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क्लाउड सीडिंग क्या है? कैसे होती है आर्टिफिशियल बारिश? जानें सबकुछ - WHAT IS CLOUD SEEDING

क्लाउड सीडिंग का उपयोग सिल्वर आयोडाइड (AgI) को वायुमंडल में छोड़ कर मौसम को बदलने के लिए किया जाता है.

क्लाउड सीडिंग क्या है?
क्लाउड सीडिंग क्या है? (ANI)

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 20, 2024, 6:03 PM IST

नई दिल्ली:राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण रिकॉर्ड स्तर पर पहंच चुका है. इसके चलते, दिल्ली सरकार ने मंगलवार को प्रदूषण से निपटने के लिए आपातकालीन उपाय के रूप में 'क्लाउड-सीडिंग' या 'आर्टिफिशियल रेनफॉल' पर जोर दिया. इस बीच दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने केंद्र सरकार से स्थिति को संबोधित करने और शहर में कृत्रिम वर्षा कराने की योजना को मंजूरी देने के लिए तत्काल बैठक आयोजित करने का आह्वान किया.

पिछले साल नवंबर में भी इसी तरह का प्रस्ताव रखा गया था, लेकिन प्रतिकूल मौसम की स्थिति के कारण इसे छोड़ दिया गया था. दिल्ली सरकार ने कहा था कि वह इस प्रयोग की पूरी लागत वहन करेगी. दो चरणों में विभाजित इस योजना पर प्रति 100 वर्ग किलोमीटर 1 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान लगाया गया था.

क्लाउड सीडिंग क्या है?
क्लाउड सीडिंग एक ऐसी तकनीक है, जिसका उपयोग सिल्वर आयोडाइड (AgI) को वायुमंडल में छोड़ कर मौसम को बदलने के लिए किया जाता है. इससे बर्फ के क्रिस्टल का निर्माण होता है और बादल की बारिश करने की क्षमता बढ़ जाती है. सिल्वर आयोडाइड बादलों में बर्फ के नाभिक के निर्माण में सहायता करता है, जो आर्टिफिशियल बारिश के लिए जरूरी है.

क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया में सिल्वर आयोडाइड, पोटेशियम आयोडाइड और ड्राई आइस जैसे कैमेकि्स को हवाई जहाज और हेलीकॉप्टर के माध्यम से आकाश में फैलाया जाता है. ये कैमिकल जल वाष्प को आकर्षित करते हैं, जिससे बारिश के बादल बनने में मदद मिलती है. आमतौर पर इस विधि से बारिश होने में लगभग 30 मिनट लगते हैं. साइंसडायरेक्ट के अनुसार क्लाउड सीडिंग को दो प्रकार की होती है. पहली हाइग्रोस्कोपिक क्लाउड सीडिंग और दूसरी ग्लेशियोजेनिक क्लाउड सीडिंग

हाइग्रोस्कोपिक क्लाउड सीडिंग
यह मैथड लिक्विड क्लाउड में बूंदों के विलय को तेज करता है, जिससे बड़ी बूंदें बनती हैं जो अंत में बारिश का कारण बनती हैं. इसमें आम तौर पर नमक के कण बादल के आधार पर छोड़े जाते हैं.

ग्लेशियोजेनिक क्लाउड सीडिंग
यह तकनीक सिल्वर आयोडाइड या ड्राई आइस जैसे आइस के नाभिक को फैलाकर सुपरकूल्ड बादलों में बर्फ के निर्माण को करती है. यह बर्फ के नाभिकीकरण और उसके बाद बारिश को ट्रिगर करती है.

कहां हो चुका है क्लाउड-सीडिंग का इस्तेमाल ?
एयर क्वालिटी में सुधार के लिए क्लाउड-सीडिंग को अभी तक भारत में लागू नहीं किया गया है, जबकि आईआईटी कानपुर ने पिछले साल एक प्रयोग करने की योजना बनाई थी. 2018 से पश्चिमी घाटों पर इसका परीक्षण चला रहा है, हालांकि वायु गुणवत्ता पर प्रभाव का मूल्यांकन नहीं किया गया है.

दिसंबर 2023 में, पाकिस्तान के लाहौर में क्लाउड-सीडिंग की गई, जिसके कारण वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) में 300 से 189 तक आ गया था. हालांकि, दो दिनों के भीतर AQI फिर से खराब हो गया.

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