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तमिलनाडु ने 'आपदा राहत कोष' के लिए SC का रुख किया, कहा- 'केंद्र कर रहा अनुचित व्यवहार' - TN moves SC for disaster relief

Tamil Nadu Moves SC: तमिलनाडु सरकार ने केंद्र सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में मूल मुकदमा दायर किया हैं. मुकदमे में दावा किया गया कि केंद्र सरकार प्राकृतिक आपदाओं के लिए राहत राशि रोक रही है. राज्य सरकार ने अदालत से संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत, चक्रवात 'माईचुंग' से हुए नुकसान के लिए सहायता प्रदान करने का निर्देश देने का अनुरोध किया.

TAMIL NADU GOVT MOVES SC AGAINST CENTRE FOR DISASTER RELIEF FUND.
कर्नाटक के बाद, तमिलनाडु ने 'आपदा राहत कोष' के लिए SC का रुख किया.

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Apr 3, 2024, 2:27 PM IST

नई दिल्ली: तमिलनाडु सरकार ने केंद्र सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक मुकदमा दायर किया है. इसमें दावा किया गया है कि केंद्र प्राकृतिक आपदाओं के लिए राहत राशि रोक रहा है.

बता दें, राज्य ने दिसंबर 2023 में, चक्रवात 'माईचुंग' से हुए नुकसान के संबंध में 19,692.69 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता का अनुरोध किया था. इससे पहले, कर्नाटक सरकार द्वारा गंभीर प्रकृति की आपदा के मद्देनजर सूखा राहत के लिए 35,162 करोड़ रुपये की मांग करते हुए याचिका दायर की गई.

तमिलनाडु सरकार ने मुख्य सचिव के माध्यम से दायर एक मूल मुकदमे में अदालत से 26 दिसंबर, 2023 को केंद्रीय वित्त मंत्री को सौंपे गए अभ्यावेदन पर विचार करने का निर्देश देने की मांग की थी. राज्य 17-18 दिसंबर, 2023 को दक्षिणी जिलों में अत्यधिक भारी वर्षा से हुई क्षति के लिए एक समय सीमा के भीतर वित्तीय सहायता के रूप में 18,214.52 करोड़ रुपये की राशि की मदद चाहता है.

राज्य सरकार ने भारत सरकार के गृह मंत्रालय की अंतर-मंत्रालयी केंद्रीय टीम (आईएमसीटी) के माध्यम से प्रस्तुत 14 दिसंबर, 2023 को दिए गए एक अभ्यावेदन पर विचार करने का निर्देश देने की भी मांग की. अंतरिम उपाय के रूप में 2000 करोड़ रुपये जारी करने की मांग की गई. राज्य सरकार ने दावा किया कि कई अनुरोधों के बावजूद धन उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है. ये प्रभावित लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. मुकदमे में दलील दी गई कि आईएमसीटी ने चक्रवात प्रभावित जिलों और बाढ़ प्रभावित दक्षिणी जिलों का दौरा किया और राज्य की स्थिति का व्यापक आकलन किया.

यह मुकदमा संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत वरिष्ठ अधिवक्ता पी विल्सन, वरिष्ठ अधिवक्ता और स्थायी वकील डी कुमानन के माध्यम से दायर किया गया था. मुकदमे में कहा गया कि राज्य को वित्तीय सहायता जारी करने के लिए अंतिम निर्णय न लेने में भारत सरकार की ओर से निष्क्रियता प्रथम दृष्टया अवैध, मनमाना है. भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 के तहत अपने नागरिकों को दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.

राज्य ने दावा किया कि विशेषज्ञों, आईएमसीटी और राष्ट्रीय कार्यकारी समिति की उप-समिति द्वारा मूल्यांकन किए जाने के बावजूद धन जारी नहीं किया गया. यह प्रतिवादियों द्वारा उसके साथ गलत व्यवहार किया जा रहा है. राज्य सरकार ने दलील दी कि ज्ञापन सौंपने की तारीख से लगभग तीन महीने बीत जाने के बाद भी केंद्र सरकार ने 'राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष' से सहायता पर अंतिम निर्णय नहीं लिया है. धन जारी करने में देरी करने का कोई औचित्य नहीं है.

राज्य सरकार ने कहा, 'अन्य राज्यों की तुलना में धन जारी करने में अंतर व्यवहार वर्ग भेदभाव के समान है. यह उन लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है जो आपदाओं के कारण पीड़ित हुए हैं. अधिक कठिनाइयों और अपूरणीय क्षति का सामना करना पड़ा है. यह सौतेला व्यवहार राष्ट्रीय आपदा का उल्लंघन है. प्रबंधन नीति, जिसमें वित्तीय संबंध और कर विभाजन की संघीय प्रकृति शामिल है. इसमें कुछ राज्यों को दूसरों की तुलना में गलत तरीके से धन आवंटित किया गया है'.

याचिका में कहा गया है, '15वें वित्त आयोग ने पुरस्कार अवधि 2021-2022 से 2025-2026 के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया निधि आवंटित की है. इसने गंभीर प्रकृति की आपदा की स्थिति में अतिरिक्त वित्तीय सहायता प्रदान की है. वादी द्वारा इसका ईमानदारी से अनुपालन किया गया है. इसलिए, दिशानिर्देशों और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के अनुसार, सभी आवश्यक औपचारिकताएं पूरी होने पर वादी राज्य को धन के वितरण में देरी करने का कोई वैध कारण या औचित्य नहीं है'.

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