हैदराबाद :हाल ही में तथाकथित तौर पर स्वस्थ व सक्रिय जीवनशैली का पालन करने वाले फिनटेक कंपनी जिरोथा के फाउंडर नितिन कामथ को पहले स्ट्रोक आने व फिर ह्रदयघात होने की घटना ने आमजन को युवा आबादी में बढ़ती इन जटिल जानलेवा आपात समस्याओं को लेकर चेताया है. जानकारों की मानें तो पहले के समय में स्ट्रोक के ज्यादातर मामले 50 वर्ष से ज्यादा आयु वाले लोगों में ही देखने में आते थे. लेकिन पिछले कुछ सालों में खराब जीवनशैली, खानपान में गड़बड़ी, कोमोरबीटी के बढ़ते मामले, अलग-अलग कारणों से हर उम्र के लोगों में बढ़ता तनाव तथा जरूरी मात्रा में या सही तरीके से आराम व स्वास्थ्य देखभाल में कमी सहित बहुत से कारणों के चलते कम आयु वाले लोगों में भी स्ट्रोक के मामले देखने में आ रहे हैं. गौरतलब है कि हाल ही में प्रसिद्ध अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती भी स्ट्रोक के शिकार हो गए थे.
कहते हैं शोध व आंकड़े
वर्ष 2018 में स्ट्रोक इंडिया की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि स्ट्रोक युवा आबादी में मृत्यु दर का तीसरा सबसे बड़ा कारण और बीमारी की दर का चौथा सबसे बड़ा कारण बन गया है. रिपोर्ट में कहा गया था कि विकसित देशों के मुकाबले भारत जैसे विकासशील देशों में युवा आबादी (25 से 40 की उम्र वाले) में स्ट्रोक के मामले ज्यादा देखने में आ रहे हैं. वहीं पिछले साल ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (जीबीडी) की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि स्ट्रोक के कुल मामलों में भारत में सबसे ज्यादा मामले (हर साल लगभग 2 लाख ) देखने में आते हैं. जिनमें से लगभग 31% मामले युवाओं में देखने में आ रहे हैं. गौरतलब है कि भारत में स्ट्रोक को मृत्यु का चौथा सबसे बड़ा कारण माना जाता है.
क्यों होता है स्ट्रोक
चिकित्सकों के अनुसार स्ट्रोक एक जानलेवा स्थिति है. दरअसल कई बार किसी दुर्घटना-चोट, अवस्था या समस्या के कारण मस्तिष्क के किसी हिस्से में पर्याप्त मात्रा में रक्त प्रवाह नहीं हो पाता है या बाधित हो जाता है. ऐसे में उस क्षेत्र में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है जिसके कारण प्रभावित मस्तिष्क कोशिकाएं ठीक से काम करना बंद कर देती हैं. यह स्ट्रोक का कारण बनता है. स्ट्रोक को कारणों के आधार पर दो प्रकार का माना जाता है, इस्केमिया तथा रक्तस्रावी स्ट्रोक.
इनमें इस्केमिया उस अवस्था को माना जाता है जब रक्त के थक्के या थ्रोम्बस के चलते मस्तिष्क में रक्त वाहिकाएं अवरुद्ध हो जाती हैं. यह उच्च रक्तचाप, उच्च कोलेस्ट्रॉल या टाइप 2 मधुमेह सहित कई चिकित्सीय अवस्थाओं के कारण हो सकता है. इसके अलावा कई बार संक्रमण या मस्तिष्क में टीबी, कुछ आटोइम्यून रोग, मेटाबोलिक विकार तथा महिलाओं में प्रसव के उपरांत उत्पन्न कुछ विशेष परिस्थितियां भी स्ट्रोक का कारण बन सकती हैं. स्ट्रोक के कुल मामलों में से लगभग 80% इस्केमिक स्ट्रोक के मामले होते होते हैं.
वहीं रक्तस्रावी स्ट्रोक वह अवस्था है जब मस्तिष्क में रक्त वाहिका के फटने या क्षतिग्रस्त होने के कारण बहुत ज्यादा रक्तस्राव होने लगता है.
क्या कहते हैं चिकित्सक
गोवा के न्यूरो चिकित्सक डॉक्टर एंटोनियो फेगुरेडो के अनुसार मस्तिष्क क्षति के तुरंत बाद का एक घंटा ,सुनहरा घंटा या गोल्डन ऑर कहलाता है. क्योंकि इस घंटे में यदि रोगी को जरूरी उपचार मिल जाए तो स्ट्रोक के प्रभावों को काफी हद तक नियंत्रण में किया जा सकता है. वहीं स्ट्रोक के बाद की रिकवरी स्ट्रोक की गंभीरता के साथ, उसके कारणों व पीड़ित की आयु सहित कुछ अन्य कारणों के चलते अलग-अलग हो सकती है. जैसे आमतौर पर 50 साल से कम आयु वालों में स्ट्रोक से रिकवरी में कम समय लगता है. वहीं अगर स्ट्रोक मेजर हो और उसके चलते लकवे ने शरीर के बड़े हिस्से को प्रभावित किया हो तो कई बार रिकवरी में लंबा समय लग सकता है. वहीं स्ट्रोक की गंभीरता के आधार पर कभी-कभी जनहानि के साथ मरीज आजीवन विकलांगता का शिकार भी बन सकता है.