नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. सोरेन ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा उनकी गिरफ्तारी को चुनौती देने की मांग की थी. न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ सोरेन पर प्रासंगिक तथ्यों को छुपाने से नाराज दिखी. जस्टिस दत्ता ने वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल से साफ कहा कि या तो वह याचिका वापस ले लें या इसे खारिज कर दिया जाएगा. यह महसूस करते हुए कि दो दिनों तक बहस करने के बाद भी पीठ आश्वस्त नहीं रही, सिब्बल ने न्यायाधीशों से अनुरोध किया कि उन्हें याचिका वापस लेने की अनुमति दी जाए.
विशेष अदालत ने सोरेन के खिलाफ प्रथम दृष्टया आपत्तिजनक सामग्री पर भरोसा करते हुए धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत अपराधों का संज्ञान लिया था. उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी. पीठ ने मंगलवार को सिब्बल से इस प्रस्ताव पर उसे संतुष्ट करने को कहा था कि गिरफ्तारी की वैधता की जांच अदालत द्वारा की जा सकती है. इसके बावजूद कि ट्रायल कोर्ट ने ईडी की शिकायत पर संज्ञान लिया और सोरेन की ओर से दायर नियमित जमानत याचिका को खारिज कर दिया.
पीठ ने बताया कि रांची की एक विशेष अदालत ने सोरेन के खिलाफ शिकायत पर संज्ञान लिया था. अदालत द्वारा विचार की जा रही उनकी याचिका और मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ट्रायल कोर्ट में नियमित जमानत याचिका दायर करने में इसका उल्लेख नहीं किया गया था. न्यायमूर्ति दत्ता ने इस तथ्य का उल्लेख किया कि शिकायत पर 4 अप्रैल, 2024 को संज्ञान लिया गया था, लेकिन अदालत के समक्ष सोरेन की याचिका में इसका उल्लेख नहीं किया गया था. पीठ ने सिब्बल से कहा कि जब समानांतर कार्यवाही चलती है, तो अदालत को स्पष्टवादिता के स्तर की उम्मीद होती है.
पीठ ने सिब्बल से कहा कि अप्रैल में उनका मुवक्किल शीर्ष अदालत आया था और 29 अप्रैल को प्रवर्तन निदेशालय को नोटिस जारी किया गया था. न्यायमूर्ति दत्ता ने सिब्बल से कहा, 'आपने उच्च न्यायालय द्वारा फैसला न सुनाए जाने पर असंतोष व्यक्त किया. मैंने पूछा कि आप क्या राहत चाह रहे थे... आपने कहा जमानत'. जिस पर उन्होंने जवाब दिया कि उन्हें कहना चाहिए था कि अपने मुवक्किल को रिहा कर दो.
समानांतर कार्यवाही का हवाला देते हुए, पीठ ने कहा, '(आपने) विशेष अदालत के समक्ष जमानत के लिए आवेदन किया, फिर जमानत के लिए प्रार्थना करते हुए हमारे सामने आए. 10 मई को आपकी अन्य याचिका (उच्च न्यायालय द्वारा फैसला सुनाने में देरी के संबंध में) का निपटारा कर दिया गया. हमें बताया गया कि फैसला सुना दिया गया है... तब यह हमारे संज्ञान में नहीं लाया गया था कि संज्ञान (विशेष अदालत द्वारा) लिया गया है'.
सिब्बल ने कहा कि गलती वकील की थी, सोरेन की नहीं, जो जेल के अंदर था. पीठ ने कहा, 'आपका आचरण दोषमुक्त नहीं है. यह निंदनीय है. इसलिए, आप अपना मौका कहीं और ले सकते हैं'. सिब्बल ने स्पष्ट किया कि उनका इरादा कभी भी अदालत को गुमराह करने का नहीं था. उन्होंने दोहराया कि सोरेन जेल में हैं. न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा, 'वह विरासत में हो सकते हैं, लेकिन वह आम आदमी नहीं हैं'.
अप्रैल में, झारखंड उच्च न्यायालय ने अपनी गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली सोरेन की याचिका खारिज कर दी और बताया कि 'ऐसे दस्तावेजों की प्रचुरता है जो याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी और रिमांड की नींव रखते हैं'. शीर्ष अदालत द्वारा उसके समक्ष दायर अंतरिम जमानत याचिका पर ईडी से जवाब मांगने के बाद उच्च न्यायालय ने यह फैसला सुनाया. उच्च न्यायालय द्वारा आखिरकार अपना फैसला सुनाए जाने के बाद, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दत्ता की पीठ ने याचिका को यह कहते हुए बंद कर दिया कि यह अब 'निष्फल' बन गई है.