देहरादून: आज के दौर में इलाज की तमाम सुविधाएं आम जनता को मिल रही हैं. मुख्य रूप से मरीज को तीन पद्धति के जरिए उपचार का लाभ दिया जाता रहा है. जिसमें एलोपैथी, आयुर्वेद और होम्योपैथिक पद्धति शामिल हैं. लेकिन रोजमर्रा के जीवन में लोग तत्काल राहत पाने को लेकर एलोपैथी का इस्तेमाल करते हैं. होम्योपैथी पद्धति भी एक ऐसी पद्धति है, जिसमें हर मर्ज का इलाज किया जा रहा है. ऐसे में होम्योपैथिक पद्धति को बढ़ाने को लेकर हर साल 10 अप्रैल को वर्ल्ड होम्योपैथी डे मनाया जाता है.
सुरक्षित और प्रभावी वैकल्पिक चिकित्सा है होम्योपैथी:दरअसल, होम्योपैथी को काफी सुरक्षित और प्रभावी वैकल्पिक चिकित्सा के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है. लेकिन आज भी देश में ज्यादातर लोग एलोपैथी पद्धति से इलाज को ही प्राथमिकता देते हैं. लिहाजा, हर साल 10 अप्रैल को वर्ल्ड होम्योपैथी डे मनाया जाता है.
जिसकी मुख्य वजह यही है कि इस दिन होम्योपैथी के बारे में लोगों को जागरूक किया जा सके. जर्मन फिजिशियन, स्कॉलर सैमुअल हैनिमैन को होम्योपैथी पद्धति का जनक माना जाता है. होम्योपैथी एक प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति है. इसकी दवाएं प्राकृतिक चीजों (पौधों, जानवरों और खनिजों) से बनाई जाती हैं.
होम्योपैथिक पद्धति ऐसे हुई इजाद: होम्योपैथी पद्धति का इजाद जर्मनी में हुआ था. कहा जाता है कि 18वीं शताब्दी में जर्मन फिजिशियन डॉ. सैमुअल हैनिमैन ने होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति का इजाद किया था. डॉ. हैनिमैन का जन्म 10 अप्रैल 1755 को जर्मनी में हुआ था. इन्होंने साल 1796 में होम्योपैथी की खोज की थी.
इतना ही नहीं सैमुअल ने जर्मनी में साल 1833 में पहला होम्योपैथिक अस्पताल भी स्थापित किया था. इसके बाद साल 1948 में डॉ. एमएल भंडारी ने डॉ. हैनिमैन के जन्मदिन को विश्व होम्योपैथी दिवस के रूप में मनाने की पहल की थी. इसके बाद हर साल 10 अप्रैल को विश्व भर में वर्ल्ड होम्योपैथी डे के रूप में मनाया जाता है.
होम्योपैथी में नहीं होती है सर्जरी: वर्तमान समय में होम्योपैथी दुनियाभर में काफी प्रचलित हो रही है. क्योंकि, होम्योपैथी एक सुरक्षित और प्रभावी चिकित्सा पद्धति है. इस पद्धति के जरिए शुगर, बीपी समेत तमाम बड़ी बीमारियों का इलाज किया जा सकता है. इसके अलावा एलर्जी, अस्थमा, गठिया, त्वचा रोग के साथ मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को दूर किया जाता है.