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तीन तलाक मामले में अभी तक जितनी भी FIR दर्ज हुई हैं, उनकी जानकारी दे केंद्र: सुप्रीम कोर्ट - SC ON FIR AGAINST MUSLIM MEN

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि तीन तलाक विरोधी कानून के तहत मुस्लिम पुरुषों के खिलाफ कितनी एफआईआर दर्ज की गईं?

SC on FIR against Muslim Men
प्रतीकात्मक तस्वीर. (IANS)

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 29, 2025, 2:15 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र से कहा कि वह मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 के तहत प्रतिबंधित तीन तलाक के माध्यम से तलाक लेने के लिए मुस्लिम पुरुषों के खिलाफ दर्ज कुल एफआईआर के बारे में डेटा प्रस्तुत करे. यह मामला भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष आया है.

सुनवाई की शुरुआत में, केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए अधिनियम की आवश्यकता है. सीजेआई ने कहा कि अब केंद्र ने तीन तलाक कहने को ही दंडित कर दिया है. पीठ ने कहा कि अब सभी एफआईआर केंद्रीकृत हो गई हैं.. हमें बताएं कि कितने मामले लंबित हैं और क्या अन्य उच्च न्यायालयों के समक्ष कोई याचिका है.

याचिकाकर्ताओं में से एक का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता निजाम पाशा ने कहा कि अब केवल घोषणा करने पर ही दंड लगाया गया है. मामले में एक अन्य पक्ष का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता एम आर शमशाद ने तर्क दिया कि इस तरह के कथन और भावनात्मक हिंसा घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत आते हैं.

मेहता ने कहा कि यह ऐसा है जैसे यह कहना कि अगले ही पल से तुम मेरी पत्नी नहीं हो और एक इंसान को किसी व्यक्ति के जीवन और घर से निकाल देना. शमशाद की दलीलों पर प्रतिक्रिया देते हुए सीजेआई ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि घरेलू हिंसा अधिनियम में यह शामिल होगा... सीजेआई ने कहा कि मामले में पक्षकारों को लिखित दलीलें दाखिल करनी चाहिए और मेहता से कहा कि वे जांच करें और दर्ज की गई एफआईआर की संख्या, जिसमें ग्रामीण डेटा भी शामिल है, के बारे में अदालत जानकारी दें.

सीजेआई ने कहा कि उन्हें डेटा दाखिल करने दें, हम ठीक से जान लेंगे (स्थिति क्या है)... पाशा ने कहा कि परित्याग किसी अन्य समुदाय के लिए अपराध नहीं है. मेहता ने कहा कि अन्य समुदायों में तीन तलाक नहीं है. शमशाद ने दलील दी कि आपराधिक मामलों में, दिल्ली में भी वैवाहिक मामलों में महीनों तक एफआईआर दर्ज नहीं की जाती है, जब मारपीट आदि का गंभीर मामला होता है, और यहां किसी ने तीन बार तलाक कह दिया तो वह जेल चला जाएगा.

सीजेआई ने कहा कि अधिकांश वकील यह तर्क नहीं देंगे कि तीन तलाक सही प्रथा है, शायद वे इसके अपराधीकरण के पहलू पर बहस करेंगे. याचिकाकर्ताओं के वकील ने जोर देकर कहा कि तीन तलाक की प्रथा खत्म हो गई है. पीठ ने यह देखते हुए कि 2019 अधिनियम की वैधता को चुनौती देने वाले कई संगठन हैं, सभी याचिकाकर्ताओं के नाम हटाने का फैसला किया और मामले को 'मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2019 को चुनौती के संबंध में' सीमित रखने का फैसला किया.

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