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कैश फॉर वोट मामला : सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना सीएम पर की सख्त टिप्पणी - 2015 cash for vote case - 2015 CASH FOR VOTE CASE

कैश फॉर वोट मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना के सीएम पर सख्त टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि अगर भविष्य में उनकी ओर से कोई भी हस्तक्षेप हुआ, तो अदालत मुकदमे की सुनवाई ट्रांसफर करने पर विचार कर सकती है.

SC on Telangana CM Revanth Reddy
सुप्रीम कोर्ट की तस्वीर और तेलंगाना सीएम रेवंत रेड्डी (फाइल) (ANI and IANS)

By Sumit Saxena

Published : Sep 20, 2024, 3:20 PM IST

नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए रेवंत रेड्डी को निर्देश दिया कि वे अभियोजन पक्ष के कामकाज में हस्तक्षेप न करें. साथ ही रेड्डी और अन्य से जुड़े 2015 के कैश-फॉर-वोट मामले में मुकदमे को तेलंगाना से भोपाल ट्रांसफर करने से इनकार कर दिया.

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने यह भी कहा कि भविष्य में, यदि याचिकाकर्ता, बीआरएस विधायक गुंटाकंडला जगदीश रेड्डी और अन्य पाते हैं कि मामले में रेड्डी द्वारा हस्तक्षेप किया जा रहा है, और यदि इसके लिए आधारभूत आधार है, तो अदालत हमेशा राज्य के बाहर मुकदमे को ट्रांसफर (स्थानांतरित) करने के उनके अनुरोध पर विचार कर सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह सीएम को “नियंत्रण में” रखने के लिए है.

जस्टिस बी आर गवई और के वी विश्वनाथन की बेंच ने कहा, “हम प्रतिवादी संख्या 2 (तेलंगाना के मुख्यमंत्री) को निर्देश देते हैं कि वह उस कार्यवाही में अभियोजन पक्ष के कामकाज में किसी भी तरह से हस्तक्षेप नहीं करेंगे, जिसके स्थानांतरण की मांग की गई है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने यह भी कहा कि, भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के महानिदेशक उपर्युक्त मामलों के संबंध में प्रतिवादी संख्या 2 को रिपोर्ट नहीं करेंगे. रेड्डी के वकील ने अदालत को बताया कि मामले में मुकदमे को स्थानांतरित करने की मांग वाली याचिका 'राजनीतिक मकसद' से दायर की गई थी.

सुप्रीम कोर्ट बीआरएस विधायक गुंटाकंडला जगदीश रेड्डी और तीन अन्य लोगों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिन्होंने मामले में मुकदमे को तेलंगाना से भोपाल ट्रांसफर करने की मांग की थी.

बेंच ने कहा कि, सुप्रीम कोर्ट इस स्तर पर वर्तमान याचिका पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं है, क्योंकि वर्तमान याचिका केवल आशंकाओं के आधार पर है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह याचिकाकर्ताओं के वकील की इस दलील को स्वीकार करने के लिए इच्छुक नहीं है कि अभियोजन की निगरानी एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश द्वारा की जानी चाहिए.

बेंच ने कहा, "हम इस स्तर पर प्रार्थना पर विचार नहीं करेंगे. याचिका केवल आशंकाओं के आधार पर दायर की गई है, ऐसी आशंका का कोई आधारभूत आधार नहीं है. हमारा विचार है कि उपरोक्त निर्देश कार्यवाही की स्वतंत्र और निष्पक्ष सुनवाई का ध्यान रखेगा."

बेंच ने अपने आदेश में कहा, "भविष्य में, यदि याचिकाकर्ताओं को लगता है कि प्रतिवादी संख्या 2 द्वारा हस्तक्षेप किया गया है, और यदि इसके लिए आधारभूत आधार है, तो न्यायालय हमेशा इस तरह की प्रार्थना को स्वीकार करने पर विचार कर सकता है." मुख्यमंत्री का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने पीठ से आदेश के अंतिम भाग को टालने का अनुरोध किया.

31 मई, 2015 को, तेलुगु देशम पार्टी के तत्कालीन सदस्य रेवंत रेड्डी को विधान परिषद चुनावों में टीडीपी उम्मीदवार वेम नरेंद्र रेड्डी का समर्थन करने के लिए मनोनीत विधायक एल्विस स्टीफेंसन को 50 लाख रुपये की रिश्वत देते समय एसीबी ने गिरफ्तार किया था. रेवंत रेड्डी के अलावा, एसीबी ने कुछ अन्य लोगों को भी गिरफ्तार किया था. बाद में उन सभी को जमानत दे दी गई थी. गुंटाकांडला जगदीश रेड्डी और तीन अन्य द्वारा अधिवक्ता पी. मोहित राव के माध्यम से दायर याचिका में स्वतंत्र और निष्पक्ष सुनवाई की आवश्यकता पर जोर दिया गया था और सुप्रीम कोर्ट से मामले को मध्य प्रदेश के भोपाल में ट्रांसफर करने का आग्रह किया गया था.

याचिकाकर्ताओं में तेलंगाना के एक पूर्व उपमुख्यमंत्री और पूर्व मंत्री शामिल हैं. भोपाल में मुकदमे को स्थानांतरित करने की मांग करने वाली याचिका में स्वतंत्र और निष्पक्ष सुनवाई का मुद्दा उठाते हुए कहा गया है कि रेवंत रेड्डी अब तेलंगाना के मुख्यमंत्री और गृह मंत्री बन गए हैं. याचिका में कहा गया है, "आरोपी नंबर 1 जो सीआर नंबर 11/एसीबी-सीआर1-एचवाईडी/2015 में मुख्य आरोपी है, वह तेलंगाना राज्य का मुख्यमंत्री और गृह मंत्री बन गए हैं, जिसके खिलाफ 88 आपराधिक मामले लंबित हैं और इन परिस्थितियों में चूंकि आरोपी नंबर 1 का अभियोजन पर सीधा नियंत्रण है, इसलिए समझा जाता है कि स्वतंत्र और निष्पक्ष सुनवाई की कोई संभावना नहीं हो सकती है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत अनिवार्य है."

याचिका में कहा गया है कि यदि हैदराबाद, तेलंगाना में मामलों की सुनवाई करने वाले प्रधान न्यायाधीश द्वारा सुनवाई जारी रखी जाती है तो कानून का शासन दूषित हो जाएगा और न्यायिक निष्पक्षता, आपराधिक न्याय प्रणाली खतरे में पड़ जाएगी, जिससे आम जनता का विश्वास डगमगा जाएगा.

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