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केरांग का कपड़ा: ओडिशा के कोरापुट में गदाबा जनजातियों की 'खोई' हुई विरासत को पुनर्जीवित करने की कोशिश - T LEGACY OF GADABA TRIBES

ईटीवी भारत की कस्तूरी रे ने सेबती सिसा और मोनी किरसानी की केरांग समुदाय को जीवित रखने के लिए संघर्ष की उनकी कहानियां सुनीं.

Tapestry Of Kerang
केरांगा बुनाई की प्रक्रिया (ETV Bharat)

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 26, 2025, 1:25 PM IST

Updated : Jan 26, 2025, 6:10 PM IST

कोरापुट/भुवनेश्वर:62 वर्षीय सेबती सिसा बेशकीमती केरांग वस्त्र के ब्रांड एंबेसडर के रूप में एक प्रदर्शनी में भाग लेने के लिए नई दिल्ली जा रही हैं. वह इस लंबी यात्रा के लिए उत्साहित दिखीं. सियान, ऑफ व्हाइट और नारंगी रंग की धारियों वाली 'क्रॉप्ड' साड़ियों में सजी-धजी गदाबा आदिवासी महिला सेबती से ईटीवी भारत ने जब पूछा कहा कि पुनरुद्धार प्रयासों से उन्हें क्या उम्मीदें हैं, तो वह लुप्त हो रही कला की कहानी बताने के लिए उत्सुक दिखाई दीं.

सेबती ने गदाबा की गुटाब बोली में कहा, "यह कहना जल्दबाजी होगी कि ऐसे पुनरुद्धार प्रयासों का क्या नतीजा होगा, लेकिन हम उम्मीद पर जिंदा हैं." वह वर्तमान में जनजाति की पुरानी पीढ़ी के कलाकारों में से एक हैं, जो दूसरी और तीसरी पीढ़ी के गदाबा को कपड़ा बुनने की कला का प्रशिक्षण दे रही हैं. केरांग कपड़ा पीढ़ियों से चला आ रहा है, क्योंकि यह आसानी से घिसता नहीं है. इसे आमतौर पर बेटी की शादी होने पर उपहार में दिया जाता है. खास बात यह है कि जब तक जनजाति में कोई लड़की या लड़का बुनाई की ट्रेनिंग नहीं ले लेता, तब तक उन्हें शादी के लिए योग्य नहीं माना जाता.

केरांग धागा बनाने में यूज होने वाला टूल (ETV Bharat)

चार साल पहले भारतीय राष्ट्रीय कला एवं सांस्कृतिक विरासत ट्रस्ट (INTACH) ने इस कला को जीवित रखने के लिए कदम उठाए. जिला प्रशासन, राज्य हस्तशिल्प और हथकरघा विभाग, वन विभाग और सबसे महत्वपूर्ण बात, गदाबा आदिवासियों का विश्वास जीतने के लिए, INTACH के अधिकारियों ने केरांग बुनाई की कला जानने वाले परिवारों से बात की. जिले के लामातापुट ब्लॉक के रायपाड़ा गांव में एक करघा घर बनाया गया. इसमें महिलाओं के काम करने और युवाओं को प्रशिक्षित करने के लिए करीब 11 करघे लगाए गए.

महिलाएं करघे पर एकत्र हुईं (ETV Bharat)

अब तक ग्रामीणों द्वारा बुना गया कपड़ा INTACH द्वारा लिया गया है, जो उन्हें मुआवजा भी देता है। INTACH द्वारा आयोजित प्रदर्शनी के लिए उनके साथ नई दिल्ली आए एक अधिकारी ने बताया, "केरांग कपड़े की कीमत 2000 से 3000 रुपये के बीच है." मोनी किरसानी और सेबाती ओडिशा से केवल दो प्रतिभागी हैं जिन्हें 29 विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधियों के साथ केरांग के गौरव का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया है.

धागे बनाती हुई महिलाएं (ETV Bharat)

जब सेबाती इस प्रक्रिया के बारे में बताती हैं कि इसमें धागा सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो केरांग नामक पौधे से बनाया जाता है. यह एक पतला-पतला पौधा होता है, जिसे जड़ से उखाड़ा जाता है और इसके तने को कई बार हथौड़े से पीटने के बाद धूप में सुखाया जाता है. सूखने के बाद इसे कुछ दिनों के लिए ठंडा होने के लिए छोड़ दिया जाता है और फिर बाहर निकालकर हथौड़े से टुकड़े-टुकड़े कर दिया जाता है. उन फटे हुए तनों से धागे बनाए जाते हैं जिन्हें फिर इन्हें चमकाया जाता है.

सेबाती बताती हैं, "धागे की एक बॉल भी बनाना बहुत मुश्किल काम है. हमें पौधों से धागा निकालने में कई दिन लग जाते हैं. सबसे पहले सभी पौधों का इस्तेमाल कपड़े के लिए नहीं किया जा सकता, क्योंकि पुराने पौधे (3-4 साल पुराने) अच्छी गुणवत्ता वाले धागे नहीं देते. इसलिए हमें केवल कम उम्र के पौधों को ही चुनना पड़ता है. लेकिन फिर भी, केरंग धागे से अकेले कपड़ा नहीं बनता. केरंग को बांधने के लिए हमें 'डोम सुता', एक और धागा चाहिए. इसके बाद डोम धागे को सिउना और जाफ़्रा की मदद से रंगा जाता है - जहां जाफ्रा नारंगी रंग के धागे बनाता है, वहीं सिउना नीले रंग के धागे देता है, जिन्हें भी इसी नाम के पौधों से प्राप्त किया जाता है.

धागे के टुकड़े (ETV Bharat)

सेबाती अपने पैरों की फटी हुई त्वचा दिखाते हुए कहती हैं, "हम हर दिन करघे में लगभग सात घंटे बिताते हैं. जब हम अपने पैरों के चारों ओर धागे लपेटते और चमकाते हैं, तो यह हमारी पिंडली की मांसपेशियों पर बहुत ज़्यादा असर डालता है." वे कहती हैं, "केरंग का एक टुकड़ा बुनने में हमें कम से कम 15 दिन लगते हैं. बैंगलोर और देश के दूसरे हिस्सों के लोग, जो हमसे ये प्रोडक्ट कम कीमत पर खरीदते हैं. वह इसके लिए ज्यादा से ज्यादा 10,000 रुपये तक देते हैं."

ओडिशा सरकार से वृद्धावस्था पेंशन
सेबाती और मोनी दोनों को ओडिशा सरकार से वृद्धावस्था पेंशन मिलती है, लेकिन यह उनके लिए बहुत कम है. इसलिए 60 से ज़्यादा साल की उम्र में दोनों घर पर काम करती हैं, खाना बनाती हैं, खेती करती हैं (ज़्यादातर बाजरा, अदरक, पीपला, हल्दी और दूसरी नकदी फ़सलें) और जब सुबह 10 बजते हैं, तो वे बुनाई शुरू करने के लिए कुछ और लोगों के साथ करघा चलाती हैं.

रायपाड़ा गांव, जहां सेबाती और मोनी रहती हैं इसमें लगभग 40-50 परिवार हैं, जिनमें से ज़्यादातर गदाबा जनजाति के हैं. हालांकि, कई परिवारों ने बुनाई की इस प्रक्रिया को छोड़ दिया है, क्योंकि इसमें बहुत ज़्यादा मेहनत लगती है, जिससे उनके अस्थायी करघे बेकार हो गए हैं. मोनी का बेटा कोरापुट में कॉलेज की पढ़ाई कर रहा है. वह कहती हैं, "हमारे बच्चे स्कूल जाने लगे और उनके पास बुनाई सीखने का समय नहीं था. इसके अलावा एक बार जब वे शिक्षित हो गए, तो वे गरीबी से बाहर निकलकर नौकरी करना चाहते थे."

धागे के टुकड़े (ETV Bharat)

सेबती कहती हैं रायपाड़ा गांव से सबसे नजदीकी बैंक और उच्च शिक्षा संस्थान मचकुंड में स्थित हैं, जो 30 किलोमीटर दूर है, जबकि गुनीपाड़ा 12 किलोमीटर दूर है. परिवहन का एकमात्र साधन ऑटोरिक्शा है, जो बैंक तक एक तरफ की यात्रा के लिए 40 रुपये लेता है. लोग कहते हैं कि हम समृद्ध हैं, लेकिन हम जो पैसे कमाते हैं, वह बेहद कम हैं और उससे गुजारा करना मुश्किल है. हमारे कपड़ों के लिए हमारी कड़ी मेहनत के हिसाब से उचित मूल्य मिलना चाहिए.” वह कहती हैं, “हम चुपचाप बुनाई करते हैं क्योंकि धागे के काम में बहुत एकाग्रता की आवश्यकता होती है.”

नई दिल्ली में इनटैक उत्सव
सेबाती और मोनी दोनों नई दिल्ली में इनटैक उत्सव में केरांग बनाने का प्रदर्शन करेंगी. इनटैक के कोरापुट चैप्टर के संयोजक डॉ पी सी मोहपात्रो ने कहा, "ये महिलाएं अपने पारंपरिक केरांग कपड़े की बुनाई का लाइव प्रदर्शन करेंगी. इनटैक ने कुछ साल पहले इस कला के जीर्णोद्धार का काम अपने हाथ में लिया था और इस कला के लगभग विलुप्त होने के कारणों का पता लगाने के लिए एक सर्वे किया था."

धागे एक साथ बुनते हुए (ETV Bharat)

इनटैक ने केरांग के पेड़ लगाकर सबसे पहले शुरुआत की, जो आजकल बहुत कम उपलब्ध हैं. उन्होंने मूल धागा बनाने की सुविधा के लिए बड़े पैमाने पर केरांग और सिउना के पौधे लगाने के लिए वन विभाग के साथ हाथ मिलाया. उन्होंने बताया, "हमने समुदाय के लिए विशेष करघे भी स्थापित किए. जिला प्रशासन ने एक मॉडल कार्यशाला के रूप में रायपाड़ा गांव में एक बुनाई घर के निर्माण के लिए समर्थन दिया."

उन्होंने कहा, "हमें उम्मीद है कि सेबाती और मोनी की भागीदारी से केरांग कपड़े में विजिटर्स के बीच रुचि पैदा होगी और वे इसके पुनरुद्धार में योगदान करने के लिए प्रेरित होंगे." उन्होंने यह भी कहा कि कपड़े के लिए जीआई टैग हासिल करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है.

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Last Updated : Jan 26, 2025, 6:10 PM IST

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