नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस बी आर गवई, जो दलित समुदाय से आते हैं, ने गुरुवार को कहा कि एक समय ऐसा था जब भारत में जातिगत भेदभाव, नस्लीय भेदभाव काफी बढ़ गया जो दास व्यापार से आगे निकल गया था. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जब भारत औपनिवेशिक शासकों से आजादी पाने के लिए संघर्ष कर रहा था, तब देश ने इन असमानताओं को खत्म करने के लिए समानांतर आंदोलन भी देखा.
जस्टिस गवई ने कहा कि सदियों से समाज में उच्च वर्गों द्वारा कुछ जातियों के लोगों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता रहा है. उनके साथ जानवरों से भी बदतर व्यवहार किया जाता रहा है. उन्होंने कहा, 'एक समय ऐसा था जब भारत में जातिगत भेदभाव नस्लीय भेदभाव और त्वचा के रंग के आधार पर दास व्यापार से भी आगे निकल गया था.'
जस्टिस गवई ने कहा कि कुछ जातियों के लोगों को उच्च वर्गों द्वारा छूने की अनुमति नहीं थी और कुछ क्षेत्रों में तो उच्च वर्ग के लोग ऐसे लोगों की छाया भी अपने ऊपर नहीं पड़ने देते थे. इस तरह, चलते समय उन्हें एक दूरी बनाए रखने की आवश्यकता होती थी ताकि उनकी छाया उच्च जाति को प्रदूषित न करे. न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि कुछ क्षेत्रों में उन्हें अपनी पीठ पर झाड़ू बांधना पड़ता था ताकि वे यात्रा के बाद रास्ता साफ कर सकें.
उन्होंने कहा कि इन लोगों को आम जगहों से पानी भी नहीं दिया जाता था और जिन गांवों में नदियों से पानी लिया जाता था, उन्हें नीचे की ओर से पानी लेना पड़ता था ताकि उच्च वर्ग के लोगों द्वारा लिया गया पानी प्रदूषित न हो. उन्होंने कहा कि उन्हें शिक्षा के अधिकार से भी वंचित रखा गया. स्कूलों में या तो उन्हें अलग बैठना पड़ता था या अपनी कक्षा के बाहर खड़े होकर अपनी शिक्षा लेनी पड़ती थी.
न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि जब भारत औपनिवेशिक शासकों से स्वतंत्रता पाने के लिए संघर्ष कर रहा था, तब देश ने इन असमानताओं को खत्म करने और उन वर्गों के उत्थान के लिए समानांतर आंदोलन भी देखा, जिनके साथ अमानवीय व्यवहार किया जा रहा था. उन्होंने कहा कि डॉ. बीआर अंबेडकर द्वारा 'साउथबोरो कमेटी के समक्ष साक्ष्य' (1919) में दिए गए बयान का उल्लेख करना उचित होगा, जहां उन्होंने उत्पीड़क जातियों द्वारा अछूतों के साथ किए गए अन्यायपूर्ण व्यवहार के कई उदाहरण दिए थे.
उन्होंने कहा कि डॉ. अंबेडकर ने अछूतों के साथ अमानवीय व्यवहार के खिलाफ लड़ने के लिए, जिन्हें आम जगह से पानी भरने की भी अनुमति नहीं थी, 20 मार्च 1927 को महाड़ में 'महाड़ सत्याग्रह' के नाम से एक आंदोलन किया ताकि अछूतों को महाड़ में एक सार्वजनिक टैंक से पानी भरने की अनुमति मिल सके. उन्होंने कहा कि डॉ. अंबेडकर का मानना था कि अस्पृश्यता को दूर करने का आंदोलन सही मायने में राष्ट्र निर्माण और भाईचारे का आंदोलन है. उन्होंने कहा कि यह संयोग की बात है कि डॉ. अंबेडकर, जिन्होंने पीढ़ियों से सामाजिक समानता और अमानवीय व्यवहार के उन्मूलन के लिए लड़ाई लड़ी, उन्हें भारत के संविधान के मुख्य वास्तुकार के रूप में काम करने का अवसर मिला.
न्यायमूर्ति गवई भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सात न्यायाधीशों की पीठ का हिस्सा हैं, जिसने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि एससी और एसटी का उप वर्गीकरण उनके बीच वंचित समूहों को तरजीही उपचार प्रदान करने के लिए स्वीकार्य है. न्यायमूर्ति गवई ने अपने अलग फैसले में ये टिप्पणियां कीं.
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