नई दिल्ली : प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी ने कहा है कि लेटरल एंट्री से आरक्षण पर असर पड़ेगा. सोशल मीडिया एक्स पर पोस्ट डालते हुए राहुल ने लिखा कि लेटरल एंट्री से आदिवासी, ओबीसी और दलितों के रिजर्वेशन का हक मारा जाएगा. अन्य विपक्षी दलों ने भी इस भर्ती अभियान को लेकर मोदी सरकार पर निशाना साधा है. उनका आरोप है कि बहाली के जरिए मोदी सरकार अपने चहेतों को सीनियर पदों पर बिठाएगी और उनके जरिए खास बिजनेसमैन को फायदा पहुंचा जाएगा.
सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने कहा कि बिना आरक्षण के प्रावधान किए ही बहाली निकलाना असंवैधानिक है.
किन पदों के लिए निकली बहाली
आपको बता दें कि यूपीएससी ने 24 मंत्रालयों में कुल 45 पदों पर लेटरल एंट्री को लेकर एक विज्ञापन प्रकाशित किया है. निजी क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को एंट्री दी जाएगी. इनकी बहाली अनुबंध के आधार पर होगी. जिन पदों पर नियुक्ति की जाएगी, उनमें संयुक्त सचिव, उप सचिव और निदेशक के पद शामिल हैं. इनकी बहाली अलग-अलग मंत्रालयों में की जाएगी.
कौन कर सकते हैं आवेदन
वैसे लोग जो लगातार 15 सालों से निजी क्षेत्र में कार्यरत हैं, वे आवेदन कर सकते हैं. उनकी आयु कम से कम 45 साल होना जरूरी है. न्यूनतम स्नातक की डिग्री आवश्यक है. किसी यूनिवर्सिटी या पीएसयू या फिर रिसर्च संस्थान में काम करने वाले व्यक्ति आवेदन कर सकते हैं.
अगर लेटरल एंट्री से बहाली नहीं होती है, तो इन पदों पर किसी आईएएस, आईपीएस या आईएफएस कैडर के अधिकारियों या फिर ग्रुप ए के अधिकारियों की नियुक्ति की जाती है.
इंदिरा सरकार के दौरान भी लेटरल एंट्री पर हुई थी चर्चा
ऐसा नहीं है कि सिर्फ मोदी सरकार ने ही ऐसी नियुक्तियां की हैं. इसकी चर्चा तो काफी पहले से होती रही है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 1966 में जब इंदिरा गांधी की सरकार थी, तब मोरारजी देसाई की अध्यक्षता में प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन किया गया था. इस आयोग ने अपनी अनुशंसा में लेटरल एंट्री को चर्चा के केंद्र में लाया था. उन्होंने सुझाव दिया था कि जिनके पास भी स्पेशल स्किल है, उन्हें सिविल सेवा में जगह मिलनी चाहिए. लेकिन उनकी राय पर कोई भी एक्शन नहीं लिया गया. उसके बाद बीच-बीच में कई ऐसे मौके आए, जब इस विषय पर वाद-विवाद चलता रहा.
यूपीए सरकार ने लेटरल एंट्री के जरिए की थी बहाली
2005 में मनमोहन सिंह की सरकार ने जब दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन किया था, तब इस आयोग ने लेटरल एंट्री को सही ठहराया. आयोग के अध्यक्ष वरिष्ठ कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली थे. इनकी अनुशंसा के आधार पर ही मुख्य आर्थिक सलाहकार की नियुक्ति भी की गई थी.