देहरादून: 3 मई को विश्व स्वतंत्र पत्रकारिता दिवस (World Press Freedom Day) के रूप में मनाया जाता है. संयुक्त राष्ट्र ने 1993 में इस दिवस को मनाने की घोषणा की थी. पत्रकारों के लिए आज का दिन बेहद अहम है. उत्तराखंड में कई ऐसे बड़े नाम हैं जिन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक पत्रकार के तौर पर की. इसके बाद यहां से होते हुए इन लोगों ने बड़ी उपलब्धि हासिल की. उत्तराखंड में कई ऐसे नेता हैं जो पत्रकारिता से निकले हैं.
पत्रकार से सीएम बने गोविन्द बल्लभ पंत:उत्तराखंड की राजनीति में बड़े नाम वाले नेता कई ऐसे हैं जिन्होंने अपने करियर की शुरुआत पत्रकारिता से की थी. कई क्रांतिकारी पत्रकार आजादी के समय से ही निर्भीक होकर लेखन कार्य करते रहे. जिसके बाद वो सांसद तक बने. गोविंद बल्लभ पंत का नाम ऐसे ही नेताओं में आता है. गोविंद बल्लभ पंत पत्रकार से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद तक पहुंचे.
अल्मोड़ा से ताल्लुक रखने वाले गोविंद बल्लभ पंत ने वकालत के साथ-साथ पत्रकारिता की पढ़ाई की. 1910 में गोविंद बल्लभ पंत पत्रकारिता के पेशे में आए. उन्होंने लगभग 8 सालों तक लेखन का कार्य किया. उसके बाद वो कई आंदोलनों का हिस्सा रहे. बाद में 1937 से लेकर 1939 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे.
अविस्मरणीय हैं बद्री दत्त पांडे:अल्मोड़ा से एक और नाम आता है, जिन्होंने पत्रकारिता करने के बाद राजनीति में कदम रखा. यह नाम है बद्री दत्त पांडे का है. बद्री दत्त पांडे उत्तराखंड के उन पत्रकारों में से एक है जिनका नाम आज भी सम्मान से लिया जाता है. 15 फरवरी 1982 में हरिद्वार के कनखल में जन्मे बद्री दत्त पांडे स्वतंत्रता सेनानी थे. मूल रूप से अल्मोड़ा के रहने वाले बद्री दत्त की पढ़ाई नैनीताल और अल्मोड़ा से हुई. बाद में वह सरकारी नौकरी में देहरादून तैनात हुए. उन्होनें नौकरी से त्यागपत्र देने के बाद पत्रकारिता शुरू की.
1903 से लेकर 1910 तक वह देहरादून से छपने वाले लीडर अखबार में नौकरी करते रहे. उसके बाद अल्मोड़ा में उन्होंने अपना खुद का अखबार निकाला, जिसने स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका निभाई. स्वतंत्रता सेनानी और पत्रकार बद्री दत्त पांडे के नाम से राज्य में कई इमारतें और कई योजनाएं भी चल रही हैं. 1965 में बद्री दत्त पांडे का निधन हो गया. कांग्रेस के प्रवक्ता मथुरा दत्त जोशी बताते हैं-
गोविंद बल्लभ पंत हो या बद्री दत्त पांडे दोनों ही उत्तराखंड के वह नाम है जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता. पत्रकारिता के बाद 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले बद्रीनाथ पांडे बाद में 1957 लोकसभा चुनाव में अल्मोड़ा लोकसभा सीट से चुनाव जीते थे.
एक पत्रकार और फिर देश में बड़ा नाम बने भक्त दर्शन: उत्तराखंड के पहाड़ों से निकलकर विश्व में पत्रकारिता और आंदोलनकारी के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले भक्त दर्शन का नाम भी देश में चर्चित है. 12 फरवरी 1912 में पौड़ी गढ़वाल जिले में भोराड़ गांव में जन्मे भक्त दर्शन की पहचान एक आंदोलनकारी, संसद के रूप में होती है. भक्त दर्शन ने आजादी के आंदोलन के बाद 1931 के समय पत्रकारिता की. इसके जरिये उन्होंने न केवल उत्तराखंड के गढ़वाल बल्कि कुमाऊं और आसपास के इलाकों में भी आंदोलन को धार देने के लिए कलम का सहारा लिया.
वो साल 1949 तक पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करते रहे. प्रयाग से दैनिक भारत के साथ-साथ अन्य कई अखबारों में उन्होंने कार्य किया. बाद में वह राजनीति में आ गए. 1952 में हुए पहली बार चुनाव में उन्होंने गढ़वाल का प्रतिनिधित्व करते हुए चुनाव जीता. साल 1963 से लेकर 1971 तक वह लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी की मंत्रिमंडल में मंत्री रहे. उनके बारे में कहा जाता है कि वह एक मात्र ऐसे सांसद थे जो किराए के मकान में रहे. पत्रकारिता करने वाले छात्र आज भी उनको पढ़ते हैं. वरिष्ठ पत्रकार भागीरथ शर्मा कहते हैं-
भक्त दर्शन से लेकर बद्री दत्त पांडे का जो योगदान पत्रकारता में है वो आने वाली पीढ़ी के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ. उसके बाद उनको पढ़कर उनको देखकर कई बड़े पत्रकार उत्तराखंड की धरती से राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचे हैं.
पत्रकारिता के दौर से सीखीं राजनीति की बारीकियां:अब बात नारायण दत्त तिवारी की. तिवारी भी अपने छात्र राजनीति के दौरान और सक्रिय राजनीति में आने के बाद भी लेखन का कार्य करते रहे. इंडियन एक्सप्रेस और नेशनल हेराल्ड जैसे बड़े संस्थानों में उनके लेख कई बार छपते रहते थे. उनकी सोच और काम करने की शैली भी बताती थी कि पत्रकारिता में जो समय उन्होंने गुजारा है वो उनके राजनीतिक करियर में कितना काम आ रहा है.
पत्रकारिता से बने बीजेपी के मीडिया प्रभारी, पहुंचे राज्यसभा: वहीं, मौजूदा समय में भी उत्तराखंड में कई ऐसे बड़े नाम हैं जिन्होंने अपनी करियर की शुरुआत पत्रकारिता से की. पौड़ी गढ़वाल से हाल ही में लोकसभा का चुनाव लड़ने वाले अनिल बलूनी भी कभी पत्रकार हुआ करते थे. साल 1972 में उत्तराखंड के नकोट गांव पौड़ी गढ़वाल में जन्मे बलूनी युवावस्था से ही राजनीति में एक्टिव थे. निशंक सरकार के दौरान अनिल बलूनी वन्यजीव बोर्ड के उपाध्यक्ष रहे. मौजूदा समय में भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी हैं.