नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से मुफ्त में दी जा रही सुविधाओं को लेकर जमकर खरी-खोटी सुनाई हैं. कोर्ट ने कोविड महामारी के बाद से मुफ्त राशन दिए जा रहे प्रवासी मजदूरों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने और क्षमता निर्माण की आवश्यकता पर बल देते हुए पूछा कि लोगों को कब तक मुफ्त में राशन दिया जा सकता है?
इस बीच केंद्र ने अदालत को बताया कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के तहत 81 करोड़ लोगों को मुफ्त या रियायती राशन दिया जा रहा है. पीठ ने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से कहा, "इसका मतलब है कि केवल टैक्सपेयर्स ही मुफ्त लाभ पाने से वंचित हैं."
'मजदूरों को रोजगार दें, न कि फ्रीबीज'
एनजीओ की ओर से दायर एक मामले में पेश हुए वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि उन प्रवासी मजदूरों को मुफ्त राशन मिलना चाहिए जो ई-श्रमिक पोर्टल पर रजिस्टर्ड हैं. इसपर बेंच ने कहा, फ्रीबीज कब तक दिए जाएंगे? क्यों न हम इन प्रवासी मजदूरों के लिए रोजगार के अवसर, रोजगार और क्षमता निर्माण पर काम करें?
क्या है रेवड़ी कल्चर?
आरबीआई ने अपनी 2022 की रिपोर्ट मेंमु फ्त दिए जाने वाले लोक कल्याण उपाय को 'रेवड़ी' बताया था. इनमें मुफ्त लैपटॉप, टीवी, साइकिल, बिजली और पानी जैसी वस्तुएं शामिल हैं. आमतौर पर सरकारें राजनीतिक लाभ के लिए लोगों को इन ये चीजें फ्री में दी जाती हैं. हालांकि , इसके सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलु हैं. यह ही वजह है कि कुछ लोग इसका समर्थन करते हैं, जबकि कुछ इसके विरोध में हैं.
1956 में हुई थी शुरुआत
बता दें कि भारत में फ्रीबीज का कल्चर हाल में शुरू नहीं हुआ है, बल्कि भारत में इसकी शुरुआत त 50 के दशक में उस समय हुई थी, जब तत्कालीन मद्रास राज्य (तमिलनाडु) के मुख्यमंत्री के कामराज ने राज्यभर के स्कूलों में 1956 में मिड डे मील योजना शुरू की थी.इसके बाद से देश में कैश, इलेक्ट्रॉनिक गैजेट और साइकिल जैसे चीजें मुफ्त देने का चलन शुरू हुआ और यह चलन आज भी जारी है.
फ्रीबीज के पॉजिटिव पहलू
फ्रीबीज का सबसे पॉजिटिव पहलू अपेक्षाकृत निचले स्तर और गरीब लोगों का समर्थन और उनका उत्थान करना है. इसके तहत लोगों को न केवल मुफ्त में राशन जैसी चीजें मिलती है, बल्कि सरकार भी इसके जरिए नागरिकों के प्रति अपने संवैधानिक दायित्वों (राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत) को निभाती है.