह तय होगा कि देश का शासन कैसे चलेगा. साथ ही इस चुनाव का मध्य-पूर्व में जारी जंग और यूक्रेन-रूस युद्ध खत्म होने के बाद की व्यवस्था पर भी बड़े पैमाने पर प्रभाव पड़ सकता है.
साल 1945 के बाद हुए किसी भी चुनाव के विपरीत, इस चुनाव में दुनिया के विभिन्न देशों के साथ अमेरिकी संबंधों के बुनियादी सिद्धांतों पर खतरा मंडरा रहा है.
चुनाव दो ऐसे उम्मीदवारों के बीच है, जिनका दुनियावी मामलों पर एक दूसरे से विपरीत रुख है. एक ओर रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप हैं, जो चाहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय के मामलों में अमेरिका की भूमिका पूरी तरह खत्म होनी चाहिए तो दूसरी ओर डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार कमला हैरिस चाहती हैं कि अमेरिका का दखल बढ़ना चाहिए. अगर हैरिस राष्ट्रपति बनती हैं तो संभावना है कि अमेरिका मिसाल के तौर पर, नाटो जैसे संगठनों में अपनी भूमिका निभाता रहेगा.
ऐसे में यहां कुछ मुद्दों का जिक्र करना जरूरी है, जिन्हें लेकर अमेरिकी चुनाव पर सभी की नजरें रहेंगी. इनमें से एक मुद्दा चीन पर शुल्क लगाना है.
अमेरिका के इस चुनाव में एक बड़ा मुद्दा विदेश से सभी सामानों के आयात पर 20 प्रतिशत सार्वभौमिक शुल्क लगाने की ट्रंप की योजना है. ट्रंप ने चेतावनी दी है कि चीन पर 60 प्रतिशत से लेकर 200 प्रतिशत तक शुल्क लगाया जा सकता है. हालांकि यह इससे ज्यादा भी हो सकता है. इन कदमों से मुद्रास्फीति बढ़ने और अमेरिकी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचने की आशंका है. साथ ही ऐसे कदमों से प्रतिशोध, व्यापार युद्ध और वैश्विक अर्थव्यवस्था तहस-नहस होने का भी अंदेशा है.
मित्र देशों को शत्रु देशों से बचाने की अमेरिकी प्रतिबद्धता भी इस चुनाव में एक महत्वपूर्ण मुद्दा है. उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) का सदस्य होने के नाते इसके अन्य सदस्यों की मदद के लिए आगे आना अमेरिका का दायित्व है. नाटो के अनुच्छेद पांच के अनुसार यदि कोई देश किसी नाटो सदस्य पर हमला करता है तो वह सभी सदस्यों पर हमला माना जाता है. अमेरिका ने जापान और दक्षिण कोरिया के साथ भी ऐसी ही संधियां कर रखी हैं. अमेरिका के नेतृत्व में नाटो ने रूस से जारी युद्ध में यूक्रेन को सैन्य और आर्थिक सहायता प्रदान की है.