उपभोक्ता अदालत में अगर वकील ने दी खराब सेवा तो उस पर नहीं कर पाएंगे मुकदमा, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला - Supreme Court News
उपभोक्ता अदालतों में खराब सेवाओं के लिए अब वकीलों पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता. यह फैसला मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया. कोर्ट ने यह भी कहा कि शुल्क के लिए कानूनी प्रतिनिधित्व को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत 'सेवा' के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को फैसला सुनाया कि उपभोक्ता अदालतों में खराब सेवा के लिए वकीलों पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है और शुल्क के लिए कानूनी प्रतिनिधित्व को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत 'सेवा' के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है.
न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के 2007 के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें फैसला सुनाया गया था कि वकीलों द्वारा प्रदान की गई सेवाएं उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2 (ओ) के तहत आती हैं.
पीठ ने कहा कि फैसले ने पेशे को व्यवसाय और व्यापार से अलग कर दिया है और एक पेशेवर के लिए उच्च स्तर की शिक्षा, कौशल और मानसिक श्रम की आवश्यकता होती है, साथ ही एक पेशेवर की सफलता विभिन्न कारकों पर निर्भर होती है, जो उनके नियंत्रण से परे हैं.
पीठ ने कहा कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत किसी पेशेवर के साथ व्यवसायियों के बराबर व्यवहार नहीं किया जा सकता. न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने पीठ की ओर से फैसला सुनाते हुए कहा कि अदालत ने यह भी राय दी है कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन बनाम वीपी शांतना मामले में फैसला, जिसमें कहा गया था कि डॉक्टरों को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत उत्तरदायी ठहराया जा सकता है, फिर से विचार करने योग्य है.
आयोग ने माना था कि यदि वादा की गई सेवाएं प्रदान करने में कमी थी, जिसके लिए वकीलों को शुल्क के रूप में प्रतिफल प्राप्त हुआ था, तो वकीलों के खिलाफ उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत कार्रवाई की जा सकती है.